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World Water Day: जानें कैसे अमृत बन गया खारा पानी, अब हो रही सालाना लाखों रुपये की इनकम

World Water Day: जानें कैसे अमृत बन गया खारा पानी, अब हो रही सालाना लाखों रुपये की इनकम

उत्तर भारत में खारे पानी के चलते लाखों एकड़ जमीन खारी हो गई है. लेकिन झींगा पालन के लिए ऐसी ही जमीन की जरूरत होती है. और जो मुनाफा झींगा से होता है उतना मुनाफा तो एक एकड़ में केला, गन्ना  और गेहूं की फसल भी नहीं दे सकती है.

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खारे पानी में झींगा पालन का प्रतीकात्मक फोटो. खारे पानी में झींगा पालन का प्रतीकात्मक फोटो.

पानी जरूरत से ज्यादा खारा हो गया. खारे पानी के चलते मिट्टी भी खराब हो गई. ऐसा कोई इलाज भी नहीं है कि जरूरी ट्रीटमेंट कर पानी और मिट्टी के खारेपन को दूर किया जा सके. खारेपन के चलते ही खारे पानी में खेती करने की कोई उम्मीाद बाकी नहीं बची. लेकिन कहते हैं न कि ‘जहां चाह, वहां राह’ तो इसी पानी में उम्मीद की एक ऐसी राह दिखाई दी की आज खारे पानी से ही लाखों रुपये सालाना की इनकम हो रही है. साल में तीन-तीन बार झींगा मछली की फसल इसी खारे पानी में तैयार की जा रही है.

खारे पानी वाली जमीन हर चार महीने में एक एकड़ एरिया से चार लाख रुपये की इनकम कराए तो चौंकना लाजमी है. वो भी तब जब नुकसान की संभावना ना के बराबर हो. पंजाब से लेकर गुजरात तक ऐसी ही बेकार जमीन का इस्तेमाल कर लाखों रुपये कमाए जा रहे हैं. फसल भी ऐसी जिसकी लोकल मार्केट के साथ-साथ इंटरनेशनल मार्केट में भी डिमांड है.

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छह जिलों में किसान जमीन की तरफ देखते भी नहीं थे, लेकिन आज...

पंजाब फिशरीज डिपार्टमेंट के असिस्टेंट डायरेक्टर कर्मजीत सिंह ने किसान तक को बताया कि पंजाब के छह जिलों में एक वक्त् वो आ गया था कि वहां किसान अपनी जमीन की तरफ देखना पसंद भी नहीं करते थे. जमीन को देखकर उनकी रुलाई फूटती थी. अच्छी भली खेती की जमीन खराब हो गई थी. यह जिले हैं मुक्तसर साहिब, फिरोजपुर, फाजिलका, फरीदपुर, भाटिंडा और मानसा. खारे पानी के चलते जमीन भी खारी हो गई है. लेकिन जब हमारे डिपार्टमेंट ने एक दिन उस जमीन के पानी की जांच की तो किसानों की किस्मत ही चमक गई. रिपोर्ट में सामने आया कि इस जमीन की मिट्टी और जमीन का पानी झींगा मछली पालन के लिए बहुत ही ज्यादा फायदेमंद है. इसी तरह के पानी में झींगा उत्पादन तेजी से बढ़ता है. 

एक एकड़ जमीन पर हुआ झींगा पालन का ट्रायल 

कर्मजीत सिंह ने बताया कि मुक्तसर साहिब जिले के रत्नाखेड़ा गांव में हमने साल 2016-17 में झींगा मछली पालन को लेकर एक ट्रायल किया था. लखविंदर नाम के किसान के खेत में यह ट्रायल किया गया था. एक एकड़ जमीन पर झींगा मछली पाली गई थी. चार महीने में जब झींगा तैयार हुई तो उसका वजन चार टन यानि 40 क्विंटल था. उस वक्त झींगा का बाजार रेट 320 रुपये किलो था. जबकि आज झींगा का रेट 360 रुपये है. उस खारे पानी से लाखों रुपये का मुनाफा हुआ जहां खेती की एक डाल नहीं उगाई जा सकती थी. और अगर झींगा के जीवन चक्र पर जाएं तो किसान साल में तीन से चार बार झींगा तैयार कर बाजार में बेच सकता है.

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मछलियों के डॉक्टर मनोज शर्मा ने किसान तक को बताया कि गुजरात के कोस्ट एरिया में समुंद्री पानी के चलते और मैदानी एरिया में ग्राउंड वॉटर के चलते खेती की जमीन खारी हो गई है. लेकिन यह खारा पानी झींगा मछली के लिए ऐसा वरदान साबित हुआ कि आज गुजरात में चार हजार एकड़ से ज्याडदा खारे पानी वाली जमीन पर झींगा पालन हो रहा है.  

खारे पानी में 70 से 80 दिन में तैयार होती है झींगा 

झींगा हैचरी एसोसिएशन के अध्यक्ष आंध्रा प्रदेश निवासी रवि कुमार येलांकी ने किसान तक को बताया कि बाजार में वैसे तो हर साइज के झींगा की डिमांड है. लेकिन खासतौर पर 14 से 15 ग्राम वजन का झींगा बहुत पसंद किया जाता है. एक्सपोर्ट में भी कई कंट्री छोटे साइज की डिमांड करती हैं. 14-15 ग्राम वजन वाला झींगा तालाब में 70 से 80 दिन में तैयार हो जाता है. अगर झींगा पालन में किसी भी तरह की कमी रह भी जाती है तो ज्यादा से ज्यादा 90 दिन में तो हर हाल में तैयार हो ही जाएगा.

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