Crop MSP : केंद्र सरकार कैसे तय करती है फसलों की MSP! क्‍या है फार्मूला...

Crop MSP : केंद्र सरकार कैसे तय करती है फसलों की MSP! क्‍या है फार्मूला...

बेशक फसलों की MSP तय करने के लिए CACP की तरफ से A2+FL फार्मूले का प्रयोग किया जाता है, लेकिन सवाल ये है कि CACP फसलों की लागत की गणना कैसे करता है. 

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Crop MSP : केंद्र सरकार कैसे तय करती है फसलों की MSP! क्‍या है फार्मूला...CACP ऐसे तय करता है फसलों की MSP

मोदी सरकार 3.0 की बीते रोज दूसरी कैबिनेट बैठक हुई. इस बैठक में खरीफ सीजन 2024-25 में उगाई जाने वाली 14 फसलों का न्‍यूनतम समर्थन मूल्‍य (MSP) तय किया गया, जिसके तहत धान की MSP में 117 रुपये का इजाफा करके इसे 2300 रुपये प्रत‍ि क्‍विंटल तय कर द‍िया गया है. इसके साथ ही ज्‍वार, बाजरा, रागी, मक्‍का, अरहर, मूंग, मूंगफली, सूरजमुखी, सोयाबीन, तिल, रामतिल, कपास की MSP भी तय की गई है. केंद्र सरकार ने खरीफ सीजन 2024-25 के लिए इन सभी फसलों की MSP में पिछले साल की तुलना में 5 से 12 फीसदी तक की बढ़ोतरी की है. आइए इसी कड़ी में जानते हैं कि आखिर कैसे फसलों की MSP तय की जाती है. कौन फसलों की MSP तय करता है और इसका पैमाना क्या है. 

फसलों की MSP कौन तय करता है!

देशभर में कई तरह की फसलें उगाई जाती हैं, लेकिन केंद्र सरकार रबी और खरीफ सीजन की कुल 23 फसलों पर ही MSP की घोषणा करती है. असल में इन सभी फसलों की MSP तय करने की जिम्‍मेदारी कृषि लागत एवं मूल्‍य आयोग (CACP) की है. CACP केंद्रीय कृषि व किसान कल्‍याण मंत्रालय के अधीन काम करने वाली एक एजेंसी है, जिसकी स्‍थापना 1965 में की गई थी, तब इसका नाम कृषि मूल्‍य आयोग था, जो अब कृषि लागत व मूल्‍य आयोग के नाम से सक्रिय है. 

CACP कुल 23 फसलों की MSP कुछ पैमानों और एक फार्मूले के आधार पर तय करता है, जिसके बाद वह केंद्र सरकार को MSP लागू करवाने की सिफारिश करता है, जिस पर अंतिम मुहर कैबिनेट लगाती है. सीधी सी बात है कि CACP फसलों की MSP तय करने के बाद इसकी सिफारिश करता है और अंतिम घोषणा केंद्र सरकार करती है. मौजूदा वक्‍त में CACP में चार सदस्‍य हैं, जिसके अध्‍यक्ष प्रो विजय पाल शर्मा हैं. हालांक‍ि, सीएसीपी का सुझाव मानने के ल‍िए सरकार बाध्य नहीं है, क्योंक‍ि इस आयोग को संवैधान‍िक दर्जा प्राप्त नहीं है. क‍िसान इसकी भी मांग उठा रहे हैं.  

MSP तय करने का क्‍या फार्मूला

CACP एक निश्‍चित फार्मूले पर फसलों की MSP तय करता है. मौजूदा समय पर फसलों की MSP तय करने के तीन फार्मूले A2, A2+FL और C2+50% प्रांसगिक है. इनमें से CACP 22 फसलों की एमएसपी A2+FL के फार्मूले पर तय करता है.

फसलों के MSP तय करने के A2+FL फार्मूले को विस्‍तार से समझें तो इसके लिए A2 और FL को अलग-अलग समझना होगा. A2 में फसल बुवाई में किसान द्वारा प्रयोग किए बीज, उर्वरक, कीटनाशक, किसान के श्रम, पट्टे पर ली गई जमीन का क‍िराया, ईंधन और सिंचाई पर किए गए खर्च को शामिल किया जाता है. 

जबकि FL का मतलब किसान परिवार की मजदूरी से है, जिसमें खेती में किसान परिवार की अवैतनिक परिश्रम की गणना की जाती है. A2+FL फार्मूले से फसलों की MSP तय करने के लिए खेती में किसान की विभिन्‍न लागतों के साथ ही परिवार के श्रम को भी जोड़ा जाता है. हालांक‍ि, क‍िसान सी-2 फार्मूले पर एमएसपी मांग रहे हैं. 

