बिहार सरकार ने राज्य के किसानों को मिट्टी की उर्वरता बनाए रखने और वैज्ञानिक तरीके से खेती को बढ़ावा देने के लिए बड़ा कदम उठाया है. वित्तीय वर्ष 2025-26 में राज्य के 25 जिलों में 32 नई अनुमंडलीय स्तरीय मिट्टी जांच प्रयोगशालाएं खोलने का निर्णय लिया गया है. इससे किसानों को अब जिला मुख्यालय तक नहीं जाना पड़ेगा, बल्कि अनुमंडल स्तर पर ही उन्हें यह सुविधा मिल सकेगी.
समय के साथ कृषि क्षेत्र में उपज तो बढ़ी है, लेकिन अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता में भारी गिरावट आई है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि समय-समय पर मिट्टी की जांच कराने से किसान सटीक उर्वरक प्रबंधन कर सकते हैं और कम लागत में बेहतर उपज ले सकते हैं. जांच के दौरान नाइट्रोजन (N), फॉस्फोरस (P), पोटाश (K), जिंक (Zn), सल्फर (S), आयरन (Fe) जैसे पोषक तत्वों की जानकारी मिलती है.
वर्तमान में बिहार में 133 मिट्टी जांच केंद्र कार्यरत हैं, जिनमें:
इसके अलावा कृषि विश्वविद्यालय और कृषि विज्ञान केंद्रों की प्रयोगशालाएं इस नेटवर्क को और मजबूत करती हैं.
पिछले साल राज्य में 5 लाख से अधिक मिट्टी के नमूनों की जांच की गई, जो किसानों के बीच बढ़ती जागरुकता को दर्शाता है. डिजिटल तकनीक के इस्तेमाल से नमूना जुटाने का काम पारदर्शी हुआ है और किसानों को सटीक रिपोर्ट मिलने लगी है. इससे न सिर्फ उपज बढ़ेगी, बल्कि किसान की आय और जीवन स्तर में भी सुधार होगा.
हालांकि, आज भी राज्य में बड़ी संख्या में किसान मिट्टी जांच से दूरी बनाए हुए हैं. एक कारण यह भी है कि बहुत से किसान मिट्टी का नमूना सही तरीके से निकालने की प्रक्रिया से अवगत नहीं हैं. इसके लिए सरकार को और व्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू करने की जरूरत है.
अब जब नई प्रयोगशालाएं बनेंगी, तो यह संख्या और बढ़ने की उम्मीद है. डिजिटल तकनीक से बिहार के किसानों को भरोसेमंद रिपोर्ट मिलने की उम्मीद है, जिससे किसान की आय और जीवन स्तर दोनों में सुधार होगा. सरकार मिट्टी की सेहत सुधारने और उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए लैब्स की संख्या बढ़ाने पर विचार कर रही है. बिहार सरकार हर साल लाखों सैंपल लेकर मिट्टी जांच का काम करती है और उसे किसानों को जानकारी देती है जिससे खेती में आसानी होती है.
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