
बिहार जैसे पिछड़े राज्य में कृषि ही यहां के लोगों के जीवन का आधार है. वहीं, बीते कुछ सालों में राज्य के कई युवा दूसरे राज्यों में नौकरी छोड़ कृषि से जुड़कर अपनी जीवन को आगे बढ़ा रहे हैं. लेकिन इन तमाम घटनाओं से अलग बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर (बीएयू) ने वैसे लोगों को कृषि से स्वरोजगार स्थापित करने का प्रशिक्षण देने का निर्णय लिया है, जो किसी तरह के आपराधिक घटनाओं की वजह से जेल में सजा काट रहे हैं. बीएयू और विशेष केंद्रीय कारा, भागलपुर ने एक सराहनीय पहल की शुरुआत की गई है, जिसमें कैदियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने और जेल से बाहर निकलने के बाद उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कृषि आधारित स्वरोजगार से जोड़ने के उद्देश्य से प्रशिक्षण देने का जिम्मा उठाया है.
जेल में सजा काट रहे कैदियों की एक बड़ी आबादी गांव से ताल्लुक रखती हैं, जिनका कहीं न कहीं कनेक्शन खेती से जुड़ा हुआ है. लेकिन इनमें से कई कैदी बेरोजगारी या आर्थिक तंगी की वजह से अपराध की दुनिया में कदम रख लेते है. वैसे लोग जेल से बाहर जाने के बाद अपराध की दुनिया में कदम नहीं रखें और कृषि संबंधित स्वरोजगार से अपने जीवन की आर्थिक पक्ष को मजबूत करें. इसी उद्देश्य से जेल प्रशासन ने बीएयू के साथ मिलकर कैदियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण देने का काम कर रही है, जिसके तहत शुक्रवार को बिहार कृषि विश्वविद्यालय के मृदा वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार झा ने विशेष केंद्रीय कारा परिसर में कैदियों को वर्मी कम्पोस्ट निर्माण पर आधारित स्वरोजगार प्रशिक्षण दिया.
केंद्रीय कारा भागलपुर में कैदियों को प्रशिक्षण के दौरान बीएयू के मृदा वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार झा ने वर्मी कम्पोस्ट उत्पादन की विधि, उसका समृद्धिकरण, उत्पाद और बेचने, उर्वरक नियंत्रण आदेश और व्यवसाय के अर्थशास्त्र की विस्तृत जानकारी दी. उन्होंने बताया कि कोई भी व्यक्ति प्रतिदिन सिर्फ 10–15 मिनट समय देकर वर्मी कंपोस्ट तैयार करके महीने का 8–9 हजार रुपये कमा सकता है और अगर थोड़ी अधिक मेहनत की जाए तो वही व्यक्ति 50 हजार से 1 लाख रुपये प्रतिमाह की कमाई कर सकता है.
बीएयू और विशेष केंद्रीय कारा भागलपुर द्वारा शुरू किया गया. यह पहल न केवल कैदियों के जीवन में बदलाव लाने का माध्यम बनेगी, बल्कि समाज को भी एक सकारात्मक संदेश भी देगी. वहीं,प्रशिक्षण कार्यक्रम में काराधीक्षक राजीव कुमार झा ने बताया कि यह प्रशिक्षण केवल एक बार का प्रयास नहीं होगा, बल्कि इसकी पुनरावृत्ति तब तक की जाएगी जब तक कैदी इसे व्यावहारिक रूप से सीख नहीं लेते और जेल परिसर में ही इसका सफल उत्पादन न कर लें. \
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