सी-2 का मतलब कंप्रीहेंस‍िव कॉस्ट यानी संपूर्ण लागत है. इस पर अगर सरकार 50 फीसदी मुनाफा जोड़कर एमएसपी घोष‍ित करे तो क‍िसानों को ज्यादा फायदा म‍िलेगा. इसे एक उदाहरण से समझते हैं. इस समय A2+FL फार्मूले के तहत न‍िकाली गई उत्पादन लागत पर 50 फीसदी मुनाफ जोड़कर सरकार ने 2300 रुपये एमएसपी तय क‍िया है, जबक‍ि अगर सी-2 फार्मूले पर एमएसपी दी जाए तो वह 3000 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल से अध‍िक हो जाएगी. 

इन पैमानों पर तय होता है फसलों का MSP 

बेशक फसलों की MSP तय करने के लिए CACP की तरफ से A2+FL फार्मूले का प्रयोग किया जाता है, लेकिन सवाल ये है कि CACP फसलों की लागत की गणना कैसे करता है. CACP के अनुसार फसलों की MSP तय करते वक्त उसकी उत्‍पादन लागत, डिमांड-सप्‍लाई का ट्रेंड, उपज की कॉस्‍ट का ट्रेंड और उस दाम से अर्थव्‍यवस्‍था पर पड़ने वाले संभावित प्रभाव जैसे पैमानों का ध्‍यान रखा जाता है. CACP के अनुसार इन पैमानों के साथ ही विशेष तौर पर यह जरूर ध्‍यान दिया जाता है कि फसलों की घोषित MSP उसकी लागत से कम से कम डेढ़ गुना अध‍िक हो. 

अब सवाल ये है कि फसलों की लागत की गणना कैसे की जाती है. इसको लेकर CACP स्‍पष्‍ट करता है कि वह इसके लिए केंद्र सरकार के अर्थशास्‍त्र, सांख्‍यिकी, मूल्‍यांकन विभाग द्वारा प्रदान की गई 'भारत में प्रमुख फसलों की खेती की लागत का अध्‍ययन करने की व्‍यापक योजना' द्वारा जुटाए गए राज्‍यवार आंकड़ों को आधार बनाता है. असल में इस योजना के तहत राज्‍य सरकारों और कृषि विश्‍वविद्यालयों को जिम्‍मेदारी दी गई है, वह चयनित किसानों से फसलवार खर्च का डाटा जुटाते हैं, जिसे राज्‍य सरकार फिर केंद्र को भेजते हैं. 
 
अब सवाल ये कि जब राज्‍यों में फसल लागत अलग-अलग है तो कैसे एक फसल लागत का अनुमान लगाया जाता है. असल में CACP राज्‍यवार फसल लागत के डाटा का औसत निकालता है, जिसे फसल की MSP तय करने का आधार बनाया जाता है.


विवाद क्‍या है

देश के अंदर मौजूदा वक्‍त में फसलों के MSP तय करने को लेकर विवाद भी है. CACP फसलों की MSP A2+FL फार्मूले के आधार पर तय करता है, लेकिन देश के कई किसान संगठन स्‍वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप C2+50% फार्मूले से तय करने की बात करते हैं. मौजूदा आंदोलनकारी किसानों की ये भी एक प्रमुख मांग है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ देश में कई किसान संगठन CACP के मौजूदा A2+FL फार्मूले पर सवाल उठा रहे हैं. इसको लेकर राष्‍ट्रीय किसान महापंचायत के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि CACP मौजूदा समय में भी A2+FL से फसलों का MSP तय करने के लिए अर्थव्‍यवस्‍था पर  उसके प्रभाव, डिमांड-सप्‍लाई के ट्रेंड जैसे पैमानों को आधार बना रहा है, जो सही नहीं है. 

जाट कहते हैं क‍ि फसलों का MSP तय करने के लिए केवल फसल उत्‍पादन पर लागत को ही आधार बनाना चाहिए. बाकी पैमाने संशय पैदा करते हैं और विरोधाभाषी हैं. वह कहते हैं कि सभी उद्योग अपने उत्‍पादों के दाम सिर्फ लागत के आधार पर करते हैं तो ऐसे में किसानों के उत्‍पादों के दाम तय करने के लिए कई तरह के पैमाने गलत हैं. CACP का ये रवैया शुरू से ही गलत रहा है. वह उदाहरण देकर बताते हैं कि साल 2005 से 2010 तक कई फसलों की औसत लागत 1000 रुपये थी, लेकिन CACP ने बिना किसी आधार के ही दाम 900 रुपये तय किए. वह कहते हैं कि किसानों को उनकी फसलों के वाजिब दाम मिले, इसके लिए CACP की पूरी व्‍यवस्‍था बदलने की आवश्‍यकता है. यहां यह भी साफ कर देना जरूरी है क‍ि एमएसपी स‍िर्फ सरकारी खरीद के ल‍िए ही लागू है. प्राइवेट सेक्टर पर इसे अब तक लागू नहीं क‍िया जा सका है, ज‍िसके ल‍िए क‍िसान लंबे समय से आंदोलन कर रहे हैं.

 

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