देशभर में प्राकृतिक खेती के महत्व को समझते हुए बढ़ावा दिया जा रहा है. इसी क्रम में मध्य प्रदेश ने एक ओर कदम रख दिया है. गुरुवार को राज्य में प्राकृतिक खेती के प्रोत्साहन के लिए जबलपुर के मानस भवन में "प्राकृतिक खेती के नाम एक चौपाल" कार्यक्रम आयाेजित किया गया. इसमें सीएम डॉ. मोहन यादव, गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री एदल सिंह कंषाना और अन्य मंत्री शामिल हुए. कार्यक्रम के दौरान सीएम यादव ने प्राकृतिक उत्पादों के उपार्जन को लेकर बड़ी घोषणा की.
सीएम यादव ने अफसरों को प्राकृतिक खेती और रासायनिक खेती से प्राप्त उपज की अलग-अलग खरीद के लिए मंडियों में दो तरह की व्यवस्था बनाने के लिए कहा है, ताकि फसलों के उपभोग में कठिनाई न आए. सीएम ने कहा कि यह कार्यक्रम अद्भुत और प्रेरणादायी है. उन्होंने कहा कि जैसे कोरोना ने एक बार फिर हमे नमस्कार का असली महत्व समझाया है, उसी तरह अब रासायनिक खेती के दुष्परिणामों के बाद हमें प्राकृतिक खेती का विचार समझ में आ रहा है.
डॉ. यादव ने कहा कि मैंने खुद भी खेती की है, लेकिन रासायनिक खादों का इस्तेमाल नहीं किया. उन्होंने कहा कि पश्चिम आधारित सोच के कारण हमारे यहां खेती में रासायनिक खाद का इस्तेमाल बढ़ा है. सीएम ने कहा कि लोगों में भारत के पुरातन ज्ञान को लेकर रूझान बढ़ रहा है. इसे देखते हुए राज्य में गौ-पालन के लिए गौशालाएं बनाई जा रही हैं. इनसे प्राकृतिक खेती को भी बढ़ावा मिलेगा. मुख्यमंत्री यादव ने कहा कि मध्यप्रदेश में प्राकृतिक खेती की अपार संभावनाएं हैं.
इस दौरान उन्होंने कृषि मंत्री एदल सिंह कंषाना से कहा कि प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए योजनाएं बनाने के लिए कहा और इन्हें हर हाल में लागू करने का भरोसा दिया. सीएम ने कहा कि प्रदेश में अभी दूध उत्पादन 9 प्रतिशत है और हम इसे 25 प्रतिशत तक ले जाएंगे. कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुए गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने बेहद सरल भाषा में प्राकृतिक खेती के बारे में लोगों को समझाया. उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती के लिए गाय के गोबर से बने जीवामृत का इस्तेमाल कर कृषि उत्पादन को बढ़ाकर धरती की सेहत को भी सुरक्षित किया जा सकता है.
आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती को लेकर अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती के दुष्परिणामों को देखते हुए उन्होंने सबसे पहले 5 एकड़ जमीन पर प्राकृतिक खेती शुरू की थी, जिसमें पहले साल की तुलना में गुणात्मक रूप से ज्यादा फसल की पैदावार मिली. वे लगातार प्राकृतिक खेती कर रहे हैं और बेहतर उत्पादन भी हासिल कर रहे हैं. उन्होंने कार्यक्रम के माध्यम से रासायनिक खेती के दुष्परिणामों की विस्तार से जानकारी दी और लोगों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया. इस दौरान उन्होंने प्राकृतिक खेती और जैविक खेती में अंतर भी बताया.
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि जिस तरह जंगल में बिना खाद-पानी दिए जंगली पेड़ भरपूर उपज देते हैं, उसी तरह का नियम प्राकृतिक खेती में भी लागू होता है. प्रकृति अपने इकोसिस्टम से हर चीज को कंट्राेल कर अपने मूल स्वरूप में ला देती है. यह इंसानों की सेहत के लिए हानिकारक नहीं होते. प्राकृतिक खेती जीवन के लिए वरदान है.
आचार्य देवव्रत ने किसानों से अपील की कि वे फसल उगाने के लिए रासायनिक खादों का इस्तेमाल बंद करें. इससे खेती को फायदा पहुंचाने वाले मित्र कीट मर जाते हैं और धरती की उर्वराशक्ति पर बुरा असर पड़ता है. उन्होंने सभी किसानों से कहा कि रासायनिक खेती हानिकारक है और किसान प्राकृतिक खेती अपनायें और प्रकृति से जुड़ें.
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