मोटे अनाज के उपभोग और उत्पादन पर इस वक्त पूरी दुनिया ध्यान दे रही है. मोटे अनाज की खेती और इस्तेमाल को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2023 को अंतराष्ट्रीय मिलेट वर्ष भी घोषित किया गया था. मोटे अनाज को लेकर लोगों की जागरूकता अब बढ़ी है क्योंकि अब लोग इसके बारे में पूछ रहे हैं और जानकारी हासिल कर रहे हैं. मोटे अनाज का एक फायदा यह भी है कि इसके सेवन से कई बीमारियों से छुटकारा मिल सकता है. साथ ही यह सेहत का खजाना होता है. इसलिए अब मिलेट्स को लेकर भी स्टार्टअप्स शुरू हो रहे हैं. झारखंड में भी मिलाइफ के नाम से एक स्टार्टअप शुरू किया गया है. इसके जरिए झारखंड में मिलेट को लेकर एक नई संभावना दिखाई दे रही है.
झारखंड में मिलाइफ के स्टार्टअप को शुरू करने वाले पंकज रॉय बताते हैं कि इस स्टार्टअप को शुरू करने से पहले उन्होंने झारखंड और इसकी कृषि को समझा है. वो खुद एक किसान हैं और खेती करते हैं. उन्होंने कहा की झारखंड में जिस तरह की भौगोलिक स्थिति है, पठारी जमीन है, सिंचाई की सुविधा नहीं है, ऐसे में मोटे अनाज की खेती झारखंड के लिए बेस्ट मानी जा सकती है. झारखंड में मोटे अनाज की खेती कोई नई बात नहीं है. तीन चार दशक पहले तक यहां पर जनजातीय समूहों में मड़ुआ (रागी), गोंदली और कोदो की खेती बड़े पैमाने पर की जाती थी. मोटे अनाज यहां की संस्कृति का हिस्सा हैं. यही कारण है कि आज भी शादी ब्याह और पूजा जैसे आयोजनों में मोटे अनाज का इस्तेमाल किया जाता है.
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पंकज रॉय ने बताया कि झारखंड में मोटे अनाज की खेती की असीम संभावनाओं को देखते हुए उन्होंने यहां पर मोटे अनाज का स्टार्टअप शुरू किया है. इतना ही नहीं, मोटे अनाज की खेती को राज्य में बढ़ावा देने के लिए भी उनका स्टार्टअप काम कर रहा है ताकि उन्हें अपने स्टार्टअप के लिए कच्चा माल अपने राज्य से ही मिल जाए. उन्होंने बताया कि मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के तहत लगभग 15-20 हजार महिला किसानों को इसकी खेती से जोड़ा जा रहा है. उन्हें इसके लिए मुफ्त बीज बांटे जाएंगे. साथ ही मोटे अनाज की खेती की ट्रेनिंग दी जाएगी. इसके अलावा मिलाइफ का प्रयास है कि मिलेट्स जैसे कोदो, कुटकी, सावां और गोंदली की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा जिसकी खेती अब बेहद ही कम हो गई है.
मिलाइफ के संस्थापक पंकज रॉय ने कहा कि झारखंड की कृषि से संबंधित परिस्थितिया अलग है और यह एक पठारी क्षेत्र जो इस प्रदेश को मोटे अनाज के उत्पादन के लिए अनुकूल बनाती है. जिस तरह से मोटे अनाजों की उपभोग लेकर चर्चा बढ़ी और संयुक्त राष्ट्र के द्वारा 2023 को मोटे अनाज का वर्ष घोषित किया गया है. बदलते परिवेश में जिस तरह से मोटे अनाजों की वैश्विक मांग बढ़ी है और इसका प्रत्यक्ष लाभ झारखंड के किसानों को हो सके, इसके लिए मिलाइफ लगातार प्रयास कर रहा है. इसका फायदा जल्द ही यहां के किसानों को मिलने लगेगा.
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पंकज रॉय ने बताया कि मिललाइफ के लिए फिलहाल सबसे बड़ी समस्या मोटे अनाज के उपलब्धता की है क्योंकि यहां पर उत्पाद नहीं मिलते हैं. इसके कारण उन्हें दूसरी जगहों से कच्चा माल खरीदना पड़ता है. फिलहाल उनके पास कोदो, कुटकी, कंगनी, सावां और रागी के उत्पाद हैं. उनका कहना है कि जल्द ही वो बोकारो में झारखंड का पहला मिलेट प्रसंस्करण यूनिट खोलने वाले हैं और नए किसानों को इसकी खेती से जोड़कर झारखंड में इसकी खेती को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर झारखंड में मोटे अनाज पर एमएसपी दी जाए और किसानों को बेहतर भाव दिया जाए तो झारखंड देश का मिलेट कैपिटल बनने की क्षमता रखता है.
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