बारिश का मौसम चल रहा है. इस समय हर तरफ हरियाली होती है और पशुओं के लिए पर्याप्त मात्रा में हरा चारा उपलब्ध रहता है. लेकिन फिर बारिश का मौसम खत्म होने पर हरे चारे की कमी होने लगती है. खास कर गर्मियों में हरे चारे की बिल्कुल कमी हो जाती है. ऐसे में पशुपालकों को अपने मवेशियों का पेट भरने के लिए परेशानियों का सामना करना पड़ता है. हालांकि एक ऐसा उपाय है जिसके जरिए पशुपालक पूरे साल अपने पशुओं को हरा चारा खिला सकते हैं. यह ऐसे समय में काम आता है जब बाहर पशुओं के खाने के लिए हरा चारा नहीं बचता है. इस हरे चारे को साइलेज कहा जाता है. यह पोषक तत्वों से भरपूर होता है और पशुओं के लिए काफी फायदेमंद भी होता है.
इसके इस्तेमाल से दूध का उत्पादन भी बढ़ता है और किसानों की कमाई भी बढ़ती है. साइलेज उस चारे को कहा जाता है जिसे हारा चारा अधिक मात्रा में होने पर घास को सूखा कर स्टॉक कर लिया जाता है. साइलेज तैयार करना आसान होता है. देश के कई सरकारी संस्थानों में किसानों और पशुपालकों को घास से साइलेज बनाने की विधि सिखाई जाती है. विशेषज्ञों की मानें तो जब किसानों के पास हरा चारा अधिक मात्रा में हो तो वे इसका साइलेज बनाकर रख सकते हैं. इसे पूरे साल अपने पशुओं को खिला भी सकते हैं और इसे बेचकर अच्छी कमाई कर सकते हैं. मथुरा स्थित केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान के अलावा दूसरे कृषि विश्वविद्यालयों में किसानों को साइलेज बनाने की विधि बताई जाती है.
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साइलेज बनाने के लिए सबसे पहले चारा वाली फसलों का चुनाव करना पड़ता है. इसमें मक्का, ज्वार, बाजरा, जई या नेपियर घास को ले सकते हैं. इसके बाद सभी चारे को अच्छे से कुट्टी की तरह काटकर एक गड्डे में प्लास्टिक बिछाकर और गड्ढे की दीवारों में प्लास्टिक लगाकर उसमें अच्छे तरीके से दबा-दबा कर भरें. बीच-बीच में इसमें नमक डालते रहें, यह प्रिजर्वेटिव का काम करता है. जब यह गड्ढा पूरी तरह से भर जाए तब इसके ऊपर से हरी घास डालें और उसके ऊपर मिट्टी से भरकर गड्ढे को अच्छे से दबा दें. सितंबर महीने में यह काम करें. इससे अंदर दो से तीन महीने में साइलेज तैयार हो जाता है. साइलेज तैयार होने के बाद इससे एक विशेष प्रकार की सुगंध आती है. इसे दिसंबर से लेकर मार्च तक पशुओं को खिला सकते हैं.
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