बिहार में कस्टम हायरिंग सेंटर पर सरकार का जोरआधुनिकता के इस युग में कृषि क्षेत्र में निरंतर परिवर्तन हो रहे हैं. कम लागत में अधिक उत्पादन पाने और खेती को सरल और सुगम बनाने में आधुनिक कृषि यंत्रों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो चुकी है. हालांकि बिहार जैसे राज्य में, जहां लघु और सीमांत किसानों की संख्या अधिक है, उनके लिए कृषि में उपयोग होने वाले यंत्रों को खरीदना संभव नहीं हो पाता है. इन्हीं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कृषि विभाग की ओर से चतुर्थ कृषि रोड मैप के तहत सभी पंचायतों में कस्टम हायरिंग सेंटर बनाए जा रहे हैं.
इसी कड़ी में इस साल बिहार में करीब 267 नए कस्टम हायरिंग सेंटर बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. गौरतलब है कि कस्टम हायरिंग सेंटर लगने के बावजूद बहुत छोटे किसानों को इसका सीधा लाभ मिलता हुआ नहीं दिख रहा है. इन छोटे किसानों को मशीनों की सुविधा दिलाने के लिए सरकार ने बड़ी तैयारी की है.
बिहार के कृषि मंत्री राम कृपाल यादव ने कहा कि राज्य में बड़ी संख्या में किसान आर्थिक मजबूरियों के कारण आधुनिक कृषि यंत्र खरीदने में असमर्थ हैं. ऐसे लोगों के लिए कस्टम हायरिंग सेंटर वरदान सिद्ध होगा. वे मामूली किराए पर जुताई, बुआई या रोपनी, कटाई, हार्वेस्टिंग और थ्रेसिंग जैसे कार्यों के लिए सभी प्रकार के आधुनिक कृषि यंत्र पा सकेंगे. इस तरह की योजना बिहार की कृषि को आधुनिक, समयबद्ध और लाभकारी बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल है.
बिहार के 38 जिलों में कुल 8053 ग्राम पंचायतें हैं. इनमें से अभी तक 950 पंचायतों में कस्टम हायरिंग केंद्र स्थापित किए जा चुके हैं. वहीं वर्ष 2025–26 में 267 नए कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. कृषि मंत्री ने कहा कि प्रत्येक कस्टम हायरिंग सेंटर की स्थापना के लिए प्रगतिशील किसान, जीविका समूह, ग्राम संगठन, क्लस्टर फेडरेशन, आत्मा से संबद्ध फार्मर इंटरेस्ट ग्रुप (एफआईजी), नाबार्ड या राष्ट्रीयकृत बैंकों से संबद्ध किसान क्लब, कृषक उत्पादक संगठन (एफपीओ) या किसान उत्पादक कंपनी (एफपीसी), स्वयं सहायता समूह और पैक्स को 10 लाख रुपये की राशि दी जाती है.
सरकार की ओर से प्रत्येक जिले में कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित कर लघु और छोटे किसानों को कृषि यंत्र उपलब्ध कराने की दिशा में भले ही एक सार्थक कदम उठाया गया हो, लेकिन कई ऐसे पंचायत हैं जहां कस्टम हायरिंग सेंटर स्थापित होने के बावजूद वहां के किसानों को इसकी सही जानकारी या इससे जुड़ी सेवाएं उपलब्ध नहीं हो पाती हैं.
इस तरह की स्थिति को बेहतर करने के लिए सरकार को जमीनी स्तर पर कुछ कड़े कदम उठाने की आवश्यकता है. जिस राज्य में लगभग 90 प्रतिशत किसान लघु एवं सीमांत श्रेणी में आते हैं, यदि उन्हें इस प्रकार की सुविधाएं बेहतर तरीके से उपलब्ध कराई जाएं, तो उनकी आमदनी में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है.
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