scorecardresearch
Water Conservation: जल संकट में देश 2047 तक कैसे बनेगा विकसित राष्ट्र, जल संरक्षण क्यों है बेहद जरूरी?

Water Conservation: जल संकट में देश 2047 तक कैसे बनेगा विकसित राष्ट्र, जल संरक्षण क्यों है बेहद जरूरी?

कल बजट के दौरान वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अपने देश को साल 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने का लक्ष्य रखा गया है. मगर विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्राकृतिक स्रोत की उपलब्धता और उसका बेहतर उपयोग करके ही हम विकसित राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं. भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ इसके सर्वांगीण विकास के साथ-साथ पानी का उपयोग भी तेजी से बढ़ रहा है. और किसी भी देश के विकास में किसी चीज की मात्रा और निर्माण को बढ़ाने में और पूंजीगत जरूरतों को पूरा करने में पानी का अहम रोल है.

advertisement
देश में जल सकंट की समस्या गंभीर होती जा रही है देश में जल सकंट की समस्या गंभीर होती जा रही है

कल बजट के दौरान वितमंत्री ने निर्मला सीतारमण ने कहा कि अपने देश को साल 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाएंगे. मगर विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्राकृतिक स्रोत की उपलब्धता और उसका बेहतर उपयोग करके ही हम विकसित राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं.एक अनुमान के अनुसार,अपने देश की जनसंख्या साल 2050 में 164 करोड़ पहुंच जाएगी. प्राकृतिक संसाधनों में देश और जीवन को सहारा देने के लिए जल सबसे अहम है. भारत की बढ़ती जनसंख्या के साथ इसके सर्वांगीण विकास के साथ-साथ पानी का उपयोग भी तेजी से बढ़ रहा है.किसी भी देश के विकास में किसी चीज की मात्रा और निर्माण को बढ़ाने में और पूंजीगत जरूरतों को पूरा करने में पानी का अहम रोल है. इसके लिए जरूरी है वर्षा जल का संचयन और जल-संरक्षण उपायों को सर्वोच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए.

जल संकट में कैसे बनेगाति विकसित राष्ट्र ?

भोतकी अनुसंधान प्रयोगशाला के वैज्ञानिको मुताबिक के मौजूदा वक्त में  में हमारे देश में प्रति वर्ष 500 घन वर्ग किलोमीटर उपयोगी जल की उपलब्धता है,जबकि साल 2050 में 1450 घन वर्ग किलोमीटर उपयोगी जल की जरूरत पड़ेगी.यानि हमें लगभग तीन गुना जल संचयन की जरूरत पड़ेगी और तब हम विकसित राष्ट्र की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं.

ये भी पढ़ें: मछली पालन के लिए तालाब की गहराई कितनी रखें? बांध की ऊंचाई कितनी होनी चाहिए?

आज के समय में उपलब्ध ताजा पानी का लगभग 62 फीसदी जल में उपयोग हो रहा है,जिसमें केवल सिंचाई के लिए लगभग 85 फीसदी उपयोग होता है. देश में आने वाले समय में जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि पर विशेष प्रभाव के साथ, जल संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ने की उम्मीद है.चाहे शहरी हो या ग्रामीण, इस आबादी को अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए आज जितना सालाना खाद्यान्न उत्पादन हो रहा है ( 32.96 करोड़ टन)  उससे बहुत अधिक खाद्यान्न उत्पादन करने की जरूरत होगी.फसल उगाने के लिए मिट्टी और पानी के बीच गहरा संबंध है, लेकिन अब तो बिना मिट्टी के भी फसल उग रही है,परंतु पानी के बिना यह संभव नहीं है. सिंचाई जिसे 'पानी देना' भी कहा जाता है,कृषि में सबसे अहम है. सिंचाई जल बेहतर फसल उत्पादन के लिए एक अहम  इनपुट है.

केवल 11 फीसदी जल संचयन 

केंद्रीय जल आयोग द्वारा आयोजित अंतरिक्ष इनपुट का उपयोग करके भारत में जल उपलब्धता का पुनर्मूल्यांकन,अध्ययन के आधार पर वर्ष 2021 में प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता क्रमशः1486 घन मीटर है. इस तरह जल उपलब्धता कम होती जा रही है,जो 2050 के लिए औसत 1140 घन मीटर आंकी गई है.जब प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1700 घन मीटर प्रतिवर्ष से कम हो जाती है, तो पानी के लिए तनाव की स्थिति कही जाती है. जब प्रति व्यक्ति पानी की उपलब्धता 1000 घन मीटर प्रतिवर्ष से कम हो जाती है,तो अभाव की स्थिति कही जाती है.

