
आज के समय में बागवानी और खेती के तरीके तेजी से बदल रहे हैं. मिट्टी के विकल्प के रूप में कई नए माध्यम सामने आए हैं, जिनमें कोकोपीट का नाम सबसे ऊपर आता है. खासतौर पर किचन गार्डन, नर्सरी, गमलों में उगाए जाने वाले पौधों और हाइड्रोपोनिक खेती में कोकोपीट का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है. कोकोपीट आज के दौर में बागवानी और खेती का एक अहम हिस्सा बन चुका है. पानी रोकने की क्षमता, बेहतर एयर वेंटीलेशन और रोगमुक्त प्रकृति इसे पौधों के लिए बेहद उपयोगी बनाती है. सही खाद और देखभाल के साथ कोकोपीट का इस्तेमाल पौधों की ग्रोथ को कई गुना बेहतर बना सकता है. लेकिन सवाल यह है कि आखिर कोकोपीट है क्या और पौधों के लिए इसकी अहमियत क्यों मानी जाती है.
कोकोपीट नारियल के छिलके से बनने वाला एक प्राकृतिक उत्पाद है. नारियल के रेशों को प्रोसेस करने के बाद जो बारीक भूरे रंग का पदार्थ बचता है, उसे ही कोकोपीट कहा जाता है. इसे कोयर पिथ भी कहते हैं. यह पूरी तरह जैविक और पर्यावरण के अनुकूल माध्यम है, जो मिट्टी का बेहतरीन विकल्प माना जाता है. कोकोपीट आमतौर पर ब्लॉक या ढीले पाउडर के रूप में मिलता है. पानी में भिगोते ही यह फूलकर कई गुना बढ़ जाता है और नरम, स्पंजी बनावट में बदल जाता है.
कोकोपीट की सबसे बड़ी खासियत इसकी पानी रोकने की क्षमता है. यह अपने वजन से कई गुना ज्यादा पानी को सोखकर रख सकता है. इससे पौधों की जड़ों को लंबे समय तक नमी मिलती रहती है और बार-बार सिंचाई की जरूरत नहीं पड़ती. इसके अलावा कोकोपीट में एयर वेंटीलेशनल भी बेहतर होता है. इसकी ढीली बनावट जड़ों तक ऑक्सीजन पहुंचाने में मदद करती है, जिससे जड़ें मजबूत बनती हैं और पौधों की ग्रोथ बेहतर होती है.
कोकोपीट में मिट्टी की तरह सख्त होने की समस्या नहीं होती. समय के साथ यह अपनी संरचना बनाए रखता है, जिससे पौधों की जड़ों पर दबाव नहीं पड़ता. यही वजह है कि यह बीज अंकुरण के लिए भी बेहद उपयोगी माना जाता है. मिट्टी में कई बार कीट, फंगस और रोगजनक मौजूद होते हैं, जबकि अच्छी तरह प्रोसेस किया गया कोकोपीट लगभग रोगमुक्त होता है. इससे पौधों में बीमारियों का खतरा कम हो जाता है.
कोकोपीट का इस्तेमाल लगभग सभी तरह के पौधों के लिए किया जा सकता है. सब्जियों के पौधे, फूलों की नर्सरी, इनडोर प्लांट, कैक्टस, सक्युलेंट और हर्ब्स के लिए यह बहुत फायदेमंद है. खासतौर पर टमाटर, मिर्च, धनिया, पालक और तुलसी जैसे पौधों की शुरुआती ग्रोथ में कोकोपीट बेहद मददगार साबित होता है. हालांकि लंबे समय तक पौधों को सिर्फ कोकोपीट में रखना सही नहीं माना जाता. बेहतर परिणाम के लिए इसमें खाद, वर्मी कम्पोस्ट या गार्डन सॉयल मिलाकर उपयोग करना चाहिए.
कोकोपीट में पोषक तत्व बहुत कम होते हैं. यह पौधों को सहारा और नमी देता है, लेकिन पोषण नहीं. इसलिए इसके साथ जैविक खाद का इस्तेमाल जरूरी होता है. इसके अलावा इस्तेमाल से पहले कोकोपीट को अच्छी तरह धोना या भिगोना चाहिए, ताकि इसमें मौजूद अतिरिक्त नमक निकल जाए. ज्यादा नमक पौधों की जड़ों को नुकसान पहुंचा सकता है. कोकोपीट एक री-साइकिल प्रॉडक्ट है. इससे नारियल के कचरे का सही उपयोग होता है. यह पूरी तरह बायोडिग्रेडेबल है और मिट्टी की तरह पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाता. यही वजह है कि टिकाऊ खेती और जैविक बागवानी में कोकोपीट को बढ़ावा दिया जा रहा है.
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