यूपी के मेरठ की रहने वाली अन्नू रानी ने जेवलिन थ्रो स्पर्धा में पहला स्थान हासिल किया है. अन्नू रानी जेवलिन थ्रो में गोल्ड मेडल जीतने वाली पहली महिला भारतीय खिलाड़ी बन गई हैं. अन्नू रानी के गोल्ड मेडल जीतने से अन्नू रानी के परिजन काफी खुश हैं. इसके साथ ही उनके गांव में भी जश्न का माहौल है. अन्नू रानी के घर में बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है. बात करें अन्नू रानी की तो उसका जीवन का सफर बहुत संघर्ष पूर्ण रहा है. अन्नू रानी के परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, तो अन्नू रानी ने गन्ने को भाला बनाकर गांव के चक रोड पर ही प्रैक्टिस शुरू की और शुरुआत में उनके भाई उपेंद्र ने ही उनको प्रशिक्षण दिया.
मेरठ के सरधना क्षेत्र के बहादुरपुर गांव निवासी अन्नू रानी के पास अभ्यास के लिए भाला खरीदने के पैसे नहीं थे. ऐसे में उन्होंने गांव के चक रोड पर ही गन्ने को भाला बनाकर अपना अभ्यास शुरू किया. अन्नू के पिता अमरपाल ने अपने दोस्तों से पैसे उधार लेकर एक भाला अन्नू को खरीद के दिया. अन्नू के पास जूते तक खरीदने के पैसे नहीं थे, जिसके लिए उनके पिता और भाई ने अपने यार दोस्तों से कुछ पैसे लेकर और उधार मांग कर खरीदे.
एशियन गेम में गोल्ड मेडल जीत कर देश का मान बढ़ाने वाली अन्नू रानी को पिछले दो महीने काफी संघर्ष करना पड़ा. पहले अन्नू को बुखार ने जकड़ लिया जिससे वो थोड़ी कमजोर हो गईं, लेकिन अन्नू ने हिम्मत नहीं हारी और अपनी प्रैक्टिस जारी रखी.
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भाला फेंक स्पर्धा में स्वर्ण जीतने वाली अन्नू रानी के लिए एक वक्त ऐसा था कि जब उनके पिता उन्हें डेढ़ लाख रुपये का भाला दिलाने में असमर्थ थे. इसके बाद अन्नू के पिता ने उनको 2500 रुपये का एक भाला दिलाया. इसके बाद अन्नू ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और एक के बाद एक कामयाबी हासिल करती चली गईं. गांव की चक रोड पर गन्ने को भाला बनाकर अपने खेल की शुरुआत करने वाली अन्नू आज देश के लिए गोल्ड मेडल जीतकर लाई हैं.
अन्नू के गांव बहादुरपुर के रहने वाले अन्नू के परिवार में खुशी का माहौल है. उनके पिता अमरपाल कहते हैं कि उनकी बेटी ने पदक जीत कर देश का नाम रोशन किया है. अन्नू के पिता अमरपाल एक छोटे किसान है और अन्नू अपने पांच भाई बहनों में सबसे छोटी हैं. अन्नू के भाई उपेंद्र भी धावक रहे हैं.
अमरपाल सिंह के भतीजे लाल बहादुर और बेटा उपेंद्र अच्छे धावक रहे हैं. जिनकी प्रेरणा से अन्नू रानी ने खेल के मैदान पर कदम रखा. शुरुआत में भाला फेंक के साथ गोला फेंक और चक्का फेंक में अभ्यास करती थीं. लेकिन आखिरकार उन्होंने जेवलिन थ्रो को अपना भविष्य चुना.
(उस्मान चौधरी की रिपोर्ट)
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