खाद्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत में मुख्य रूप से गेहूं और धान की खेती की जाती है. यही वजह है कि अन्य देश भी खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए कहीं न कहीं भारत पर निर्भर रहते हैं. ऐसे में सरकार ने मंगलवार देर रात जारी दो अलग-अलग अधिसूचनाओं में कहा कि भारत कुछ चुनिंदा देशों को गेहूं और टूटे चावल के निर्यात को मंजूरी देने का फैसला किया है.
वहीं दक्षिण एशियाई देश ने स्थानीय कीमतों को कम करने के लिए 2022 में गेहूं और टूटे चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन किए गए अनुरोधों पर, भारत 1 अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष 2023/24 में इंडोनेशिया, सेनेगल और गाम्बिया को टूटे चावल के निर्यात की अनुमति दे दी है. नई दिल्ली ने नेपाल के अनुरोध को भी स्वीकार कर लिया है और चालू वित्त वर्ष में गेहूं के निर्यात की अनुमति दे दी है.
सरकार ने अधिसूचना में कहा कि इन देशों को अनाज निर्यात करने वाले भारतीय निर्यातकों को गेहूं और टूटे चावल के आवंटित कोटा के लिए बोली लगाने की जरूरत है. मीडिया ने शुक्रवार को व्यापार मंत्री के हवाले से कहा कि अगर अल नीनो मौसम पैटर्न घरेलू आपूर्ति को प्रभावित करता है तो इंडोनेशिया ने भारत सरकार के साथ संभावित रूप से 1 मिलियन टन चावल आयात करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
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एक्सपर्ट कहते हैं कि टुकड़ा चावल के निर्यात पर इसलिए प्रतिबंध है क्योंकि इथेनॉल बनाने में इसका प्रयोग हो रहा है. अभी इथेनॉल बनाने में 11 फीसद टूटा चावल लगता है और 65 परसेंट गन्ने के बाॅयो प्रोडक्ट का इस्तेमाल होता है. सरकार 2025 तक पेट्रोल में 25 परसेंट इथेनॉल मिलाने का लक्ष्य लेकर चल रही है. इसके लिए बड़ी मात्रा में इथेनॉल बनाना होगा. हालांकि सरकार अब गन्ना और चावल के अलावा मक्के से भी इथेनॉल बनाने पर विचार कर रही है. लेकिन अभी चावल पर ही अधिक दबाव है. इस वजह से भी टुकड़ा चावल के निर्यात पर बैन चल रहा है. भारत एंबेसी के स्तर पर कुछ जरूरतमंद देशों को टुकड़ा चावल का निर्यात कर रहा है.
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