प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 30 जुलाई यानी आज रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 103वें एपिसोड को संबोधित किया. जिसमें उन्होंने बाढ़ और प्राकृतिक आपदा, जल संरक्षण, वृक्षारोपण रोपण, भोजपत्र और ‘मेरी माटी मेरा देश’ अभियान सहित कई मुद्दों पर चर्चा की. भोजपत्र का जिक्र करते हुए पीएम मोदी ने कहा कि भोजपत्र हमारी सांस्कृतिक धरोहर रहा है. प्राचीन काल से हमारे शास्त्र और ग्रंथ, इन्हीं भोजपत्रों पर सहेजे जाते रहे हैं. महाभारत भी इसी भोजपत्र पर लिखा गया था. उत्तराखंड की महिलाएं भोजपत्र से, बेहद ही सुंदर-सुंदर कलाकृतियां और स्मृति चिन्ह बना रही हैं. यह उनकी आजीविका का साधन बन सकता है.
ऐसे में आइए विस्तार से जानते हैं आखिर ‘भोजपत्र’ क्या है? इसके अलावा ‘भोजपत्र’ को लेकर पीएम मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के दौरान क्या कुछ कहा है-
मन की बात कार्यक्रम में पीएम मोदी ने देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा, "मेरे प्यारे देशवासियों, देवभूमि उत्तराखंड की कुछ माताओं और बहनों ने जो पत्र मुझे लिखे हैं, वो भावुक कर देने वाले हैं. उन्होंने अपने बेटे को, अपने भाई को, खूब सारा आशीर्वाद दिया है. उन्होंने लिखा है कि- ‘उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की थी, कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर रहा ‘भोजपत्र’, उनकी आजीविका का साधन, बन सकता है. आप सोच रहे होंगे कि यह पूरा माजरा है क्या?”
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पीएम मोदी ने आगे कहा, “साथियों, मुझे यह पत्र लिखे हैं चमोली जिले की नीती-माणा घाटी की महिलाओं ने. ये वो महिलाएं हैं, जिन्होंने पिछले साल अक्टूबर में मुझे भोजपत्र पर एक अनूठी कलाकृति भेंट की थी. यह उपहार पाकर मैं भी बहुत अभिभूत हो गया. आखिर, हमारे यहां प्राचीन काल से हमारे शास्त्र और ग्रंथ, इन्हीं भोजपत्रों पर सहेजे जाते रहे हैं. महाभारत भी तो इसी भोजपत्र पर लिखा गया था.”
आज, देवभूमि की ये महिलाएं, इस भोजपत्र से, बेहद ही सुंदर-सुंदर कलाकृतियां और स्मृति चिन्ह बना रही हैं. आज, भोजपत्र के उत्पादों को यहां आने वाले तीर्थयात्री काफी पसंद कर रहे हैं और इसे अच्छे दामों पर खरीद भी रहे हैं. भोजपत्र की यह प्राचीन विरासत, उत्तराखंड की महिलाओं के जीवन में खुशहाली के नए-नए रंग भर रही है. मुझे यह जानकर भी खुशी हुई है कि भोजपत्र से नए-नए प्रोडक्ट बनाने के लिए राज्य सरकार, महिलाओं को ट्रेनिंग भी दे रही है.”
भोजपत्र, भोज नाम के वृक्ष की छाल का नाम है. इस वृक्ष की छाल सर्दियों में पतली-पतली परतों के रूप में निकलती है, जिन्हें मुख्य रूप से कागज की तरह इस्तेमाल किया जाता था. आदिकाल में जब लिखने के लिए कागज का आविष्कार नहीं हुआ था, तब वेदों और पुराणों की रचना भोजपत्र पर लिखकर की गई थी. भोजपत्र में लिखी गई कोई भी चीज हजारों वर्ष तक रहता है. वहीं भोज वृक्ष हिमालय में 4,500 मीटर तक की ऊंचाई पर पाये जाते हैं. यह एक ठंडे वातावरण में उगने वाला पतझड़ी वृक्ष है, जो लगभग 20 मीटर तक ऊंचा हो सकता है. हालांकि, जानकारी के अभाव में भोज वृक्ष नष्ट होते चले गए. वर्तमान में भोजवृक्ष गिनती के ही बचे हुए हैं.
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