पूसा के कृषि वैज्ञानिकों ने आने वाले दिनों में हल्की बारिश की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी है कि वो कटी फसलों को सुरक्षित कर लें ताकि नुकसान न हो. किसानों को सलाह है कि खरीफ फ़सलों (धान) के बचे हुए अवशेषों (पराली) को न जलाएं. क्योंकि इससे वातावरण में प्रदूषण ज़्यादा होता है.
पराली जलाने से स्वास्थ्य संबंधी बीमारियों की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में किसानों को सलाह है कि धान के बचे हुए अवशेषों को जमीन में मिला दें, इससे मिट्टी की उर्वकता बढ़ती है. साथ ही यह पलवार का भी काम करती है.
इससे मिट्टी से नमी का वाष्पोत्सर्जन कम होता है. नमी बनी रहती है. धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग करें. यह बहुत ही कारगर है. एक हेक्टेयर के खेत में धान की पराली को गलाने के लिए 4 कैप्सूल की जरूरत होगी.
मौसम को ध्यान में रखते हुए किसानों को सलाह है कि धान की पकने वाली फसल की कटाई से दो सप्ताह पूर्व सिंचाई बंद कर दें. फसल कटाई के बाद फसल को 2-3 दिन खेत में सुखाकर गहाई कर लें. उसके बाद दानों को अच्छी प्रकार से धूप में सुखा लें.
अनाज को भंडारण में रखने से पहले भंडार घर की अच्छी तरह सफाई करें. रबी की फसल की बुवाई से पहले किसान अपने-अपने खेतों को अच्छी प्रकार से साफ-सुथरा करें. मेड़ों, नालों, खेत के रास्तों और खाली खेतों को साफ-सुथरा करें, ताकि कीटों के अंडे तथा रोगों के कारक नष्ट हो जाएं.
तापमान को ध्यान में रखते हुए किसान सरसों की बुवाई कर सकते हैं. मिट्टी जांच के बाद यदि गंधक की कमी हो तो 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई पर डालें. बुवाई से पूर्व मिट्टी में उचित नमी का ध्यान अवश्य रखें. सरसों की उन्नत किस्मों में पूसा विजय, पूसा सरसों-29, पूसा सरसों-30 और पूसा सरसों-31 शामिल हैं.
इसकी बीज दर 1.5-2.0 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से लगेगी. बुवाई से पहले खेत में नमी के स्तर को अवश्य जांच लें. ताकि अंकुरण प्रभावित न हो. बुवाई से पहले बीजों को केप्टान @ 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचार करें. बुवाई कतारों में करना अधिक लाभकारी रहता है.
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