इस साल मई के आखिरी सप्ताह में तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में नारियल की खेती करने वाले किसानों ने नारियल का एमएसपी बढ़ाने और इसके प्रसंस्करण से जुड़ी सुविधाओं काे बेहतर बनाने की मांग को लेकर बड़ा आंदोलन किया था. वामपंथी दलों के किसान प्रकोष्ठ ऑल इंडिया किसान सभा (AIKS) की अगुवाई में किया गया यह आंदोलन महज नारियल किसानों की मांग को पूरा करने के मकसद से आयोजित नहीं किया गया था, बल्कि इसके राजनीतिक निहितार्थ भी थे. दक्षिण भारत में नारियल की राजनीति के मायनों को भांप कर ही केंद्र में भाजपा की मोदी सरकार कदम दर कदम नारियल के किसानों को साधने में जुटी है. इसके लिए मोदी सरकार, कृषि उपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को निर्धारित करने के अपने अधिकार काे Effective Tool के रूप में लगातार इस्तेमाल कर रही है. इसी का नतीजा है कि 2014 से लेकर अब तक, बीते 10 सालों में नारियल के Minimum Support Price (MSP) में 118 फीसदी का भारी इजाफा हो चुका है. दिसंबर के अंतिम सप्ताह में भी मोदी कैबिनेट द्वारा नारियल की एमएसपी में इजाफा करना इसी कवायद का हिस्सा था.
मोदी सरकार ने नारियल का तेल निकालने के काम आने वाले मिलिंग कोपरा का एमएसपी पिछले सीजन की तुलना में 300 रुपए इजाफे के साथ अब 11,160 रुपये प्रति कुंतल कर दिया है. वहीं बतौर गरी, खाने में इस्तेमाल होने वाले नारियल गोला यानी बॉल कोपरा का एमएसपी अब 250 रुपए की बढ़ोतरी के साथ 12 हजार रुपये प्रति कुंतल हो गया है.
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इससे पहले मोदी सरकार ने नारियल की एमएसपी में सबसे ज्यादा इजाफा 2020 में करते हुए मिलिंग कोपरा की एमएसपी 439 रुपये प्रति कुंतल और बॉल कोपरा की एमएसपी 380 रुपये प्रति कुंतल बढ़ाई थी. मोदी सरकार ने 2018-19 के बजट में घोषणा की थी कि एमएसपी के दायरे में आने वाली कृषि उपजों के खरीद मूल्य को, लागत का कम से कम डेढ़ गुना किया जाएगा. नारियल का 2024 में एमएसपी का स्तर, मोदी सरकार की 2018-19 की प्रतिबद्धता के स्तर से ऊपर हो गया है.
यह बात दीगर है कि नारियल की एमएसपी में इजाफे का सिलसिला 2014 से ही शुरू हो गया था. परिणामस्वरूप में 2014 में मिलिंग कोपरा की एमएसपी 5,250 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर अब 11,160 रुपये प्रति कुंतल हो गई है. वहीं बॉल कोपरा की एमएसपी 5500 रुपये प्रति कुंतल से बढ़कर 12 हजार रुपये प्रति कुंतल हो गई है.
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इस साल मई में कन्याकुमारी के नारियल किसानों का आंदोलन भले ही राष्ट्रीय मीडिया की सुर्ख़ियों में न रहा हो, मगर दिल्ली से देश चला रही मोदी सरकार ने इस आंदोलन के आईने में दक्षिण के किसानों की पल्स का सही अक्स देखने में कतई चूक नहीं की. नारियल की जिन दो किस्मों के एमएसपी को 10 साल में दो गुने से ज्यादा बढ़ाया गया है, उसमें मिलिंग कोपरा के सबसे बड़े उत्पादक राज्य केरल और तमिलनाडु हैं. जबकि वॉल कोपरा की उपज का गढ़ कर्नाटक है. इन 3 राज्यों की बदौलत ही नारियल के उत्पादन (1.5 करोड़ टन) में भारत दुनिया का अग्रणी देश है. मिलिंग कोपरा के उत्पादन और उत्पादकता के मामले में भारत दुनिया में अव्वल है.
इससे जुड़ी रोचक बात यह है कि इन तीनों राज्यों के लघु एवं सीमांत किसानों की मुख्य उपज नारियल ही है. यह जगजाहिर है कि देश के किसान समुदाय में लघु एवं सीमांत किसानों की ही संख्या तीन चौथाई से ज्यादा है. अब किसी को यह समझने में चूक नहीं होगी कि नारियल की एमएसपी में इजाफा करके केंद्र की भाजपा सरकार केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक के लघु एवं सीमांत किसानों के बड़े तबके को आसानी से साधने के लक्ष्य का संधान बीते 10 सालों से अनवरत क्यों कर रही है.
सियासी जमात के लिए राजनीति की इस नब्ज को पकड़ना लाजमी है कि कन्याकुमारी में नारियल के किसानों का आंदोलन वामपंथी छत्रछाया में जरूर हुआ, मगर दक्षिणपंथी भाजपा ने ही इस के राजनीतिक नफा नुकसान को टटोलने की जहमत उठाई है. बेशक, इसका नतीजा 2024 में ही देखने को मिलेगा.
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