जलवायु परिवर्तन मानव जीवन के पहलुओं के लिए बड़ा खतरा बन रहा है, तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन के कारण आने वाले समय में तापमान में व्यापक बढ़ोतरी होने की संभावना है. इस वजह से इंसानों के जीवन में कई तरह की समस्याएं एक साथ आ सकती हैं. माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से सूखा पड़ना, अनाजों की पैदावार में कमी आना, समुद्र का जलस्तर बढ़ जाने का पूर्वानुमान लगाया जा रहा है. इस तरह की संभावित समस्याओं से निपटने के लिए तमिलनाडु सरकार ने जलवायु परिवर्तन मिशन तैयार किया है. इसके साथ ही तमिलनाडु जलवायु परिवर्तन संकट से निपटने के लिए योजना बनाने वाला देश का पहला राज्य बन गया है.
असल में तमिलनाडु सरकार ने स्टेट एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज 2.0 योजना बनाई है, जिसे बीते दिनों मुख्यमंत्री एमके स्टालिन द्वारा लॉन्च किया.
सीएम ने इस पहल की शुरुआत करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा निर्धारित 2070 के लक्ष्य से बहुत पहले राज्य कार्बन न्यूट्रैलिटी प्राप्त कर लेगा, यह राज्य में पहले से मौजूद जिला मिशनों और जलवायु अधिकारियों के साथ जलवायु एजेंडे को प्राथमिकता दी जाएगी, उन्होंने एक ट्वीट में यह भी कहा, तमिलनाडु सरकार का मॉडल देश को न केवल सामाजिक न्याय में बल्कि पारिस्थितिक न्याय में भी मार्गदर्शन करेगा. जलवायु परिवर्तन मिशन इस तथ्य को भी रेखांकित (Underline) करता है कि तमिलनाडु राष्ट्रीय स्तर पर 2953 MtCO2e उत्सर्जन में से 172.83 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड समकक्ष उत्सर्जन (MtCO2e) के लिए जिम्मेदार है. जिसमें बिजली क्षेत्र का योगदान अधिकतम 67 फीसदी है. डॉक्यूमेंट में यह भी नोट किया जाता है कि राज्य जलवायु परिवर्तन से प्रतिकूल रूप से प्रभावित होगा, पर्यावरण के पारिस्थितिक तंत्र और फसल उत्पादन के लिए प्रतिकूल बना देगा.
इस मिशन में तमिलनाडु राज्य में सतत विकास लक्ष्यों (SDG) के आधार पर जलवायु जोखिमों और उनके प्रभावों पर अध्ययन किया जिससे पता चला कि अरियालुर अपनी उच्च संवेदनशीलता और कम अनुकूली क्षमता के कारण जलवायु परिवर्तन की चपेट में आने का सबसे अधिक खतरा है, इसके अलावा अध्ययन में पहचान किए गए अन्य संवेदनशील जिले नागपट्टिनम, रामनाथपुरम, तिरुवरुर, तिरुवल्लुवर, तंजावुर, पेरम्बलुर, पुदुकोट्टई और तिरुवन्नामलाई हैं.
तमिलनाडु जलवायु परिवर्तन मिशन में कई लक्ष्य शामिल हैं, उनमें से पहला ये है कि राज्य के पेड़ और वन क्षेत्र को 23.7% से बढ़ाकर 33% करने के लिए 10 साल का लक्ष्य तय किया गया है. मिशन का उद्देश्य आपदाओं को कम करने और उन्हें प्रभावी ढंग से संभालने में मदद करने के लिए स्मार्ट इंफ्रास्ट्रक्चर सिस्टम बनाना है. इससे जलवायु संकटों से निपटने में मदद मिलेगी इसके अलावा हरित प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने के साथ-साथ कुशल सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों, स्वच्छ और हरित ऊर्जा, वैकल्पिक ईंधन स्रोतों और बेहतर निगरानी का उपयोग करके ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) में कमी के माध्यम से हरित नौकरियों का सृजन इसके लक्ष्यों का हिस्सा है, यह सिंगल यूज प्लास्टिक के लिए ईको-वैकल्पिक समाधान लाने, सीवेज, ई-वेस्ट, बायो-मेडिकल वेस्ट आदि सहित ठोस कचरे के निपटान जैसे कुल 13 लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं.
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