हिमाचल प्रदेश के कॉफी की खेती के लिए उपर्युक्त क्षेत्रों में कॉफी को नकदी फसल बनाने के लिए विभिन्न मुद्दों और अपनाई जाने वाली रणनीतियों पर चर्चा करने के लिए मंगलवार को डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी में एक दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया गया. यह कार्यक्रम राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना की संस्थागत विकास योजना (एन॰ए॰एच॰ई॰पी॰ आई॰डी॰पी॰) के समर्थन में आयोजित किया गया.
घुमारवीं के विधायक राजेश धर्माणी, जिन्होंने राज्य में बड़े स्तर पर कॉफी की खेती की संभावना पर विभिन्न हितधारकों के बीच चर्चा शुरू की है. वो इस अवसर पर मुख्य अतिथि रहे. धर्माणी ने विभिन्न कॉफी पर किस्मों जो अनुकूल वातावरण वाले क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त हो सकती हैं उन पर शोध करने के लिए विश्वविद्यालय से तकनीकी को लेकर सहयोग मांगा है.
उद्योग विशेषज्ञों, कर्नाटक से आए कॉफी उद्यमियों, विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और कॉफी नर्सरी पर कार्य कर रहे संबंधित विभागों के अधिकारियों की सभा को संबोधित करते हुए धर्माणी ने कहा कि बिलासपुर जिले के कुछ हिस्सों में कुछ किसानों द्वारा कॉफी उगाई जा रही है और इसकी संभावना पर आगे शोध अध्ययन करने की आवश्यकता है, ताकि हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर खेती की संभावना खोजी जा सके. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय और संबंधित विभाग इस उद्देश्य में मदद कर सकते हैं और एक नई नकदी फसल की खेती का मार्ग दिखा सकते हैं.
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कर्नाटक के कॉफी विशेषज्ञों और उद्यमियों ने भी कॉफी की खेती के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रस्तुत किए. स्वेन विंसेंट गोवेस और प्रियंका वास नाइक ने जलवायु परिस्थितियों, विभिन्न किस्मों, कटाई और कॉफी के साथ उगाई जा सकने वाली अन्य सह फसलों सहित विभिन्न पहलुओं पर एक विस्तृत प्रस्तुति दी. उन्होंने साझा किया कि भारत को उसकी छाया में उगाई जाने वाली कॉफी के लिए जाना जाता है. कॉफी की दो मुख्य किस्में, अरेबिका और रोबस्टा यहां मुख्य रूप से उगाई जाती हैं. वैश्विक कॉफी उत्पादन में भारत की हिस्सेदारी केवल 3 प्रतिशत थी और इस उत्पादन का लगभग 85 प्रतिशत निर्यात किया जाता है जिससे हजारों करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है. डॉ. अरुण भारद्वाज ने विभिन्न ब्रांडिंग रणनीतियों को साझा किया जो कॉफी उत्पादकों द्वारा अपनी उपज का मूल्य बढ़ाने के लिए अपनाई गई है.
कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने उन क्षेत्रों में कॉफी पर अनुसंधान परीक्षण आयोजित करने में विश्वविद्यालय के सभी समर्थन का आश्वासन दिया, जहां इसकी खेती के लिए उपयुक्त स्थितियां हैं. उन्होंने कहा कि अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए, पोस्ट ग्रेजुएट और डॉक्टरेट छात्रों को अनुसंधान समस्याएं सौंपने के साथ-साथ विश्वविद्यालय और नेरी कॉलेज में परीक्षण शुरू किए जाएंगे. उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय राज्य में कॉफी की खेती पर पहले से किए गए काम को आगे बढ़ाएगा. कॉफी में प्रदेश के लिए एक नई नकदी फसल बनने की गुंजाइश है. इससे फसल विविधीकरण में मदद मिलेगी और एक ही फसल पर निर्भरता कम होगी.
डॉ. केके रैना, एनएएचईपी आईडीपी के प्रधान अन्वेषक ने इस परियोजना के तहत विश्वविद्यालय द्वारा किए गए कौशल उन्नयन और उद्यमिता गतिविधियों के बारे में बताया. उद्यमिता विकास पर एक बातचीत सत्र भी आयोजित किया गया जहां विशेषज्ञों ने छात्रों के साथ अपनी उद्यमशीलता की यात्रा साझा की और उन्हें कृषि क्षेत्र में अपने उद्यम शुरू करने के लिए प्रेरित किया. कार्यक्रम का समापन अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ. इस कार्यक्रम में कृषि विभाग के वैधानिक अधिकारी, विभागाध्यक्ष और वैज्ञानिक, अधिकारी शामिल रहे.
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