![Which came first - egg or chicken? (Photo: Getty) Which came first - egg or chicken? (Photo: Getty)](https://akm-img-a-in.tosshub.com/lingo/images/story/media_bank/202311/65640fa0502a3-egg-or-chickenjpg-161725-16x9.jpg?size=948:533)
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस अवेयरनेस वीक मना रहा है. इसका मकसद है कि पशु-पक्षियों में एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल को कम करने के लिए जागरुक किया जाए. ऐसा दावा किया जाता है कि प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल किया जाता है. पोल्ट्री सेक्टर पर भी ये आरोप लगते रहे हैं. लेकिन पोल्ट्री इंडिया एक्सपो-2023 में किसान तक से बातचीत करते हुए पोल्ट्री एक्सपर्ट एसके मल्होत्रा ने दावा किया है कि एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल से पक्षियों की ग्रोथ बढ़ती नहीं उल्टे और कम हो जाती है.
प्रोटीन समेत कई और ऐसी दूसरी चीजें हैं जिनसे ग्रोथ बढ़ती है. कई पोल्ट्री फार्म में हमने ऐसा करके दिखाया है. और इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि ऐसा करने के बाद चिकन-अंडे के नमूने जांच में फेल भी नहीं होते हैं. एक्सपोर्ट के दौरान भी किसी तरह की कोई परेशानी सामने नहीं आती है.
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इंटरफेस फार्मास्यूटिकल्स के एसके मल्होहत्रा ने किसान तक को बताया कि रूस-यूक्रेन वॉर के दौरान इंडियन पोल्ट्री सेक्टर को एक बड़ा मौका मिला था. इस सेक्टर से जुड़े बड़े प्लेयर चाहते तो इसका फायदा उठाया जा सकता था. लेकिन किसी ने भी इस ओर ध्यान नहीं दिया. हर कोई बस घरेलू बाजार में लगा हुआ है. लेकिन एंटीबायोटिक्स जैसी परेशानियों को लेकर फार्मर को जागरुक करने और अपने प्रोडक्ट को एक्सपोर्ट के मानकों पर बनाने की ओर किसी का ध्याान नहीं है. ये परेशानियां ना के बराबर चंद लोगों के बीच में ही है. लेकिन जरूरत है कि इसे भी दूर किया जाए.
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एक्सपर्ट का मानना है कि पशुओं और इंसानों के साथ ही एंटीबायोटिक दवाएं पर्यावरण के लिए भी बेहद खतरनाक होती हैं. होता ये है कि ज्यादा एंटीबायोटिक देने से जानवरों में एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस पैदा हो जाता है. एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंस एक ऐसी स्टेज है जिसमें किसी बीमारी को ठीक करने के लिए जो दवा या एंटीबायोटिक दी जाती है वो काम करना बंद कर देती है. कुछ बैक्टीरिया कई दवाओं के प्रति प्रतिरोधक क्षमता डवलप कर लेते हैं जिससे वो दवाएं असर करना बंद कर देती हैं. इस कंडीशन को सुपर बग कहा जाता है. सुपर बग कंडिशन से विश्व में हर साल 10 लाख से ज्यादा लोगों की मौत इस वजह से होती है.
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