देश में राष्ट्रीय जल आकदमी के अनुसार सालना देश में वर्षा और बर्फबारी से 4000 अरब घन मीटर पानी प्राप्त होता है. साल 2023 की आकलन रिपोर्ट के अनुसार पूरे देश के लिए कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण 449.08 अरब घन मीटर है. यानी हमें जितना बारिश जल प्राप्त हो रहा है, उसका 11 फीसदी जल हम संरक्षित कर पा रहे हैं और शेष पानी नाली नदियों से बहकर समुद्र में चला जा रहा है.पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भूमिगत जल स्तर गिरता जा रहा है. वही राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यों में समस्या गंभीर है.महाराष्ट्र के विदर्भ, उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, बुंदेलखंड में पानी की समस्या गंभीर बनती जा रही है. अब सवाल उठता है कि क्या हम केवल 11 फीसदी जल संरक्षण कर विकसित राष्ट्र की कल्पना कर सकते हैं. क्योंकि अपने देश में सिंचाई के लिए सबसे ज्यादा भूमिगत जल का उपयोग होता है जो कुल सिचाई जल की लगभग 90 फीसदी  है,

देश में लगातार घट रहा है पानी 

अपने देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता लगातार घट रही है. इसे आंकड़े से आप ऐसे समझ सकते हैं कि 1951 में जहां एक व्यक्ति के लिए जल की उपलब्धता 5000  घन मीटर से ज्यादा थी, वो 2001 तक घटकर महज 1,816 रह गई है. आगे 2011 में ये और घटी और 1545  घन मीटर हो गई थी. 2021 में सालाना प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 1486 घन मीटर थी. मीठे पानी की उपलब्धता इतनी कम हो जाने का मतलब है कि पीने के पानी से लेकर दूसरे दैनिक उपयोग तक के लिए इसकी भारी कमी होगी. ऐसे में भला खेतों की सिंचाई कैसे हो पाएगी और उसके अभाव में उपज कैसे होगी ?

अपने देश में वर्षा जल को संरक्षित करने के लिए बड़े प्रयास की जरूरत है. इसके लिए वर्षा जल का रणनीतिक और स्मार्ट भंडारण कृषि में जल प्रबंधन का एक बेहतर तरीका हो सकता है.अत्यधिक वर्षा के दौरान पानी को संग्रहित करने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग और बड़े रेन बैरल बनाना जल भंडारण का एक व्यावहारिक तरीका है,जिसे बाद में फसल सिंचाई के लिए उपयोग किया जा सकता है. वर्षा जल को लगातार संग्रहित करने की आदत डालने का प्रयास जरूरी है.स्थानीय तालाबों और नए तालाबों का निर्माण करके उनमें मछली पालन को बढ़ावा देने जरूरत है. जिससे भूमिगत जल स्तर को बढ़ाया जा सके.गांवों में पुराने तालाबों को जीर्णोद्धार करने की भी जरूरत है.भारत में वर्षा जल संचयन की कला एक प्राचीन कृषि पद्धति रही है.इसमें मंडक,आहर पाइंस,सुरंगा,टांका इत्याद भारत में वर्षा जल संचयन के प्रसिद्ध और व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले तरीके हैं,जिन्हें बढ़ावा देने की जरूरत है.

विकसित राष्ट्र के लिए जल संरक्षण जरूरी 

दुनिया भर में मीठे जल का 80 प्रतिशत से ज्यादा इस्तेमाल खेती में होता है.इससे यह स्पष्ट होता है कि आज के दौर में भूमि कृषि की समृद्धि के लिए जल संरक्षण की भूमिका काफी अहम है.अगर हम इसे आंकड़ों के रूप में देखें, तो एक लीटर गाय के दूध के उत्पादन के लिए 800 लीटर पानी की जरूरत होती है. एक किलो गेहूं की उपज के लिए 1,000 लीटर और एक किलो चावल की उपज के लिए 4,000 लीटर पानी की जरूरत होती है.

ये भी पढ़ें: हिमाचल के चंबा में बारिश न होने से सूखने लगी गेहूं की फसल, करीब 3 करोड़ के नुकसान का अनुमान

आजकल कई क्षेत्रों में जल संकट की स्थिति है,लेकिन जहां आज भी भरपूर पानी उपलब्ध है,वहां सरकार से लेकर किसानों को इस बचत और प्रबंधन की दिशा में सोचने की जरूरत है. केवल हम केवल 11 फीसदी जल संरक्षित कर पा रहे हैं. ग्राउंडवॉटर हर साल तेजी से गिरता जा रहा है क्योकि भूजल का तेजी से क्षरण हो रहा है. किसानों को जल संरक्षण के प्रति प्रेरित करने के लिए सरकारों को कदम उठाने चाहिए. उन्हें जल प्रबंधन, तालाबों और नदियों के पानी को सुरक्षित करने के लिए नई और सुरक्षित जल संचारण तकनीकों के लिए उन्नत प्रशिक्षण प्रदान किया जा सकता है, जिससे उन्हें समृद्धि और जल संरक्षण में मदद मिले. किसानों को जागरूक करने के लिए संगठनों और स्थानीय समुदायों को सहयोग करने के लिए भी कदम उठाया जा सकता है.उन्हें इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि जल संरक्षण सिर्फ उनके लिए ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी फायदेमंद है.इस तरह, किसानों को जल संरक्षण में एक अहम भूमिका देना न केवल उनके लिए, बल्कि समृद्धि और जल संरक्षण के सामाजिक लाभ के लिए भी अहम है.