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मिलिए उत्तराखंड की इस खास महिला से, जो मिलेट्स से बने पहाड़ी व्यंजनों का कैफ़े चलाती हैं

मिलिए उत्तराखंड की इस खास महिला से, जो मिलेट्स से बने पहाड़ी व्यंजनों का कैफ़े चलाती हैं

उत्तराखंड में मोटे अनाजों का दौर वापस लेने के लिए डोभाल दंपति ने बड़ा अभियान शुरू किया है. इसी के तहत पति-पत्नी ने बूढ़ी दादी नाम का कैफे खोला है जिसमें केवल मोटे अनाजों से बने व्यंजन परोसे जाते हैं. उत्तराखंड में अब मोटे अनाजों की खेती को भी बड़े स्तर पर बढ़ावा दिया जा रहा है.

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मोटे अनाजों से बने व्यंजन का कैफे चलाने वाली दीपिका डोभाल मोटे अनाजों से बने व्यंजन का कैफे चलाने वाली दीपिका डोभाल

उत्तराखंड आने वाले हर शख्स को यही लगता है कि उत्तराखंड में पहाड़ के पारंपरिक व्यंजन नूडल्स और मोमोज होते हैं. ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि पहाड़ में आप कहीं भी घूमने चले जाइए, आपको मोमोज और नूडल्स आसानी से मिल जाएंगे. गुजरात में आपको ढोकला मिलेगा. साउथ इंडिया में आपको इडली डोसा मिलेगा. लेकिन उत्तराखंड का जो मूल भोजन है उसके बारे में न तो किसी को पता है और न ही कोई नाम ज्ञात होता है. यह कहना है दीपिका डोभाल का जो मिलेट्स से बने पहाड़ी व्यंजनों का एक कैफ़े चलाती हैं. 

दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान के बाद संयुक्त राष्ट्र ने साल 2023 को इंटरनेशनल ईयर ऑफ मिलेट्स घोषित किया है. इसके बाद देश भर में ही नहीं उत्तराखंड में भी मिलेट्स को लेकर बड़े-बड़े आयोजन हुए. वहीं पहाड़ का मोटा अनाज अपनी पहचान खो चुका है जिसे फिर से अस्तित्व में लाने की कवायद शुरू हुई है. आज मिलेट्स के किसान मुख्य धारा से कोसों दूर हो गए हैं जिन्हें फिर से उस रास्ते पर लाने के लिए कई अभियान चल रहे हैं. 

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मिलेट्स को बचाने की कोशिश

पहाड़ के मिलेट्स को बचाने की कई कोशिशें चल रही हैं. उत्तराखंड के पौड़ी जिले के कल्जीखाल ब्लॉक में डोभाल दंपति रहते हैं. इनके नाम हैं दीपिका और कपिल डोभाल. इन दोनों ने मिलेट्स के एक खास मिशन के साथ साल 2021 में 'बूढ़ दादी' पहाड़ी कैफ़े का उद्घाटन किया लेकिन डगर आसान नहीं थी. यहां तक कि स्ट्रीट जंक्शन खोलने के बाद इनके काउंटर पर लगी लाइटों को किसी ने तोड़ दिया. इसके बाद दीपिका डोभाल ने अपने पति के साथ बागडोर संभालते हुए बूढ़ी दादी कैफे को नई जान देने की कोशिश की. 

मिलेट्स से बने व्यंजन

क्यों खास है बूढ़ी दादी कैफे

बूढ़ी दादी कैफे में मोटे अनाज के 45 से भी ज्यादा किस्मों की डिश उपलब्ध हैं. इनमें सभी पॉपुलर गहत और मंडुए से बने डिश हैं. साथ ही झंगोरा से बनी बिरंजी भी है. बूढ़ी दादी कैफे में डोभाल दंपति सारा अनाज पहाड़ी क्षेत्र चमोली के देवाल, उत्तरकाशी के मोरी से मंगवाते हैं जिससे मिलेट्स के किसानों को भी पहचान मिले. उनकी कमाई बढ़े और रोजी-रोजगार का साधन बढ़ सके. बूढ़ी दादी की संचालिका दीपिका डोभाल बताती हैं कि यदि लोग अपनी सभ्यता की बात करें, उसे पहचानें तो एक दिन हर घर में मिलेट्स का राज होगा. लोग अपने पुराने खान-पान की ओर लौटेंगे और स्वस्थ रहेंगे. 

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बूढ़ी दादी कैफे में मिलते हैं ये व्यंजन

बूढ़ी दादी में पहाड़ी व्यंजन ढुंगला, ढिंढका, गिंवली, जवलि, घीन्जा, सिडकु, बेडु रोटी, सोना आलू, करकरा पैतुड़, द्युडा, बादलपुर की बिरंजी, बडील, ल्याटू, पतुड़ी, टपटपी चा, पिट्ठलू, चर्चरी बर्बरी चटनी, बारहनाजा खाजा, चुनालि, घुमका और मुंगरेडी भी बनाए जाते हैं. ये सभी मिलेट्स के व्यंजन हैं जो सहमतनंद और पौष्टिक हैं. दीपिका डोभाल ने बताया कि राज्य आंदोलन में हमारा नारा था कि कौदा झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड राज्य बनाएंगे जो कि राज्य बनने के बाद से कहीं गायब सा हो गया. दीपिका के पति कपिल डोभाल राज्य आंदोलनकारी रहे हैं. अब दोनों मिलकर उत्तराखंड में मिलेट्स की पहचान को दोबारा लोगों के बीच में ला रहे हैं.