तेलंगाना के मंचेरियल में NH 363 के लिए जमीन देने वाले किसान मांग रहे और मुआवाज, जानें क्‍या है सारा मामला 

तेलंगाना के मंचेरियल में NH 363 के लिए जमीन देने वाले किसान मांग रहे और मुआवाज, जानें क्‍या है सारा मामला 

साल 2020 में महाराष्‍ट्र के चंद्रपुर को तेलंगाना के मंचेरियल से जोड़ने के मकसद से एक नेशनल हाइवे (एनएच 363) का निर्माण शुरू हुआ था. कुछ ही महीने पहले इस हाइवे को ट्रैफिक के लिए खोला गया है. इस जिले से होकर गुजरने वाले 94 किलोमीटर लंबे फोर के रोड नेटवर्क को बिछाने के लिए यहां के किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया था.

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तेलंगाना के मंचेरियल में NH 363 के लिए जमीन देने वाले किसान मांग रहे और मुआवाज, जानें क्‍या है सारा मामला तेलंगाना के किसानों को नहीं मिला सही मुआवजा?

साल 2020 में महाराष्‍ट्र के चंद्रपुर को तेलंगाना के मंचेरियल से जोड़ने के मकसद से एक नेशनल हाइवे (एनएच 363) का निर्माण शुरू हुआ था. कुछ ही महीने पहले इस हाइवे को ट्रैफिक के लिए खोला गया है. इस जिले से होकर गुजरने वाले 94 किलोमीटर लंबे फोर के रोड नेटवर्क को बिछाने के लिए यहां के किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया गया था. चार साल बाद भी यहां के किसानों को सही मुआवजे का इंतजार है और अब किसान इस हाइवे के एवज में एक सही  मुआवजे के लिए आवाज बुलंद कर रहे हैं.

मुआवजे में अंतर का आरोप 

वेबसाइट तेलंगाना टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार थंडूर मंडल के बोयापल्ली और इस क्षेत्र के कई और गांवों के कई किसानों ने आरोप लगाया है कि उन्हें बाकी किसानों की तुलना में कम मुआवजा दिया गया. इन किसानों का कहना है कि उन्होंने साल 2020 में मुआवजे में इजाफे की मांग की थी. साथ ही रेवेन्‍यू ऑफिसर्स को इससे जुड़ी एप्‍लीकेशन भी दी थी. लेकिन अभी तक उन्हें कुछ नहीं मिला है. बोयापल्ली की एक बुजुर्ग महिला दसारी कमला देवी की 41 गुंटा जमीन साल 2020 में राजमार्ग बनाने के लिए अधिग्रहित की गई थी. उन्हें करीब 350 रुपये प्रति वर्ग मीटर का मुआवजा दिया गया था.

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कुछ किसानों को मिला ज्‍यादा मुआवजा 

कमला के बेटे रघु की मानें तो उन्‍होंने जनहित के लिए भूमि अधिग्रहण के लिए जिम्मेदार अधिकारी के पास आवेदन देकर उनसे मुआवजा बढ़ाने का अनुरोध किया था लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. रघु का कहना है कि उनके पड़ोसी किसान चिप्पा रमेश और बाकियों को 1,370 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से मुआवजा दिया गया है. कमला देवी की जमीन सड़क के पास थी, जबकि रवि की जमीन सड़क से दूर थी. फिर भी, रमेश को कमला की तुलना में काफी ज्‍यादा मुआवजा मिला है. 

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मिडिलमैन की जानकारी न होने से नुकसान 

बताया जा रहा है कि रमेश और बाकी किसानों ने एक वकील की मदद से बिचौलिए से संपर्क किया था. रघु को हालांकि बिचौलिए के बारे में पता नहीं था. यह तीन साल और 90 दिनों की निर्धारित अवधि के अंदर जमीन गंवाने वालों की शिकायतों को संबोधित करने के लिए एक विशेष और आसान सुविधा है. कमला ही नहीं, कई और किसानों को देश में नेशनल हाइवे से जुड़ी भूमि अधिग्रहण के मामलों के तुरंत निपटान के लिए हाईकोर्ट की तरफ से बनाई गई मिडिलमैन की सुविधा के बारे में कोई जानकारी नहीं है.  

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कौन होता है किसानों के लिए मिडिलमैन 

किसी जिले के कलेक्टर को जमीन और उसकी कीमतों के बारे में उसकी जानकारी को देखते हुए मध्यस्थ के तौर पर नियुक्त किया जाता है. वह जमीन देने वालों के बयान सुनने और जमीन के बाजार मूल्य को ध्यान में रखते हुए मुआवजा बढ़ा सकता है. विशेषज्ञों की मानें तो रेवन्‍यू ऑफिसर्स की तरफ से न तो एप्‍लीकेशन पर कोई जवाब दिया गया है और न ही किसानों को सही मुआवजा मिले इसके लिए उन्‍हें मध्‍यस्‍थ की सुविधा के बारे में बताया गया है. 

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