बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है, जहां खेती ही किसानों की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने का प्रमुख साधन है. हालांकि राज्य में बड़ी संख्या में ऐसे किसान हैं, जो पुश्तैनी टोपोलैंड या असर्वेक्षित भूमि पर वर्षों से खेती कर रहे हैं, लेकिन कागजी दस्तावेजों के अभाव में सरकारी योजनाओं और अनुदानों से वंचित रह जाते हैं. इन किसानों को इसका लाभ मिले, इसको लेकर कृषि मंत्री सह उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने राजस्व भूमि विभाग के मंत्री और अधिकारियों के साथ बैठक की है. वहीं, अब राज्य में घोड़परास नियंत्रण की जिम्मेदारी पंचायत के मुखिया को देने का निर्णय किया गया.
कृषि मंत्री विजय कुमार सिन्हा ने बताया कि टोपोलैंड के तहत त सामान्य, असर्वेक्षित और नदी के दियारा क्षेत्र पर खेती करने वाले किसानों को सरकारी सुविधाओं का लाभ दिलाने पर चर्चा हुई. वहीं, विशेष रूप से दियारा क्षेत्रों में, जहां नदी के कारण स्थायी सेटलमेंट संभव नहीं, वहां टेंपररी सेटलमेंट की प्रक्रिया अपनाने का निर्णय लिया गया.
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि इन किसानों के लिए एक उच्च स्तरीय नीति बनाई जाएगी. इसके लिए राजस्व विभाग की एक टीम साइट विजिट कर जमीनी स्थिति का मूल्यांकन करेगी और विस्तृत रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी. यह कदम बटाईदार और भूमिहीन किसानों को सशक्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित होगा.
कृषि मंत्री ने कहा कि किसानों की फसलों को घोड़परास से होने वाले नुकसान को रोकने के लिए पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के मंत्री डॉ. सुनील कुमार के साथ हुई बैठक में निर्णय लिया गया कि घोड़परास से प्रभावित जिलों में किसान आवेदन के माध्यम से घोड़परास की समस्या से अवगत कराएंगे.
वहीं, जिला पंचायती राज पदाधिकारी, वन प्रमंडल पदाधिकारी और पंचायत के मुखिया मिलकर नियंत्रण का निर्णय लेंगे. इसके साथ ही प्रभावित क्षेत्रों में शूटरों की संख्या बढ़ाई जाएगी, ताकि घोड़परास की आबादी को नियंत्रित किया जा सके. यह पहल फसल क्षति को रोकने और किसानों की आजीविका की रक्षा के लिए उठाई गई है.
टोपोलैंड जमीन पर खेती करने वाले किसान जहां लंबे समय से कृषि विभाग से मिलने वाली योजनाओं की मांग कर रहे थे. वहीं, बिहार सरकार द्वारा पुश्तैनी टोपोलैंड और असर्वेक्षित भूमि पर खेती करने वाले किसानों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने और घोड़परास से फसलों की रक्षा करने की दिशा में एक बड़ा कदम है. अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि वे शीघ्र कार्रवाई करें ताकि किसानों को समय पर राहत मिले और कृषि उत्पादन पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े.
घोड़परास को पुरुष नीलगाय कहा जाता है. इसे स्थानीय स्तर पर कई लोग "घदरोज" भी कहते हैं . हालांकि, क्षेत्रीय स्तर पर सबसे अधिक इसे नीलगाय के नाम से ही जाना जाता है. वहीं, बिहार में नीलगाय की वजह से फसलों को काफी नुकसान पहुंचता है. वहीं, टोपोलैंड बिहार में उस जमीन को कहा जाता है, जिस जमीन का कभी सर्वे नहीं हुआ हो, खासकर नदियां और बाढ़ों के बाद जो जमीनें बनती हैं. इसे असर्वेक्षित जमीन या असर्वेक्षित राजस्व ग्राम के रूप में भी जाना जाता है.
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