बाग- बगीचा: करौंदा कांटेदार और झाड़ीदार सूखा सहनशील पौधा है. इसे सूखी, बंजर, रेतीली, पथरीली भूमि में भी लगाया जा सकता है. इसे अक्सर खेतों और मेड़ों के आसपास लगाया जाता है. यह पौधा फल देने के साथ-साथ उनकी फसलों की सुरक्षा भी करता है. करौंदा एक कांटेदार झाड़ी जैसा पेड़ होने के कारण नीलगाय जैसे जंगली जानवरों को फसल नुकसान पहुंचाने से रोकता है. करौंदा को किसी भी फसल या बागवानी के आसपास लगाया जाता है. इसके फल खट्टे और स्वादिष्ट होते हैं जिससे जेली, मुरब्बा, चटनी और कैंडी बनाकर अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है. बाग बगीचा सीरीज में जानेंगे करौंदा की बेहतर किस्मों और इसकी बागवानी की तकनीक के बारें में.
करौंदा की किस्मों को अचार और ताजे फल खाने के उद्देश्य से विकसित किया गया है. सीएचएस कोडागु के अनुसार, करौंदा की किस्म पंत मनोहर को 2007 में जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर में विकसित किया गया है. यह एक झाड़ी है जिसका फल गहरे गुलाबी रंग का होता है. इस फल की सफेद पृष्ठभूमि पर गहरा गुलाबी रंग होता है. इसके फल का वजन 3.49 ग्राम होता है और प्रति पौधा उपज लगभग 27 किलोग्राम होती है. अचार बनाने के लिए यह सबसे अच्छी किस्म है.
पंत सुदर्शन किस्म कोसाल 2007 में जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर द्वारा विकसित किया गया है. इसकी किस्में मध्यम आकार की घनी झाड़ियों वाली हैं. इसके फल सफेद पृष्ठभूमि पर गुलाबी लाल रंग के होते हैं. पकने पर फल गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं. फल का औसत वजन 3.46 ग्राम होता है. एक पौधे से साल भर में लगभग 29 किलो उपज मिलती है.
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पंत सुवर्णा 2007 में जीबी पंत कृषि विश्वविद्यालय, पंतनगर द्वारा विकसित तीसरी किस्म थी. इस किस्म के फलों का रंग हरा और गहरा भूरा लाल होता है. वास्तविक फल का वजन 3.62 ग्राम होता है. इसकी उपज लगभग 22 किलोग्राम प्रति पौधा होती है. पकने पर फलों का रंग गहरा भूरा होता है.
कोंकण बोल्ड किस्म 2004 में कोंकण कृषि विद्यापीठ, दापोली, महाराष्ट्र में विकसित की गई है. इसके पौधे मध्यम आकार के और मजबूत होते हैं. इसमें फूल फरवरी-मार्च माह में और कुछ फल मई-जून माह में आते हैं. फल आकार में आयताकार और वजन 12-15 ग्राम होता है. फल का रंग गहरा बैंगनी होता है. फल मीठे होते हैं. एक पौधे पर हर साल 2000-2500 संख्या में फल लगते हैं. ये फल ताज़ा खाने के लिए सर्वोत्तम होते हैं.
सीएचईएस- के-II-7 किस्म को सीएचईएस चेट्टल्ली कोडागु द्वारा विकसित किया गया है. इसके पौधे मध्यम आकार के होते हैं और फरवरी-मार्च के महीने में फूल आते हैं. इस किस्म में मई-जून में फल आ जाते हैं. फल आकार में आयताकार और वजन 12 -13 ग्राम होता हैं. फलों का रंग गहरे काले-बैंगनी रंग का होता है और छिलके पतले होते हैं. एक साल पुराना कोई पौधा हर साल लगभग 1800-2100 सख्यां में फल देता है. यह ताजा खाने और प्रोसेसिंग दोनों के लिए बेहतर किस्म है.
सीएचईएस- के- वी 6 को भी चेट्टल्ली कोडागु द्वारा विकसित किया गया है. यह किस्म मध्यम आकार की है और इसमें फूल जनवरी-फरवरी में और फल मई-जून में आते हैं. इसके फल का औसत वजन लगभग 13-15 ग्राम, गहरा काला लाल रंग, लाल गूदा और बहुत कम बीज होते हैं. इस किस्म के ताजे फल को खाना बेहतर माना जाता है.
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सिंचित क्षेत्रों में करौंदा के पौधों की रोपाई जुलाई-अगस्त और फरवरी-मार्च में की जा सकती है. करौंदे के पौधों को बाड़ के रूप में लगाने के लिए पौधों के बीच की दूरी 1 मीटर रखनी चाहिए. करौंदे का बगीचा लगाने के लिए खेत में 3 x 3 या 4 x 4 मीटर की दूरी पर 60x60x60 सेमी. आकार के गढ्ढे खोदकर उनमें 15 किलो गोबर की खाद और 50 ग्राम मिथाइलपैराथियान 2 प्रतिशत चूर्ण मिलाकर आसपास की मिट्टी को अच्छी तरह से मिलाकर दबा देना चाहिए. इन गड्ढो में हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए. मेंड़ और बाड़ के लिए पौधे 1 से 1.5 मीटर की दूरी पर लगाएं. इसके बाद 15 दिन बाद पौधा रोपण करें. पौधे को 4 x 4 मीटर की दूरी पर रोपण करने से प्रति एकड़ 225 पौधे लगाए जा सकते हैं.
करौंदा में बीज से तैयार पौधे आमतौर पर बुआई के 4-5 साल बाद फल देने लगते हैं. लेकिन गुटी से तैयार पौधे रोपाई के 2-3 साल बाद ही फल देने लगते हैं. फल लगने के लगभग 2-3 महीने बाद जुलाई-सितंबर में तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं. फल की सतह का रंग बदलना परिपक्वता का संकेत है. फल तोड़ते समय इस बात का ध्यान रखें कि सब्जी, अचार और चटनी के लिए कम विकसित और कच्चे फल चुनें. जेली बनाने के लिए कच्चे फल चुनें क्योंकि इस समय फलों में पेक्टिन की मात्रा अधिक होती है जो जेली के लिए बेहतर होता है. करौंदा की उपज प्रबंधन पर निर्भर करती है. आम तौर पर करौंदा की एक पूर्ण विकसित झाड़ी लगभग 15-25 किलोग्राम फल देती है.
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