छत्तीसगढ़ के Forest Department की पहल पर Forest Experts ने राज्य में दंतेवाड़ा क्षेत्र के बचेली वन क्षेत्र में प्राचीन वनस्पतियों के एक जीवंत संग्रह की खोज की है. दुर्लभ प्रजाति की वनस्पतियों को खोजने से Biodiversity Research को बढ़ावा मिलेगा. राज्य की विष्णुदेव साय सरकार ने इस दिशा में कार्य योजना तैयार कर इस काम को आगे बढ़ाने का फैसला किया है. हाल ही में वन विभाग ने पारिस्थितिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण माने गए Forest Range में कड़ी मेहनत के बाद यह उपलब्धि हासिल की है. यह वनक्षेत्र बीजापुर के गंगालूर वन परिक्षेत्र तक फैला हुआ है. इस विशेष वन क्षेत्र में लुप्त हो रही कई प्राचीन वनस्पतियों की प्रजातियां मिली हैं. इससे छत्तीसगढ़ की असाधारण जैव विविधता को विश्व फलक पर लाने में मदद मिलेगी. इस क्षेत्र को वैज्ञानिकों और वन अधिकारियों द्वारा पहले से ही Biodiversity के लिहाज से अत्यधिक समृद्ध माना जाता रहा है. विशेषज्ञों के अनुसार, यह खोज न केवल इस क्षेत्र के पर्यावरणीय महत्व को दर्शाती है, बल्कि भविष्य में Forest Research और संरक्षण के प्रयासों को भी नई दिशा देगी.
मुख्यमंत्री साय ने दंतेवाड़ा क्षेत्र में बचेली से लेकर गंगालूर वन क्षेत्र तक फैली जैव विविधता को संरक्षित करने और वन अनुसंधान को बढ़ावा देने पर जोर दिया है. उन्हाेंने कहा कि इस वन क्षेत्र में मिले पेड़ करोड़ों साल पहले इस धरती पर पनपे थे. इस खोज से राज्य को Environmental Protection के क्षेत्र में एक नई पहचान मिलेगी.
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उन्होंने बताया कि समुद्र तल से 1,240 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह वन क्षेत्र Forest Type 8 श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है. इस श्रेणी में चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों के उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र (Subtropical Broad Leaved Hill Forest) आते हैं. इस वन क्षेत्र की खास बात यह है कि यह छत्तीसगढ़ का सबसे ऊंचाई वाला वन क्षेत्र है.
हालांकि छत्तीसगढ़ की पहचान Forest Type 3 और 5 श्रेणी के वन क्षेत्र की है. इस श्रेणी में मुख्य रूप से नम और शुष्क पर्णपाती वन (Moist and Dry Deciduous Forests) आते हैं. हाल ही में खोजा गया यह विशेष वन Patch Broad-leaved Hill Forest के नये पारिस्थितिकी तंत्र की मौजूदगी का अहसास कराता है.
वन विशेषज्ञों का मानना है कि इस वन क्षेत्र की वनस्पति, Western Ghat की वनस्पतियों से काफी हद तक मेल खाती है. इसलिए कांगेर घाटी के जंगलों की तरह, यह वन क्षेत्र भी विभिन्न प्रकार की प्रजातियों से समृद्ध है.
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इसके अलावा इस वन क्षेत्र में Human Activities के दबाव की कमी होने कारण इन प्रजातियों को यहां बिना किसी बाधा के पनपने में मदद मिली है. इस वन क्षेत्र को इन दुर्लभ पेड़ों का ’जीवित संग्रहालय’ माना जा रहा है. क्योंकि यहां कई प्राचीन पौधों की प्रजातियां संरक्षित हैं. एक अनुमान के मुताबिक ये Prehistoric Time, यहां तक कि Dinosaur Era से भी संबंधित हो सकती हैं. इसलिए माना जा रहा है कि यहां पाई गई कुछ वनस्पतियों की प्रजातियों को छत्तीसगढ़ में पहली बार दर्ज किया गया है.
इन खूबियों को दर्ज करने के लिए राज्य सरकार ने इस विशेष वन का तीन दिवसीय सर्वे कराया है. यह सर्वे राज्य के अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (विकास एवं योजना) अरुण कुमार पांडे के नेतृत्व में किया गया. इसका सर्वे करने वाले दल में पर्यावरणविदों और वन अधिकारियों के साथ Wildlife Trust of India तथा भारतीय वन सेवा (IFS) के आला अधिकारी भी शामिल थे.
सर्वे के दौरान, टीम ने दुर्लभ और प्राचीन वनस्पतियों की कई प्रजातियों का Documentation किया है. इनमें Tree Fern, ग्नेटम स्कैंडन्स, ज़िज़िफस रूगोसस, एंटाडा रहीडी, विभिन्न रुबस प्रजातियां, कैंथियम डाइकोकूम, ओक्ना ऑब्टुसाटा, विटेक्स ल्यूकोजाइलन, डिलेनिया पेंटागाइना, माचरेन्जा साइनेंसिस, और फिकस कॉर्डिफोलिया सहित अन्य दुर्लभ प्रजातियों के पेड़ शामिल हैं. सर्वे टीम का दावा है कि माचरेन्जा साइनेंसिस प्रजाति के पेड़ छत्तीसगढ़ में केवल इसी वन क्षेत्र में पाए गए है.
राज्य के प्रधान मुख्य वन संरक्षक वी श्रीनिवास राव ने कहा कि बचेली का ये बेहद विशेष वन क्षेत्र वन विभाग की जैव विविधता के संरक्षण को लेकर प्रतिबद्धता को दर्शाता है. बचेली वन क्षेत्र भविष्य के अनुसंधान एवं Ecotourism के विकास के लिए महत्वपूर्ण संभावनाएं पेश करता है. उन्होंने कहा कि वन विभाग इस क्षेत्र की छिपी हुई जैव विविधता को और गहराई से समझने के लिए अधिक Detailed Survey करने की योजना बना रहा है.
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