अगर आपका नाता गांवों से है, अगर आप गंवई माहौल और परिवेश से ताल्लुक रखते हैं तो एक नाम जरूर सुना होगा. यह नाम है घाघ का. मजाक-मजाक में घाघ वैसे लोगों को भी बोल दिया जाता है तो गंभीर जानकारी देते हैं. इससे स्पष्ट होता है कि घाघ ऐसी शख्सियत थे जिनका ताल्लुक गांवों से भले था. लेकिन उनकी जानकारी ऐसी थी कि आम से लेकर राजा-महाराजा और बादशाह तक उनके मुरीद थे. ऐसा इसलिए था क्योंकि घाघ कोई पढ़े-लिखे नहीं थे. न ही उन्हें किसी तरह की विद्वता या महारत हासिल थी. लेकिन वे गंवई माहौल को भांपने और उसे अपनी शब्दों में उकरने के महारती थे. घाघ के बारे में कहा जाता है कि वे बातों-बातों में कहावतों और छंदों के रूप में ऐसी बड़ी बातें बोल जाते कि सामने वाला निरुत्तर हो जाता. और तो और, निरुत्तर होने वालों में अकबर बादशाह का नाम भी आता है.
आज के जमाने में तकनीक ने काफी विस्तार किया है. मौसम और कृषि के क्षेत्र में भी ऐसी टेक्नोलॉजी आ गई है जिससे समय से पहले ही बड़ी-बड़ी जानकारियां मिल जाती हैं. उन जानकारियों के आधार पर किसान खेती-बाड़ी की योजना बनाते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि उस जमाने में जब कोई तकनीक नहीं होती थी, लोग आसमान में झांक कर आंधी, बारिश और तूफान का अंदाजा लगा लेते थे. मॉनसून के बारे में सटीक जानकारी दे दिया करते थे. ऐसे ही लोगों में घाघ का नाम भी शुमार है. तभी घाघ को भारत का अव्वल कृषि पंडित कहा जाता है. उन्होंने देशज शब्दों और भाषाओं में खेती की बड़ी-बड़ी जानकारी दी जिससे किसानों को बड़ी मदद मिली.
उदाहरण के लिए, घाघ की कुछ लाइनें देखिए. गोबर राखी पाती सड़ै, फिर खेती में दाना पड़ै. सन के डंठल खेत छिटावै, तिनते लाभ चौगुनो पावै. गोबर, मैला, नीम की खली, या से खेती दुनी फली. वही किसानों में है पूरा, जो छोड़ै हड्डी का चूरा.
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घाघ की ये लाइनें बताती हैं कि किसान अगर खेतों में गोबर, राख, पत्ता आदि को सड़ा कर डालें तो इससे दाना अधिक मिलता है. यानी किसान को उपज अधिक मिलती है. घाघ कहते हैं कि खेत में सनई (एक तरह का पौधा जिससे हरी खाद बनती है) के डंठल डालें तो किसान को उपज में चौगुना तक लाभ मिलता है. इसके अलावा किसान अपने खेतों में गोबर, मैला, नीम की खली का इस्तेमाल करें तो उपज दोगुनी तक मिलती है. ये ऐसी जानकारी है जिसे घाघ ने दशकों पहले लोगों को दी थी. लेकिन कई साल बीतने के बाद भी ये जानकारी किसानों की मदद कर रही है. आज घाघ हमारे बीच भले न हों, लेकिन उनकी एक-एक लाइनें खेती-बाड़ी में पुरजोर मदद कर रही हैं.
घाघ की पूरी जानकारी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सटीक थी, तभी आज उनकी एक-एक बात को कृषि क्षेत्र का नजराना माना जाता है. मसलन, खेतों की गहरी जुताई को वे सर्वश्रेष्ठ मानते थे और किसानों को यह प्रैक्टिस आजमाने की सलाह देते थे. उनकी एक लाइन है- छोड़ै खाद जोत गहराई, फिर खेती का मजा दिखाई. अर्थात, खेत में खाद डालकर अगर उसकी गहरी जुताई कर दी जाए तो उपज की मात्रा कई गुना तक बढ़ जाती है. खेतों में मेढ़ या बांध कितना जरूरी है, इस पर उनकी एक कहावत है- सौ की जोत पचासै जोतै, ऊँच के बाँधै बारी. यानी बांध या मेढ़ नहीं बांधने से खेत के जरूरी तत्व पानी के साथ घुलकर बाहर चले जाते हैं. इसलिए किसानों को चाहिए कि वे बांध बनाएं ताकि खेत के पोषख तत्व खेत में ही बने रहें.
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अलग-अलग जानकारियों के मुताबिक घाघ के जन्मकाल और जन्मस्थान को लेकर गहरा विवाद है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि वे अकबर के शासनकाल में हुआ करते थे. अकबर भी उनकी कहावतों के मुरीद बताए जाते हैं. घाघ ने खेती-बाड़ी के बारे में जो भी जानकारी दी, वो कहावतों के रूप में सामने आईं जिन्हें गांवों में आज भी बहुत चाव से पढ़ा और सुना जाता है.
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