मकई की खेती देश में पूरे साल की जाती है. पानी की उपलब्धता होने पर अलग-अलग क्षेत्रों में किसान पूरे साल इसकी खेती करते हैं. पर मुख्य तौर पर यह खरीफ की फसल मानी जाती है. खरीफ सीजन में बड़े पैमाने पर इसकी खेती की जाती है. खास कर उन राज्यों में जहां किसान वर्षा आधारित सिंचाई पर निर्भर रहते हैं. उन राज्यों में किसान बारिश के सीजन में ऊपरी जमीन पर मकई की खेती करते हैं और इसकी खेती से अच्छा उत्पादन हासिल करते हैं. मकई की कीमत भी अच्छी मिलती है तो किसानों को इसे बेचकर अच्छा मुनाफा होता है. खास कर मकई का प्रसंस्करण होने के बाद इससे कई उत्पाद तैयार होते हैं, इसलिए बाजार में इसकी मांग भी बढ़ी है.
खरीफ में ही मकई की अधिक खेती क्यों की जाती है, इसके पीछे क्या वजह है और इससे किसानों को क्या फायदा होता है? यह जानना बेहद जरूरी है. दरअसल खरीफ मौसम में मक्के की खेती से जलवायु परिवर्तन के दौर में फसल चक्र सुधारने में मदद मिलती है और अधिक मुनाफा भी किसानों को होता है. यह एक ऐसी फसल है जो कम बारिश में भी तैयार हो जाती है और बेहतर उपज देती है. इसलिए किसानों को इससे यह लाभ होता है. अगर धान की खेती में उत्पादन थोड़ा कम भी होता है तो इससे भारपाई हो जाती है. मकई की खेती में धान की खेती से अधिक कमाई होती है.
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मक्का के खेती करके किसान प्रति हेक्टेयर 68 हजार रुपये तक शुद्ध आय कमा सकते हैं. जबकि धान की खेती करके किसान प्रति हेक्टेयर मात्र 35 हजार रुपये का ही शुद्ध मुनाफा कमा सकते हैं. इसलिए इस खबर में हम आपको बताएंगे कि खरीफ सीजन में मकई की खेती करना क्यों अधिक लाभदायक होता है. अधिक से अधिक किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं और अपनी आय को बढ़ा सकते हैं.
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कम पानी की आवश्यकताः मकई की खेती में धान और अन्य फसलों के मुकाबले कम पानी की आवश्यकता होती है. खरीफ मक्का की उपज में 627-628 मिमी प्रति हेक्टेयर पानी की आवश्यकता होती है. जबकि धान की खेती करने में 1000-1200 मिमी प्रति हेक्टेयर पानी की आवश्यकता होती है.
कम अवधिः मक्के का विकास चक्र धान की तुलना में छोटा होता है जिससे किसानों को अपनी फसल तेजी से काटने और बेचने में सुविधा मिलती है. इसके साथ ही मक्के के फसल चक्र के लाभ की बात करें तो खरीफ मकई को गेहूं और दालों जैसी अन्य फसलों के साथ उगाया जा सकता है. इससे मिट्टी की उर्रवरता में सुधार होता है. साथ ही कीट और बीमारियों का प्रकोप कम होता है.
उच्च उपज क्षमताः खरीफ मक्के की औसत उपज 50-55 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है. जबकि धान की औसत उपज 35-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है.
कीट और रोग का दबाव कमः खरीफ सीजन के मकई की खेती में कीट का प्रकोप कम होता है. इससे कीट प्रबंधन की लागत कम हो जाती है.
उच्च बाजार मांग और कीमतेंः खरीफ मक्के की कटाई आम तौर पर रबी मक्के के पहले की जाती है. यह बाजार में तब उपलब्ध होता है जब इसकी आपूर्ति अपेक्षाकृत कम होती है.
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