100 बीज में से 25 ही बन पाते हैं बड़ी मछली, ऐसा होता है मछलियों का सफर

100 बीज में से 25 ही बन पाते हैं बड़ी मछली, ऐसा होता है मछलियों का सफर

देश के अलग-अलग इलाकों में खाने के लिए अपनी पसंद के हिसाब से मछली की वैराइटी चुनी जाती है. अगर नॉर्थ इंडिया की बात करें तो फिश करी के लिए खासतौर पर रोहू, कतला और नैनी बहुत पसंद की जाती है. वहीं फ्राई के लिए वो मछली पसंद की जाती है जिसमे फैट कम से कम हो.

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100 बीज में से 25 ही बन पाते हैं बड़ी मछली, ऐसा होता है मछलियों का सफरजाल से पकड़ी गईं मछलियां. फोटो क्रेडिट- मनोज शर्मा

आपको जानकार बड़ी ही हैरानी होगी कि एक जीरा साइज का बीज कैसे देखते ही देखते दो और तीन किलो तक की मछली बन जाता है. लेकिन क्या आपको पता है कि अगर तालाब में मछली के 100 बीज डाले जाते हैं तो उसमे से 25 से 35 फीसद ही कामयाब हो पाते हैं. यही वजह है कि मछली के बीज को दो-तीन तरीके से तैयार किया जाता है. हालांकि बाजार में सबसे ज्यादा बिकने वाला जीरा साइज का बीज होता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हमारे खाने लायक डेढ़ से दो किलो वजन की मछली कितने दिन में तैयार होती है. किस तरह एक मछली को खाने लायक तैयार किया जाता है. 

इस खबर में हम आपको हैचरी से निकले बीज से लेकर तालाब तक का सफर तय करने वाली मछली के बारे में बताएंगे. नदी-समुंद्र में तो मछलियां खुद से पलती हैं. लेकिन इसके अलावा तीन और तरीकों से मछलियों को खाने लायक तैयार किया जाता है. यहां हैचरी से बीज लाकर उन्हें मार्केट की डिमांड के हिसाब से उस खास वजन तक तैयार किया जाता है. आजकल नदी में जाल लगाकर, घर-खेत में टैंक बनाकर और तालाब में मछली पालन किया जा रहा है. 

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पश्चिम बंगाल और आंध्रा प्रदेश में तैयार होता है मछलियों का बीज

हैचरी एसोसिएशन के अध्यक्ष रवि कुमार येलंका ने किसान तक को बताया कि मछली पालने के लिए कोलकाता और आंध्रा प्रदेश के अलावा और दूसरी जगहों की हैचरी में भी बीज तैयार होता है. तीन तरह के साइज में से सबसे ज्यादा जीरा साइज बीज बिकता है. इसके एक-एक हजार बीज के पैकेट सप्लाई किए जाते हैं. इस बीज को आप सीधे लाकर तालाब में भी डाल सकते हैं. लेकिन ऐसा करने पर बीज का सक्सेस रेट बहुत ही कम यानि 25 फीसद तक होता है. बड़ी संख्या में तो बीज ट्रांसपोर्ट के दौरान ही खराब हो जाता है.  

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बीज को नर्सरी में रखकर तालाब में डाला तो होगा फायदा

मछली पालक एमडी खान का कहना है क‍ि अगर आप हैचरी से बीज लाकर पहले उसे नर्सरी में डालते हैं तो वो 35 से 40 फीसद तक कामयाब रहता है. तीन से छह महीने तक आप बीज को नर्सरी में रख सकते हैं. इस दौरान जीरा साइज का बीज फिंगर साइज या फिर 100 ग्राम तक का हो जाता है. इस साइज के बीज को आप फिर तालाब में ट्रांसफर कर सकते हैं. नर्सरी में रखने के दौरान बीज को सरसों की खल और चावल के छिलके का चूरा खिलाया जा सकता है. ऐसा करने से मछली में बीमारी भी कम लगती हैं. 

18 महीने में डेढ़-दो किलो वजन का हो जाता है जीरा साइज बीज 

एमडी खान ने बताया कि अगर तालाब में पानी की आपने उचित देखभाल की है. मछलियों में बीमारी नहीं पनपने दी है. मछलियों में फुर्ती लाने के लिए आपने जाल चलवाया है और भैंसें भी तालाब में उतरवाई हैं तो रोहू, कतला और नैनी ब्रीड जैसी मछलियां 18 महीने में डेढ़ से दो किलो वजन तक की हो जाती हैं. दिल्ली-एनसीआर में इस वजन की मछलियां खासतौर पर पसंद की जाती हैं.
 

 

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