World Soil Day: किस नदी किनारे होती है सबसे उपजाऊ जमीन? वजह जानकर हैरान रह जाएंगे!

World Soil Day: किस नदी किनारे होती है सबसे उपजाऊ जमीन? वजह जानकर हैरान रह जाएंगे!

भारत में नदी के किनारे की कौन सी मिट्टी सबसे उपजाऊ है, और क्यों? यहां आसान शब्दों में गंगा, ब्रह्मपुत्र और नर्मदा जैसी नदियों के किनारे की मिट्टी की खासियतों, उनकी उपजाऊपन के कारणों और खेती पर उनके असर के बारे में बताता है. जानें कि नदी के किनारे की मिट्टी खेती के लिए सबसे अच्छी क्यों मानी जाती है.

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World Soil Day: किस नदी किनारे होती है सबसे उपजाऊ जमीन? वजह जानकर हैरान रह जाएंगे!ये हैं भारत की सबसे उपजाऊ मिट्टी

भारत में खेती का भविष्य काफी हद तक मिट्टी की क्वालिटी पर निर्भर करता है. किसान चाहे कितना भी फर्टिलाइज़र और अच्छी क्वालिटी के बीज इस्तेमाल करें, खराब मिट्टी की क्वालिटी का असर फसल की पैदावार पर पड़ेगा. इसीलिए नदी घाटी की मिट्टी को सबसे उपजाऊ माना जाता है. नदियां अपने साथ पोषक तत्व और बारीक कचरा लाती हैं, जिससे खेत उपजाऊ बनते हैं. इसीलिए देश में कई नदी वाले इलाकों की मिट्टी को सबसे उपजाऊ माना जाता है. आइए जानें कि कौन सी नदी की मिट्टी सबसे अच्छी है और क्यों.

गंगा नदी का क्षेत्र- भारत की सबसे उपजाऊ मिट्टी

गंगा नदी के किनारे की मिट्टी देश में सबसे उपजाऊ मानी जाती है. नदी की जलोढ़ मिट्टी उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे खेती वाले बड़े राज्यों में फैली हुई है. गंगा हिमालय के इलाकों से पोषक तत्वों से भरपूर मिट्टी और कचरा लाती है, जो हर साल खेतों में जमा हो जाता है, जिससे वे ज़्यादा उपजाऊ हो जाते हैं. इस मिट्टी में प्राकृतिक रूप से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे पोषक तत्व होते हैं. यह भी ध्यान देने वाली बात है कि भारत की खेती की लगभग 40 प्रतिशत ज़मीन इसी जलोढ़ मिट्टी से ढकी हुई है, जो इसे देश की खेती की रीढ़ बनाती है.

ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी- गहरी और प्राकृतिक उर्वर मिट्टी

असम में बहने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की घाटी की मिट्टी भी बहुत उपजाऊ मानी जाती है. यहां की मिट्टी बहुत गहरी और प्राकृतिक खाद से भरपूर होती है क्योंकि नदी का बहाव तेज होने के कारण मिट्टी लगातार नई बनती रहती है. धान, जूट, दलहन और अलग-अलग सब्ज़ियों की खेती यहां बहुत अच्छी होती है. असम का कृषि उत्पादन इसी मिट्टी की गुणवत्ता पर निर्भर है और यही वजह है कि राज्य में लगभग 25 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती की जाती है, जिसमें अधिकतर हिस्से में चावल की खेती की जाती है.

ये है काली मिट्टी का केंद्र

सेंट्रल इंडिया और दक्कन का ज़्यादातर हिस्सा नर्मदा, ताप्ती और गोदावरी नदी घाटियों से प्रभावित है. यहां की काली मिट्टी, जिसे रेगर मिट्टी भी कहते हैं, खास तौर पर कॉटन प्रोडक्शन के लिए मशहूर है. इस मिट्टी की खास बात यह है कि यह लंबे समय तक नमी बनाए रखती है, जिससे यह सूखे इलाकों में भी अच्छी पैदावार देती है. इसमें मैग्नीशियम और चूना भरपूर होता है, जो पौधों की ग्रोथ के लिए बहुत फायदेमंद होते हैं. भारत का लगभग 55 परसेंट कॉटन प्रोडक्शन इन्हीं काली मिट्टी वाले इलाकों से होता है, जो इसकी क्वालिटी को दिखाता है.

नदियों के किनारे की मिट्टी इतनी उपजाऊ क्यों होती है?

नदियां पहाड़ों और जंगलों से न्यूट्रिएंट्स, सिल्ट और अच्छी मिट्टी लाती हैं, जो खेतों में जमा हो जाती हैं और मिट्टी को बार-बार नया बनाती हैं. नदी के किनारे की मिट्टी में हमेशा नमी ज़्यादा होती है, जिससे पौधों की जड़ों को आसानी से न्यूट्रिएंट्स मिल जाते हैं. इसके अलावा, यह मिट्टी आम तौर पर दोमट होती है, जिसका टेक्सचर नरम होता है जो इसे खेती के लिए बहुत अच्छा बनाता है. इसी वजह से, नदी के किनारे के इलाके सदियों से खेती के लिए अच्छे रहे हैं.

FAQ

1. पोषक तत्वों का लगातार जमा होना

नदियां पहाड़ों और जंगलों से पोषक तत्व बहाकर लाती हैं. इससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है.

2. मिट्टी में नमी की मात्रा अधिक

नदी वाले क्षेत्रों में प्राकृतिक नमी की कमी नहीं होती, इसलिए पौधों की जड़ें तेज़ी से विकसित होती हैं.

3. मिट्टी की बनावट नरम और दोमट

नदी किनारे मिट्टी अधिकतर दोमट (loamy) होती है, जो खेती के लिए सबसे आदर्श मानी जाती है.

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