आलू, प्याज, टमाटर और हरी सब्जियों के दाम बढ़ने से आम जनता के लिए वेज के मुकाबले नॉन-वेज खाना ही सस्ता हो गया है. क्रिसिल की रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई में हरी सब्जियों की कीमत इतनी अधिक बढ़ गई कि घर पर पकाई गई चिकन थाली की औसत लागत शाकाहारी थाली से कम हो गई. यानी अगर आप दाल और सब्ज़ियों के बजाय चिकन पसंद करते हैं, तो आपको पिछले महीने कम कीमत चुकानी पड़ी होगी, क्योंकि ब्रॉयलर की कीमतें स्थिर हैं और टमाटर, प्याज़ और आलू की कीमतों में भारी उछाल आया है.
फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, घर पर थाली तैयार करने की औसत लागत की गणना उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम भारत में प्रचलित इनपुट कीमतों के आधार पर की जाती है. मासिक परिवर्तन आम आदमी के खर्च पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाता है. क्रिसिल के डेटा से यह भी पता चलता है कि थाली की लागत में बदलाव लाने वाली सामग्री (अनाज, दालें, ब्रॉयलर, सब्ज़ियां, मसाले, खाद्य तेल और रसोई गैस) अहम रोल आदा करते हैं. क्रिसिल एमआईएंडए रिसर्च के अनुमान के अनुसार, जुलाई में घर में पकाए गए नॉन-वेज थाली की कीमत में 9 फीसदी की कमी आई, जबकि इसी महीने में वेज थाली की कीमत में सालाना आधार पर 4 फीसदी की गिरावट आई.
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वित्त वर्ष 2024 में ब्रॉयलर की कीमतों में अनुमानित 11 फीसदी की गिरावट के कारण नॉन-वेज थाली की कीमत में गिरावट आई. नॉन-वेज थाली की लागत में ब्रॉयलर पोल्ट्री का हिस्सा 50 फीसदी है. इस बीच, पिछले वित्त वर्ष के उच्च आधार पर टमाटर की कीमतों में 40 फीसदी की गिरावट के कारण घर में पकाए गए वेज थाली की कीमत में 4 फीसदी की गिरावट आई. जुलाई 2023 में टमाटर की कीमतें 110 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गई थीं, जो उत्तरी राज्यों से आपूर्ति को प्रभावित करने वाली अचानक बाढ़ से प्रभावित थी.
क्रिसिल के अनुसार, अब, महीने-दर-महीने के आधार पर, नॉन-वेज और वेज थाली दोनों की लागत क्रमशः 6 प्रतिशत और 11 प्रतिशत बढ़ गई है. वेज थाली की कीमत में कुल 11 प्रतिशत की वृद्धि में से 7 प्रतिशत वृद्धि केवल टमाटर की कीमतों के कारण हो सकती है, जो जून में लगभग 42 रुपये प्रति किलोग्राम से जुलाई में लगभग 66 रुपये प्रति किलोग्राम हो गया. क्रिसिल ने कहा कि यह मुख्य रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे प्रमुख राज्यों में गर्मियों की फसल को प्रभावित करने वाले उच्च तापमान के कारण महंगाई बढ़ी है. इसके अलावा, कर्नाटक में मई में छिटपुट बारिश ने सफेद मक्खी के संक्रमण को बढ़ा दिया, जिससे फसल उत्पादन प्रभावित हुआ.
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