भारत, दुनिया का सबसे बड़ा चीनी उपभोक्ता और दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक, चीनी उद्योग में अहम प्रगति कर रहा है, भारत में चीनी की खपत बहुत अधिक है, लेकिन सेहत के लिहाज से कौन सी चीनी बेहतर है-रिफाइंड सफेद चीनी या रॉ लाइट ब्राउन शुगर यानी हल्की भूरी चीनी (VVHP शुगर)? नेशनल शुगर इंस्टीट्यूट, कानपुर की डायरेक्टर प्रोफेसर सीमा परोहा के अनुसार, रॉ लाइट ब्राउन शुगर अधिक पौष्टिक होती है. इसके अलावा, रॉ लाइट ब्राउन शुगर बिना सल्फर के बनाई जाती है और इसमें कम केमिकल्स का उपयोग होता है, जिससे यह पर्यावरण के लिए भी अनुकूल है. इससे यह हेल्थ और पर्यावरण दोनों के लिए लाभदायक है. सीमा परोहा का मानना है कि उपभोक्ताओं को जागरूक करने और इसके फायदों को समझाने की जरूरत है.
सीमा परोहा ने कहा कि रॉ लाइट ब्राउन शुगर में प्राकृतिक रूप से गुड़ की परत होती है, जो पोषक तत्व प्रदान करती है. विशेष रूप से हल्की भूरी चीनी (Light Brown Sugar), जिसे वीवीएचपी (V.V.H.P.) चीनी के नाम से भी जाना जाता है, इसमें कैल्शियम, लोहा, मैग्नीशियम और पोटेशियम जैसे अहम खनिज तत्व होते हैं, जो अक्सर रिफाइन सफेद चीनी में नहीं पाए जाते हैं. इस तरह, हल्के भूरे चीनी में सफेद चीनी की तुलना में अधिक स्वास्थ्य लाभ होते हैं.
प्रोफेसर सीमा परोहा ने कहा कि यूरोप, अमेरिका और अफ्रीका में कच्ची चीनी (रॉ शुगर) की खपत अधिक है. उन्होंने यह भी बताया कि अगर भारत में हल्की भूरी कच्ची चीनी को थोड़ा स्वच्छता के साथ बनाया जाए, तो इसकी मांग दुनिया भर में बढ़ सकती है. इसके अतिरिक्त, उन्होंने यह भी कहा कि यह गुड़ और रिफाइन सफेद चीनी से बेहतर है. उन्होंने कहा कि 17 अक्टूबर, 2024 को आयोजित 21वीं FAD02 समिति की बैठक में चर्चा के बाद संशोधन को आधिकारिक रूप दिया गया, जिससे हल्की भूरी कच्ची चीनी को सीधे मानव उपभोग के लिए अनुमोदित किया जा सके. क्योंकि दुनिया भर में कम रिफाइन और अधिक प्राकृतिक खाद्य उत्पादों की बढ़ती मांग के अनुरूप है.
ये भी पढ़ें: खाद्य मंत्रालय का चीनी मिलों को आदेश, जूट की बोरी में करनी ही होगी 20 फीसदी पैकेजिंग
यह चीनी की इस मांग पर खरा उतरता है. देश की प्रति व्यक्ति चीनी खपत औसतन 20 किलोग्राम प्रति वर्ष है, और भारत की कुल चीनी खपत 2 करोड़ 80 लाख टन है, जो दुनिया के चीनी बाजार में इसकी अहम भूमिका को मजबूत करती है.
भूरी चीनी यानी रॉ शुगर बनाने में केमिकल का कम उपयोग होता है. रिफाइन सफेद चीनी उत्पादन के विपरीत, इसमे कम प्रोसेसिंग और सल्फर का उपयोग नहीं होता है. रॉ शुगर, भूरी चीनी का उत्पादन सल्फर-मुक्त होता है. इसलिए ये चीनी ज्यादा नेचुलर रहती है बल्कि कम कार्बन फुटप्रिंट भी पैदा करती है, क्योंकि इसमें सल्फर डाइऑक्साइड ब्लीचिंग एजेंटों की जरूरत नहीं होती है.
ये भी पढ़ें: महाराष्ट्र के चीनी उत्पादन में 25% तक की गिरावट, समय से पहले ही खत्म होने वाला है पेराई सीजन
रिफाइन सफेद चीनी की तुलना में भूरी चीनी उत्पादन करने से कई लाभ भी हैं. रिफाइन सफेद चीनी की तुलना में चूने की खपत में लगभग 50 फीसदी की कमी हो जाती है. रॉ लाइट ब्राउन शुगर उत्पादन में सल्फर का उपयोग नहीं होता. पर्यावरण के अनुकूल उत्पादन प्रक्रिया और चीनी रिकवरी भी ज्यादा होती है. रॉ लाइट ब्राउन शुगर में प्रसंस्करण के दौरान रसायनों की लागत में कमी आ जाती है और इसे बनाने में कम ऊर्जा और बिजली की खपत होती है.
प्रोफेसर परोहा ने कहा कि भारत में, अधिकांश उपभोक्ता रिफाइन सफेद चीनी के आदी हैं. अब भूरी चीनी के लाभों को बढ़ावा देने के लिए जागरूकता अभियानों की जरूरत है. इसके अलावा, उचित भंडारण और शेल्फ लाइफ के बारे में जागरूक करने की जरूरत है. उन्होंने कहा, ब्राउन शुगर सीधे मानव उपभोग के लिए बेहतर विकल्प बन रही है, जो पारंपरिक सफेद चीनी की तुलना में अधिक हेल्दी है.
स्वाभाविक रूप से उच्च पोषण सामग्री के साथ, यह चीनी भारत के स्वीटनर बाजार के भविष्य में अहम भूमिका निभा सकती है. इस तरह, जैसे-जैसे उपभोक्ता जागरूकता बढ़ती है, हल्की भूरी चीनी भारतीय घरों में एक मुख्यधारा का विकल्प बन सकती है, जो ऱिफाइन चीनी का एक हेल्दी और अधिक पर्यावरण के प्रति जागरूक विकल्प प्रदान करती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today