कनेर के फूल के बारे में आप कितना जानते हैं? इस फूल को अपने इलाके के मंदिरों, बगीचों या पार्कों के पास देखा ही होगा. कनेर के फूल के बारे में आपने इसके औषधीय गुणों के कारण भी सुना होगा. दरअसल कनेर का वैज्ञानिक नाम कैस्केबेला थेवेटिया है. कनेर एक सदाबहार झाड़ी या छोटा पेड़ है जो पांच मीटर तक ऊंचा होता है. इसके फूल प्रत्येक शाखा के अंत में गुच्छों के रूप में उगते हैं. यह विषैला माना जाता है लेकिन यह एक जड़ी-बूटी भी है. बताया गया है कि यह बवासीर, गंजेपन की समस्या, सिफलिस जैसी बीमारियों में काम आता है. इतना ही नहीं कुष्ठ रोग और त्वचा विकार में भी कनेर के औषधीय गुण से लाभ मिलता है.
कनेर का पौधा पूरे फिलीपींस, भारत और नेपाल में पाया जाता है. कनेर के फूल लाल, पीले, सफेद और गुलाबी रंग के होते हैं और हिंदुओं के लिए इनका कुछ धार्मिक महत्व भी है. कनेर पौधे के मनुष्यों, पालतू जानवरों और पशुओं के लिए जहरीले होते हैं. बताया जाता है कि दक्षिण भारत और श्रीलंका के जिन गांवों में कनेर बहुतायत में उगाया जाता है, वहां आत्महत्या के लिए कनेर के बीजों को लोग उपयोग कर लेते हैं. ऐसे में अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ये विषैला है. हालांकि कुछ पक्षी प्रजातियां इन्हें खाती हैं. यह पौधा जहरीला होता है क्योंकि इसमें ग्लाइकोसाइड्स रसायन होते हैं जो हृदय गति को धीमा कर सकते हैं. लेकिन इसका दवाओं के रूप में इस्तेमाल होता है.
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कनेर के फूलों में कुछ जीवाणुरोधी और एंटीसेप्टिक गुण होते हैं और यह कई अन्य औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं. कनेर का उपयोग कुष्ठ रोग, सूजन, घाव, हृदय आदि के लिए औषधि बनाने में किया जाता है. कनेर के पत्तों में भी इसके फूलों की तरह औषधीय गुण होते हैं. आमतौर पर लोग इसकी पत्तियों का पेस्ट बनाकर दर्द वाली जगह पर लगाते हैं. अक्सर घाव और दाद-खुजली में भी इसका इस्तेमाल करते हैं. खासतौर पर पीले कनेर का उपयोग आयुर्वेद में कई समस्याओं जैसे घाव भरने, त्वचा संबंधी समस्याओं आदि को ठीक करने के लिए किया जाता है. पीले कनेर का उपयोग छाल और जड़ के रूप में भी किया जाता है. आप इसकी छाल और जड़ को पीसकर त्वचा, घाव आदि पर लगा सकते हैं. कनेर के लावा का उपयोग काढ़े के रूप में किया जाता है.
कनेर का पौधा जो बारिश के मौसम में कटिंग के माध्यम से आसानी से ग्रो हो सकता है. इस पौधे की देखभाल के लिए आपको ज्यादा मेहनत की आवश्यकता नहीं पड़ती है. कनेर को आसानी से उगाने का पहला कदम कटिंग से शुरू होता है. इसके लिए, आपको मई-जुलाई के महीने में 20 सेंटीमीटर लम्बी कटिंग को गमले या गार्डन की मिट्टी में लगाना चाहिए. कनेर की कटिंग से जड़ें निकलने के कुछ दिन बाद, आपको उन्हें बड़े गमले में ट्रांसप्लांट करना चाहिए. इसके बाद इसमें सही मिट्टी, खाद और नियमित पानी देना बहुत जरुरी हैं.
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