पपीते की खेती लाभदायक होती है. इसकी खेती में कम लागत में किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं. कई ऐसे किसान हैं जो छोटी जोत वाली जमीन पर भी पपीते की खेती करके अच्छी कमाई कर रहे हैं और आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बन रहे हैं. बिहार के गया जिला अंतर्गत टनकुप्पा प्रखंड के किसान ईश्वर कुमार वर्मा भी एक ऐसे ही किसान हैं जिन्होंने पारंपरिक खेती को छोड़कर पपीते की खेती को चुना और आज वो अच्छी कमाई कर रहे हैं. ईश्वर वर्मा ने हाल ही में अपनी छोटी जोत की जमीन पर पपीते के खेती शुरू की है. उनके खेत में पपीते के फल लहलहा रहे हैं.
ईश्वर ने बताया कि वो अपनी तीन कट्ठे की जमीन में पपीते की खेती करते हैं. उन्होंने बताया कि आत्मा (ATMA) और जिला बागवानी विभाग, गया से उन्होंने पपीते की खेती के लिए प्रशिक्षण हासिल किया था. इसके बाद अपनी तीन कट्ठा जमीन में उन्होंने पपीते की खेती की. ईश्वर ने आगे बताया कि इसकी खेती से उन्हें बहुत अच्छा अनुभव हो रहा है. पपीते की खेती में फायदा यह है कि कम लागत में और कम पानी के खर्च में इसकी अच्छी पैदावार हासिल कर सकते हैं. इसकी खेती के लिए सबसे पहले अच्छी गुणवत्ता वाले किस्म का चयन करना पड़ता है.
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ईश्वर वर्मा ने बताया कि उन्होंने पपीते की खेती करने के लिए सबसे पहले खुद से ही नर्सरी तैयार की. नर्सरी में जब पौधे तैयार हो गए तब उन्होंने पपीते के पौधे लगाए. रोपाई करने के बाद समय-समय पर इसकी देखभाल करते रहे. समय पर खर पतवार को साफ किया गया. समय पर निराई गुड़ाई की गई. इसके साथ ही समय-समय पर पौधों में खाद और पानी डाला गया जिससे पौधे अच्छे तैयार हुए हैं और सभी में फल लदा हुआ है. आज ईश्वर वर्मा अपने पेड़ को देखकर बहुत खुश हैं. उन्होंने बताया कि वो जैविक खेती भी करते हैं.
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उनके यहां किसान पाठशाला चलती है. इस किसान पाठशाला से प्रशिक्षण लेकर अब वो जैविक खेती भी कर रहे हैं. उन्होंने धान, गेहूं और सब्जियों की जैविक खेती की शुरुआत की है. जैविक खेती में सब्जी का उत्पादन काफी अच्छा हुआ है और फायदा भी हुआ है क्योंकि सब्जी की खेती में सबसे अधिक खर्च किसानों का खाद और बीज में ही होता है. उन्होंने बताया कि वे खुद अपने घरों में खाद और दवा का निर्माण रहे हैं और अपने खेतों में इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे फसलों का उत्पादन बढ़ा है और बाजार से खाद और बीज खरीदने का खर्च कम हुआ है. विभाग की तरफ से प्रशिक्षण मिलने के बाद यह सब काम आसान हो पाया है.
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