कौन हैं अखिलेश को 'धोखा' देने वाले सपा विधायक मनोज पांडे, उनकी एक चाल पड़ेगी पार्टी को भारी!

कौन हैं अखिलेश को 'धोखा' देने वाले सपा विधायक मनोज पांडे, उनकी एक चाल पड़ेगी पार्टी को भारी!

उत्‍तर प्रदेश में राज्‍यसभा चुनावों से ठीक पहले सपा के विधायक पार्टी के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर देखे गए मनोज पांडे ने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया. मनोज सपा में मुख्‍य सतेचक के पद पर थे. मनोज का फैसला अखिलेश के लिए बड़ा झटका था. मनोज पर अखिलेश बहुत भरोसा करते थे.

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कौन हैं अखिलेश को 'धोखा' देने वाले सपा विधायक मनोज पांडे, उनकी एक चाल पड़ेगी पार्टी को भारी! मनोज पांडे का 'धोखा' पड़ेगा अखिलेश पर भारी

27 फरवरी को उत्‍तर प्रदेश में राज्‍यसभा चुनावों के लिए  वोट डाले गए. इन चुनावों को लोकसभा चुनावों से पहले एक सेमीफाइनल के तौर पर देखा गया. मतदान से ठीक पहले समाजवादी पार्टी (सपा) के विधायक पार्टी के ब्राह्मण चेहरे के तौर पर देखे गए मनोज पांडे ने अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया. मनोज सपा में मुख्‍य सतेचक के पद पर थे. मनोज का फैसला अखिलेश के लिए बड़ा झटका था. मनोज पर अखिलेश बहुत भरोसा करते थे. उनकी देखा-देखी सपा के छह और विधायकों ने क्रॉस वोटिंग की जिसकी वजह से पार्टी के तीसरे उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा. मनोज का यह कदम लोकसभा चुनावों में भी अखिलेश को काफी नुकसान पहुंचाने वाला साबित हो सकता है. 

अखिलेश के खास मनोज 

वह सन् 1990 के दशक के अंत में सपा की यूथ विंग में शामिल हुए थे. धीरे-धीरे वह पार्टी के मुखिया और पूर्व यूपी सीएम अखिलेश यादव के खास बन गए. मनोज, अखिलेश के सबसे भरोसेमंद सहयोगियों में से एक बनकर उभरे. विधानसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक के रूप में उन्हें पार्टी के बाकी वरिष्ठ नेताओं से ज्‍यादा तवज्‍जो दी गई थी. मनोज, ऊंचाहार विधानसभा क्षेत्र से तीन बार के विधायक हैं. यह रायबरेली संसदीय सीट के अंतर्गत आता है. 

55 साल के मनोज पांडे साल 2000 के दशक की शुरुआत में कुछ समय के लिए भाजपा में शामिल हुए थे. लेकिन साल 2007 के विधानसभा चुनावों से पहले वह सपा में लौट आए और फिर से पार्टी के अच्छे नेताओं में शामिल हो गए. साल 2012 में अखिलेश के नेतृत्व वाली सपा सरकार के सत्ता में आने के दो साल बाद उन्हें कृषि राज्य मंत्री बनाया गया. बाद में उन्हें कैबिनेट रैंक पर प्रमोट किया गया.

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पार्टी को कैसे होगा नुकसान 

सपा के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो पांडे के जाने से पार्टी को भी नुकसान होगा. मनोज को सीनियर लीडर और ओबीसी चेहरे स्वामी प्रसाद मौर्य के पार्टी छोड़ने के कारणों में से एक माना जाता है. सूत्रों के मुताबिक अखिलेश बार-बार मौर्य की तरफ से पांडे के खिलाफ की गई शिकायतों को नजरअंदाज करते जा रहे थे. मौर्य ने पार्टी से बाहर निकलते समय सपा पर पिछड़ों के प्रति किए गए वादों से मुकर कर उन्‍हें धोखा देने का आरोप लगाया था. मौर्य और पांडे के बीच की दुश्‍मनी काफी पुरानी है. 

जब साल 2012 में मनोज पांडे ने पहली बार विधानसभा चुनाव जीता था तो उस समय उन्‍होंने मौर्य के बेटे और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के उम्मीदवार उत्कृष्‍ट को मात दी थी. साल 2017 में जब एसपी और कांग्रेस ने गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ा तो पांडे ने कांग्रेस को सीट देने का वादा किए जाने के बावजूद, ऊंचाहार से चुनाव लड़ने पर जोर दिया था. उन्होंने साल 2022 के चुनावों में भाजपा के अमरपाल मौर्य को करीब 7000 वोटों से हराकर सीट बरकरार रखी.

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कांग्रेस भी भुगतेगी खामियाजा  

पांडे का सपा से बाहर जाना लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के लिए भी परेशानी का सबब बन सकता है. कांग्रेस का गढ़ रही रायबरेली राज्य की उन 17 सीटों में से एक है, जिस पर पार्टी सपा के साथ सीट-बंटवारे समझौते के तहत चुनाव लड़ेगी. सबसे पुरानी पार्टी वहां आसानी से चुनाव लड़ने के लिए अखिलेश के नेतृत्व वाले दल पर भरोसा कर रही है. माना जा रहा है कि इस वजह से ही पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी इस बार इस सीट से चुनाव नहीं लड़ेंगी. 

पांडे ने अभी तक सपा की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है और न ही अपने भविष्य के कदम के बारे में कोई इशारा किया है. लेकिन ऐसी सुगबुगाहटें हैं कि भाजपा, रायबरेली से पांडे को लोकसभा चुनाव में मैदान में उतार सकती है. वोट डालने के बाद पांडे ने कहा कि खरीद-फरोख्त के आरोप आम हैं, लेकिन उन्होंने विस्तार से बताने से इनकार कर दिया. 

अखिलेश बोले, होगी कार्रवाई 

पांडे के इस्तीफे और विधायकों की क्रॉस वोटिंग पर प्रतिक्रिया देते हुए, अखिलेश ने कहा कि जिनमें सरकार के खिलाफ खड़े होने की हिम्मत नहीं थी, वे चले गए हैं और उनके खिलाफ कार्रवाई की बात भी कही. वहीं दूसरी ओर सीनियर बीजेपी लीडर और मंत्री दया शंकर सिंह ने कहा कि पांडे हमेशा 'सनातन धर्म के समर्थक' रहे हैं और 'अयोध्या नहीं जा पाने से आहत' थे.  उनका इशारा राम मंदिर प्रतिष्ठा समारोह से दूर रहने के कांग्रेस नेतृत्व के फैसले की तरफ था. 

 

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