किसानों की जमीन हाईवे के घेरे मेंमध्य प्रदेश सरकार द्वारा किया गया डेवलपमेंट का काम किसानों के लिए मुसीबत बन गया है. इसके चलते, पिछले दो सालों से कई किसान परेशान हैं और अपनी जमीन पर खेती नहीं कर पा रहे हैं. एक किसान, जिसके पास पांच बीघा जमीन है, का कहना है कि उसका परिवार भुखमरी की कगार पर है क्योंकि वह अपनी ज़मीन पर खेती नहीं कर पा रहा है. इस हालत से परेशान होकर उसने मुख्यमंत्री से अपने खेतों तक पहुंचने के लिए हेलीकॉप्टर तक की गुज़ारिश की. यह घटना उज्जैन ज़िले की घटिया तहसील के उतेसरा गांव की है.
2023 में, उज्जैन-गरोठ हाईवे बनाया गया था. इस हाईवे के बनने से कई किसानों की ज़मीनें दो हिस्सों में बंट गईं, सड़क उनके खेतों के बीच से गुज़र रही है. सड़क और खेतों के बीच लगभग 15 फीट का गैप है. इससे भी बुरी बात यह है कि इस प्रोजेक्ट के लिए ज़िम्मेदार इंजीनियरों ने ऐसा खराब डिज़ाइन बनाया है कि किसानों को अपनी ज़मीन तक पहुंचने में भी बहुत मुश्किल हो रही है, खेती के उपकरण ले जाना तो दूर की बात है. उटेसरा गांव के किसान बार-बार सरकार और प्रशासन से अपने खेतों तक पहुंचने के लिए रास्ते बनाने की गुज़ारिश कर रहे हैं, लेकिन उनकी कोई नहीं सुन रहा है.
जब भी वे अपनी समस्या लेकर अधिकारियों के पास जाते हैं, तो उन्हें व्यस्त होने या दूसरे काम होने का बहाना बनाकर टाल दिया जाता है. किसानों का कहना है कि उनके पास अपनी जान देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. कुछ किसान तो अपने खेतों तक पहुंचने के लिए अपने पड़ोसियों को पैसे देने को भी तैयार हैं, लेकिन वह भी मुश्किल हो रहा है. किसान बहुत निराश और बेबस महसूस कर रहे हैं.
उटेसरा गांव के पूर्व सरपंच राजेंद्र सिंह चौहान कहते हैं कि कंस्ट्रक्शन शुरू होने के बाद से ही वे अपने खेतों तक जाने का रास्ता मांग रहे हैं. हाईवे बनने के बाद, आस-पास की ज़मीन फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को दे दी गई, जिसने उस पर बाड़ लगा दी, जिससे आने-जाने के पुराने रास्ते बंद हो गए. हाईवे पर बनाए गए अंडरपास इतने छोटे हैं कि ट्रैक्टर या हार्वेस्टिंग मशीनें उनसे गुज़र नहीं सकतीं. राजेंद्र सिंह चौहान कहते हैं कि इसके लिए पूरी तरह से प्रोजेक्ट बनाने वाले ज़िम्मेदार हैं. उन्हें अंडरपास को जोड़ने वाली सड़क बनानी चाहिए थी. जब किसान के पास अपनी ज़मीन तक पहुंचने का कोई रास्ता ही न हो, तो वह क्या करे? इसीलिए किसान मान सिंह ने हाल ही में एक हेलीकॉप्टर की मांग की थी. पूर्व सरपंच कहते हैं कि अधिकारियों को खुद यहां आकर दिखाना चाहिए कि वे अपने खेतों तक कैसे पहुंचें.
मानसिंह राजोरिया, एक किसान जिन्होंने खेती के लिए सरकार से हेलीकॉप्टर मांगा है, बताते हैं कि उनके खेतों तक पहुंचने के लिए ठीक से सड़क भी नहीं है, तो वे अपनी ज़मीन पर खेती कैसे करेंगे और क्या खाएंगे? कई चिट्ठियां देने के बाद भी प्रशासन उनकी बात नहीं सुन रहा है, इसलिए उनके पास यह कड़ा कदम उठाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है. मानसिंह कहते हैं कि सड़क में कट लगाकर और एक कच्चा रास्ता बनाकर उन्हें उनके खेतों तक पहुंचने का रास्ता दिया जाना चाहिए. उनके खेत एक साल से खाली पड़े हैं.
गांव के एक सीनियर किसान, रामलाल राजोरिया बताते हैं कि वे एक साल से अपनी ज़मीन पर खेती नहीं कर पा रहे हैं. वे कहते हैं कि जब वे दूसरों से रास्ते का अधिकार मांगते हैं, तो वे मना कर देते हैं. वे यह भी कहते हैं कि वे रास्ते के लिए 10,000 से 15,000 रुपये देने को तैयार हैं, लेकिन उनके पड़ोसी फिर भी उन्हें रास्ता देने को तैयार नहीं हैं. बूढ़े किसान ने दुख जताते हुए कहा कि उन्हें लगता है कि उनके पास मरने के अलावा कोई चारा नहीं है, और वे कलेक्टर के ऑफिस जाकर ज़हर खाकर आत्महत्या भी कर सकते हैं.
यह ध्यान देने वाली बात है कि उज्जैन-गरोठ हाईवे दोनों तरफ लगभग दो से ढाई मीटर ऊंचे बांध बनाकर बनाया गया है. इस हाईवे के निर्माण के लिए किसानों की ज़मीन ली गई थी. अब कई खेत इस सड़क से दो हिस्सों में बंट गए हैं. इसके अलावा, कंस्ट्रक्शन एजेंसी ने न तो अंडरपास बनाए हैं और न ही किसानों को अपने खेतों तक पहुंचने के लिए कोई दूसरा रास्ता दिया है. इससे किसानों के लिए एक बड़ी समस्या खड़ी हो गई है: वे अपने खेतों तक कैसे पहुंचें? ट्रैक्टर, बैलगाड़ी या किसी भी दूसरे साधन से खेतों तक पहुंचना नामुमकिन है. खेतों तक पहुंचने के सभी रास्ते बंद होने के कारण किसान अपनी ज़मीन पर खेती नहीं कर पा रहे हैं. (संदीप कुलश्रेष्ठ का इनपुट)
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