
कभी भारत में सिर्फ होटलों, बेकरी और बड़े शहरों के सुपरमार्केट तक सीमित रहने वाली स्ट्रॉबेरी आज किसानों की आमदनी बढ़ाने वाली फसल बन चुकी है. लाल रंग का यह छोटा सा फल देखने में भले ही नाजुक लगे, लेकिन मुनाफे के मामले में इसने कई पारंपरिक फसलों को पीछे छोड़ दिया है. खास बात यह है कि स्ट्रॉबेरी की खेती अब केवल पहाड़ी इलाकों तक सीमित नहीं रही, बल्कि मैदानी राज्यों में भी किसान इससे अच्छा लाभ कमा रहे हैं. सबसे खास बात है कि भारत में स्ट्रॉबेरी का आगमन 20वीं सदी में ही हुआ है और आज यह खेती का अहम हिस्सा बन गई है.
स्ट्रॉबेरी मूल रूप से यूरोप और अमेरिका का फल है. भारत में इसकी एंट्री अंग्रेजों के दौर में मानी जाती है. शुरुआती समय में अंग्रेज इसे शौकिया तौर पर हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड जैसे ठंडे इलाकों में उगाया करते थे. लंबे समय तक इसे सिर्फ बगीचों और अनुसंधान केंद्रों तक सीमित रखा गया. आम किसानों के लिए यह फसल न तो तकनीकी रूप से आसान थी और न ही बाजार तैयार था. 1990 के बाद स्थिति बदलनी शुरू हुई. महाराष्ट्र के महाबलेश्वर क्षेत्र में जब व्यावसायिक स्तर पर स्ट्रॉबेरी की खेती शुरू हुई, तब इस फल ने किसानों का ध्यान खींचा. धीरे-धीरे आधुनिक किस्में, बेहतर पौध सामग्री और बाजार की मांग ने इसे एक लाभकारी फसल बना दिया.
पहले स्ट्रॉबेरी की खेती केवल ठंडे और अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में संभव मानी जाती थी. लेकिन अब पॉलीहाउस, मल्चिंग, ड्रिप सिंचाई और टनल टेक्निक की मदद से इसे मैदानी इलाकों में भी सफलतापूर्वक उगाया जा रहा है. किसानों को पौधों की कतारों के बीच प्लास्टिक मल्च बिछाने से नमी बनी रहती है और खरपतवार भी कम उगते हैं. ड्रिप सिंचाई से पानी और खाद दोनों की बचत होती है. यही वजह है कि कम जमीन वाले किसान भी सीमित लागत में अच्छी पैदावार ले पा रहे हैं.
स्ट्रॉबेरी की सबसे बड़ी खासियत इसका छोटा फसल चक्र है. रोपाई के करीब 60 से 70 दिन बाद ही फल आने लगते हैं. एक बार फल आना शुरू हो जाए तो 2 से 3 महीने तक तुड़ाई चलती रहती है. बाजार में इसकी कीमत आमतौर पर 150 से 300 रुपये प्रति किलो तक रहती है, जो मौसम और गुणवत्ता पर निर्भर करती है. एक एकड़ में सही तकनीक अपनाकर किसान लाखों रुपये तक की कमाई कर रहे हैं. कई इलाकों में किसानों ने गेहूं, सरसों जैसी पारंपरिक फसलों की जगह स्ट्रॉबेरी को अपनाकर अपनी आय दोगुनी से ज्यादा कर ली है.
शहरीकरण, बदलती लाइफस्टाइल और हेल्दी फूड की बढ़ती मांग ने स्ट्रॉबेरी की खपत को तेजी से बढ़ाया है. इसका इस्तेमाल आइसक्रीम, केक, जैम, मिल्कशेक और चॉकलेट इंडस्ट्री में बड़े पैमाने पर होता है. इसके अलावा ताजे फल के रूप में भी इसकी मांग लगातार बढ़ रही है. आज महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में स्ट्रॉबेरी की खेती तेजी से फैल रही है. कई किसान सीधे होटल, रेस्टोरेंट और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म से जुड़कर बेहतर दाम भी हासिल कर रहे हैं.
स्ट्रॉबेरी ने किसानों को यह सिखाया है कि खेती सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि एक बिजनेस भी हो सकती है. नई तकनीक, सही जानकारी और बाजार की समझ के साथ विदेशी फसलें भी किसानों की किस्मत बदल सकती हैं. यही वजह है कि आज यह छोटा सा विदेशी फल भारत के किसानों के लिए बड़े बदलाव की कहानी लिख रहा है.
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