बीकॉम तक पढ़ाई करने के बाद गौतम राठौड़ ने तलेगांव में एक गैराज शुरू किया. मेहनत को किस्मत का साथ मिला और इसमें सफलता मिल गई. लेकिन खुशहाल जिंदगी ज्यादा दिन नहीं चली और गौतम को कैंसर हो गया. जिसके चलते उनकी एक किडनी निकालनी पड़ी. बीमारी के कारण वह भारी काम नहीं कर पाते थे, इसके बावजूद उन्होंने नई उम्मीद के साथ एरोपोनिक तरीके से खेती करने का फैसला किया. वह इसमें सफल रहे हैं. अपने अथक परिश्रम से उन्होंने यह साबित कर दिया है कि कश्मीर की तरह पुणे के तलेगांव दाभाड़े में भी अच्छी गुणवत्ता वाले केसर की पैदावार संभव है. वो सिर्फ 10 × 12 फुट के कमरे में केसर की खेती करते हैं और इससे उन्हें ठीक कमाई हो जाती है.
कृषि में इनोवेशन उनकी विशेष रुचि का विषय है. राठौड़ ने कुछ वर्षों तक बागवानी का काम किया. बाद में उन्होंने मैकेनिकल क्षेत्र की ओर रुख किया. उन्होंने अपने घर के पास अपना एक गैरेज शुरू किया. लगभग 20 वर्षों तक उन्होंने गैरेज चलाया, लेकिन नियति को यह मंजूर नहीं था. इसी बीच उन्हें कैंसर का पता चला, दाहिनी किडनी में कैंसर का ट्यूमर बढ़ रहा था.लेकिन कैंसर की सर्जरी के बाद गौतम गैराज में भारी काम नहीं कर सकते थे, इसलिए उन्होंने कार्य क्षेत्र बदलने का निर्णय लिया. उनका विचार था कि अच्छी तकनीक का उपयोग कर बागवानी की जानी चाहिए.
केसर की खेती का एक वीडियो देखने के बाद केसर के बारे में उनकी जिज्ञासा बढ़ने लगी. जिसके बाद उन्होंने केसर के विषय पर शोध किया. कार्यशालाओं में भाग लिया, केसर की खेती का प्रशिक्षण लिया और एक बंद छत वाले कमरे में केसर लगाने का निर्णय लिया.
गौतम राठौड़ ने अपनी बिल्डिंग की छत पर करीब दस बाई बारह फुट के कमरे में वर्टिकल फार्मिंग के जरिए केसर की खेती के लिए माहौल तैयार किया है. जैसे ही उनकी इच्छाशक्ति बढ़ी, वे अगस्त में कश्मीर से केसर के बीज लाए और काम शुरू कर दिया.
तीन महीने बाद यानी अक्टूबर के महीने में, उनकी केसर की फसल पूरी तरह से तैयार हो गई. जिसके बाद उन्होंने वैज्ञानिक तरीके से केसर की कटाई शुरू कर दी. इस समय 12 से 13 मिमी लंबे केसर की कीमत फिलहाल 800 रुपये प्रति ग्राम है. जबकि टुकड़ा केसर 400 रुपये प्रति ग्राम के हिसाब से बिकता है.
गौतम राठौड़ ने इस गुणवत्ता वाले केसर की बिक्री का लाइसेंस लेकर इसे सभी तक पहुंचाने की मंशा जताई. राठौड़ का कहना है कि बड़ी से बड़ी बीमारी में लोगों को हौसला रखना चाहिए.
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