पंजाब में किसान रोक के बावजूद भी गेहूं की पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं. इस साल 1 अप्रैल से अब तक गेहूं की पराली में आग लगाने की 877 घटनाएं दर्ज की गई हैं. खास बात यह है कि इनमें से 731 घटनाएं मई के पहले छह दिनों में दर्ज की गई हैं. खास बात यह है कि खेतों में आग लगने की अधिकतम 172 घटनाएं 2 मई को देखी गईं. उसके बाद 5 मई को 168 घटनाएं हुईं. जबकि सोमवार यानी 6 मई को पराली जलाने की कुल 133 घटनाएं दर्ज की गईं.
द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक पराली जलाने के अधिक मामले बठिंडा में (104) दर्ज किए गए हैं. इसके बाद मानसा में 91, फाजिल्का में 87, कपूरथला में 70, फिरोजपुर में 58, मुक्तसर में 55, पटियाला और संगरूर में 66-66 घटनाएं सामने आई हैं. 2023 में इसी अवधि के दौरान खेत में आग लगने की कुल 2,520 घटनाएं दर्ज की गई थीं, जबकि 2022 में इसी अवधि के दौरान फसल अवशेष जलाने की 5,973 घटनाएं दर्ज की गईं.
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वहीं, एक्सपर्ट का कहना है कि गेहूं की पराली को अब पशु चारे के रूप में उतना अधिक इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. यही वजह है कि पराली जलाने के मामले कम होने के नाम नहीं ले रहे हैं. जबकि, पहले गेहूं के अवशेषों का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में किया जाता था. अब किसानों द्वारा विकल्प के रूप में ग्रीष्मकालीन और वसंत मक्के को चारे के रूप में प्राथमिकता दी जा रही है. चिंता की बात यह है कि किसान गेहूं की कटाई करने के मक्के की खेती करते हैं, जिसमें पानी की बहुत अधिक बर्बादी होती है. धीरे-धीरे पंजाब में वसंत और ग्रीष्मकालीन मक्के का रकबा बढ़ता ही जा रहा है.
पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष आदर्शपाल विग ने कहा कि धान के अवशेष जलाते समय किसान धान की कटाई और गेहूं की फसल की बुआई के बीच एक छोटी खिड़की अवधि के बारे में बात करते हैं, जबकि गेहूं के भूसे के प्रबंधन में पर्याप्त समय होता है. पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के निदेशक विस्तार डॉ.एमएस भुल्लर ने कहा कि किसानों को इस तरह की प्रथा से बचना चाहिए. गेहूं की फसल में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे बर्बाद माना जा सके. अवशेष मवेशियों के लिए उत्तम चारे का काम करता है. भुल्लर ने कहा कि गेहूं के पौधे की जड़ें आसानी से मिट्टी में समा जाती हैं और मिट्टी के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करती हैं.
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