हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में खाद्य तेलों पर आयात शुल्क में बार-बार बदलाव से बाजार विकृत होता है. इससे आयात योजनाएं जटिल होती हैं और रिफाइनरों व व्यापारियों के लिए लेन-देन की लागत बढ़ती है. 'भारत के खाद्य तेल क्षेत्र में शुल्क अस्थिरता और हितधारक गतिशीलता' शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शुल्क बढ़ने से खुदरा कीमतों में तुरंत उछाल आता है, जबकि शुल्क में कटौती से अक्सर उपभोक्ताओं को अधूरी या विलंबित राहत मिलती है.
भारत अपनी जरूरत का लगभग 57% खाद्य तेल आयात करता है. पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी की खपत लगभग 250 लाख टन है. खाद्य तेल का वार्षिक आयात बिल लगभग 20 अरब डॉलर (करीब 1 लाख 76 हजार करोड़ रुपये) का है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के आर्थिक अध्ययन एवं योजना केंद्र, वीईके नीति परामर्श एवं अनुसंधान तथा एसोचैम की संयुक्त रिपोर्ट में कहा गया है कि इन अल्पकालिक एडजस्टमेंट का उद्देश्य मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाना या उपभोक्ताओं की सुरक्षा करना था, लेकिन इनसे नीतिगत अस्थिरता पैदा हुई है, बाजार की भविष्यवाणी कम हुई है और हितधारकों का विश्वास कमजोर हुआ है.
अंग्रेजी अखबार 'फाइनेंशियल एक्स्प्रेस' में छपी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले दशक में खाद्य तेलों पर टैरिफ नीति में लगातार और अप्रत्याशित बदलाव हुए हैं. 2015 और 2025 के बीच 25 से अधिक परिवर्तन हुए हैं. इसमें कहा गया है कि आयात टोकरी में पाम तेल की हिस्सेदारी 60% है. इंडोनेशिया और मलेशिया पर विभिन्न प्रकार के खाना पकाने के तेलों के लिए भारत की अधिक निर्भरता हमारे देश को निर्यात प्रतिबंध, जैव ईंधन डायवर्जन और भू-राजनीतिक व्यवधान जैसे बाहरी नीति जोखिमों के लिए उजागर करती है.
अर्जेंटीना और अफ्रीकी देशों को पाम तेल के आयात में विविधता लाने की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत वैश्विक झटकों, मुद्रा में उतार-चढ़ाव और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के प्रति संवेदनशील बना हुआ है. इस रिपोर्ट में वार्षिक समीक्षा के साथ 3-5 वर्षीय टैरिफ नीति योजना शुरू करने की सिफारिश की गई है, साथ ही सभी शुल्क संशोधनों के लिए 30-60 दिनों की अग्रिम सूचना सुनिश्चित की जानी चाहिए. सरकार को आयात शुल्क संशोधनों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना चाहिए.
इसने सरकार से घरेलू रिफाइनिंग को संरक्षित करने के लिए कच्चे और रिफाइंड तेलों के बीच 7.5-10% शुल्क अंतर बनाए रखने का भी आग्रह किया, ताकि अचानक उलटफेर से बचा जा सके, जो आयात संरचना को विकृत करता है और प्रसंस्करण को हतोत्साहित करता है. इस रिपोर्ट में प्रति-चक्रीय टैरिफ लागू करने की सिफारिश की गई है जो वैश्विक कीमतों के साथ धीरे-धीरे समायोजित होंगे. इसमें टैरिफ संशोधन से पहले उद्योग निकायों, किसान समूहों और FMCG संघों के साथ गहन परामर्श का सुझाव दिया गया है.
30 मई को, भारत ने कीमतों में बढ़ोतरी को रोकने के लिए इन तीन तेलों पर मूल कस्टम ड्यूटी और सैस सहित प्रभावी इंपोर्ट ड्यूटी को पिछले साल सितंबर में लगाए गए 27.5% से घटाकर 16.5% कर दिया. उद्योग के सूत्रों के अनुसार, 2024-25 तेल वर्ष (नवंबर-अक्टूबर) के दौरान भारत का खाद्य तेलों का आयात पिछले साल के 16 मीट्रिक टन से लगभग 5% घटकर 15.5 मीट्रिक टन से नीचे रहने की संभावना है. हनारा देश इंडोनेशिया, मलेशिया, थाईलैंड, यूक्रेन, रूस और अर्जेंटीना से तेल आयात करता है. भारत सरसों, सोयाबीन और मूंगफली जैसे तेलों का उत्पादन करता है.
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