Heating Earth : नदियों के सूखने से सिकुड़ रहा है देश का जल क्षेत्र, असहनीय हो रही गर्मी

Heating Earth : नदियों के सूखने से सिकुड़ रहा है देश का जल क्षेत्र, असहनीय हो रही गर्मी

भारत में तीव्र विकास की पहली मार प्रकृति पर पड़ रही है. एक एक कर सूखती नदियां, सिकुड़ता जल क्षेत्र, सिमटते जंगल और विकास के नाम पर जमीन का अनियंत्रित इस्तेमाल, प्रकृति पर पड़ती मार के स्पष्ट उदाहरण हैं. इसका सीधा असर Extreme Weather Condition के रूप में भीषण सर्दी, प्रचंड गर्मी और अनुपयोगी साबित हो रही Heavy Rain के रूप में देखने को मिल रहा है.

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Heating Earth : नदियों के सूखने से सिकुड़ रहा है देश का जल क्षेत्र, असहनीय हो रही गर्मीविकास जनित भीषण गर्मी से सूख रही हैं देश की नदियां (फाइल फोटो)

देश के सघन वन क्षेत्र को लगातार पहुंच रहे नुकसान के बाद अब विकास की मार जलाशयों पर पड़ने लगी है. धरती की शीतलता को बरकरार रखने में अहम भूमिका निभाने वाले Green Land और Wet Land के सिमटने का असर असहनीय साबित हो रही गर्मी के रूप में इस साल पूरे भारत में देखने को मिल रहा है. इसके पीछे की वजह धरती के तापमान को काबू में रखने वाली जीवनदायिनी नदियों का वजूद तेजी से खत्म होना है. केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट इस भयावह स्थिति की ताकीद करते हुए बताती है कि बीते कुछ समय में देश की 13 नदियां अपने अस्तित्व को खो चुकी हैं. जो नदियां अपनी अंतिम सांसे गिन रही हैं, वे भी अपने नाम को सिर्फ दस्तावेजों में ही दर्ज करा पाने में सक्षम हो पाएंगी. देश की जिन बड़ी नदियों में पानी बचा है, वह किसी भी तरह से इस्तेमाल नहीं किए जा सकने की हद तक दूष‍ित हो चुका है. विकराल होते मौसम को वैज्ञानिक भले ही Climate Change कह कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लें, मगर जल आयोग की रिपोर्ट भविष्य में इस संकट के और ज्यादा गहराने का Red Alert है.

13 नदियां हुई जलरहित

Central water Commission (CWC) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि देश की नदियां तेजी से सूख रही हैं. इनमें बड़ी नदियों की सहायक नदियां वजूद के संकट का सबसे ज्यादा सामना कर रही हैं. इलाकाई आधार पर अगर देखा जाए तो दक्षिणी राज्यों में छोटी नदियों के सूखने की गति ज्यादा है.

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रिपोर्ट के अनुसार ये नदियां आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा के 86 हजार वर्ग किमी से अधिक क्षेत्रफल से गुजरते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं. इन नदियों की मदद से इस इलाके की 60 फीसदी Agriculture Land सिंचित होती है. रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई है कि पिछले महीने मई तक गर्मी के चरम पर पहुंचने से पहले ही ये नदियां जलरहित हो गई. इससे एक बड़े इलाके में गर्मी की फसलें करने वाले किसानों की मुसीबत बढ़ना तय है.

कम हो रही है जलाशयों की क्षमता

रिपोर्ट में देश के उन बड़े जलाशयों का भी जिक्र किया गया है, जिनकी जल भंडारण क्षमता भी लगातार कम हो रही है. ऐसे जलाशयों की संख्या 150 तक पहुंच गई है. इनकी Water Storage Capacity 36 प्रतिशत तक कम हुई है. इतना ही नहीं, इनमें से 6 जलाशय तो ऐसे हैं जिनमें पिछले कुछ सालों में पानी एकत्र हुआ ही नहीं है.

वहीं, 86 जलाशयों की क्षमता 40 फीसदी या उससे भी कम रह गई है. रिपोर्ट के मुताबिक जल भंडारण क्षमता खाे रहे 150 जलाशयों में सबसे ज्यादा दक्ष‍िणी राज्यों में हैं. इसके बाद महाराष्ट्र और गुजरात के जलाशय भी इनमें शामिल हैं.

प्राकृतिक जल संग्रह क्षेत्रों की अगर बात की जाए तो देश का सबसे बड़े गंगा बेसिन क्षेत्र पर 11 राज्यों के 2.86 लाख गांव निर्भर हैं. इन गांवों में गंगा बेसिन से पानी की उपलब्धता धीरे धीरे कम हो रही है. जानकारों के मुताबिक यह स्थ‍िति इसलिए भी चिंताजनक है, क्योंकि गंगा बेसिन क्षेत्र में 65 फीसदी से ज्यादा कृष‍ि योग्य जमीन है. इससे स्पष्ट है कि इस इलाके में न केवल पेयजल बल्कि Irrigation के लिए भी Water availability प्रभावित होने से जनसामान्य के अलावा खेती पर भी बुरा असर पड़ना तय है.

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नदी क्षेत्रों में सूखा का संकट

रिपोर्ट के मुताबिक गंगा बेसिन के अलावा ब्रह्मपुत्र, सिंधु और कावेरी बेसिन के अलग अलग क्षेत्रों में साल दर साल Draught Condition व्यापक हो रही है. इतना ही नहीं देश में 35 फीसदी से ज्यादा इलाका ऐसा है, जहां मौजूदा दौर में असामान्य एवं असाधारण रूप से सूखे का सामना करना पड़ रहा है. इसमें भी लगभग 8 प्रतिशत क्षेत्र Severe Draught की स्थिति में है.

रिपोर्ट के अनुसार जरूरत के मुताबिक जहां जितनी बारिश होनी चाहिए, वहां उतनी बारिश न होना और अधिकांश इलाकों में बारिश का असमान वितरण होना, इस स्थिति की मूल वजह है. इस कारण से Rain Water का जलाशयों में पर्याप्त संग्रहण नहीं हो पा रहा है. इस स्थ‍िति का सीधा असर शहरी क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति और खेती में सिंचाई पर पड़ रहा है.

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