1 अप्रैल से राजस्थान में कृषि व्यापारियों को पहले के मुकाबले अधिक किसान कल्याण सेस का भुगतान करना पड़ सकता है, क्योंकि राज्य सरकार ने अभी तक यह निर्णय नहीं लिया है कि मार्च 2021 से प्रचलित रियायती दरों को जारी रखा जाए या नहीं. हालांकि, इसकी वैधता रविवार को समाप्त हो रही है. जब तक सरकार इसे बढ़ाने का निर्णय नहीं लेती, तब तक 2021 से पहले जिन दरों पर से किसान कल्याण सेस लिया जाता था, वे लागू रहेंगे. इससे कई कृषि और बागवानी वस्तुओं पर सेस मौजूदा स्तर से दोगुना हो जाएगा.
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, 27 मार्च को राज्य सरकार से मंडियों को प्राप्त एक सूचना के अनुसार, मंडियों को 1 मार्च, 2021 से पहले प्रचलित दरों पर किसान कल्याण सेस लगाना होगा, क्योंकि अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है कि रियायती दरें को बढ़ाया जाए या नहीं. एक मंडी अधिकारी ने कहा कि राजस्थान ने कोविड महामारी के बाद मई 2020 में किसान कल्याण उपकर पेश किया था. हालांकि, 2021 में दरें कम की गईं. अधिकारी ने कहा कि हमें नहीं पता कि नई सरकार क्या निर्णय लेगी. इसलिए स्पष्टीकरण चाहते थे, क्योंकि तीन दिन की लगातार छुट्टियां हैं. अगर सरकार फैसला भी लेती है, तो देर हो जाएगी क्योंकि उसे चुनाव आयोग से मंजूरी लेनी पड़ सकती है.
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राज्य सरकार की 22 मई, 2020 की अधिसूचना के अनुसार, किसान कल्याण सेस की दर ऊन पर शून्य, ज्वार, बाजरा, मक्का और इसबगोल पर 0.50 प्रतिशत, फलों और सब्जियों पर 2 प्रतिशत और शेष कृषि पर 1 प्रतिशत थी. लेकिन पिछले तीन वर्षों 2021-22 से 2023-24 के दौरान राज्य सरकार ने समय-समय पर अधिसूचना जारी कर फलों और सब्जियों पर किसान कल्याण सेस की दर को घटाकर 1 प्रतिशत और अन्य कृषि वस्तुओं पर 0.5 प्रतिशत कर दिया.
राज्य हर साल मंडी शुल्क से लगभग 600 करोड़ रुपये और किसान कल्याण सेस से लगभग 300-350 करोड़ रुपये की कमाई करता है. जयपुर स्थित किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा कि जब भी संसाधन की कमी होती है, सरकारें मंडी शुल्क या किसान कल्याण सेस से कमाई की गई राशि को अन्य कार्यक्रमों में लगा देती हैं, क्योंकि उन्होंने मान लिया है कि यह राज्य के लिए राजस्व है.
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उन्होंने कहा कि राजस्थान सरकार ने अतीत में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत सब्सिडी में अपना हिस्सा चुकाने के लिए मंडी शुल्क से संग्रह का उपयोग किया था. जाट ने इस प्रथा को रोकने की मांग की और एक विशेष मंडी से शुल्क और सेस से उत्पन्न धन को किसान की बिना बिकी फसल के लिए सफाई मशीनों और उचित भंडारण सुविधा जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए परिसर के भीतर खर्च किया जाना चाहिए.
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