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Paddy Fish Farming: धान की खेती के साथ करें मछली पालन, होगा डबल मुनाफा

Paddy Fish Farming: धान की खेती के साथ करें मछली पालन, होगा डबल मुनाफा

मछली-चावल की खेती, जिसे एकीकृत मछली-चावल की खेती के रूप में भी जाना जाता है, एक प्रकार की कृषि-पारिस्थितिक प्रणाली है जो एक ही क्षेत्र में मछली और चावल की खेती को जोड़ती है. यह एक ऐसी तकनीक है जिसके तहत एक ही जगह या खेत में चावल की खेती और मछली पालन किया जा सकता है.

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Fish Rice Farming: धान की खेती के साथ मछली पालन का रोजगार Fish Rice Farming: धान की खेती के साथ मछली पालन का रोजगार

आपने मछली और चावल खाने के बारे में सुना होगा, लेकिन अब इसकी खेती भी एक साथ होने लगी है, जिसे एकीकृत मछली-चावल की खेती भी कहा जाता है. यह एक प्रकार की कृषि-पारिस्थितिकी प्रणाली है. जहां एक ही क्षेत्र में मछली और चावल की खेती की जाती है. यह एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा एक ही जगह में चावल की खेती और मछली पालन का काम किया जा रहा है. इस तकनीक का उपयोग एशिया के कई हिस्सों में सदियों से किया जाता रहा है, खासकर वियतनाम, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे दक्षिण पूर्व एशियाई देशों में किया जा रहा है. क्या है इस विधि की खासियत आइए जानते हैं.

धान की रोपाई करने के लिए अधिक पानी की जरूरत होती है. तभी जाकर किसान धान की रोपाई कर पाते हैं. ऐसे में खेतों के चारों ओर मेढ़ बनाकर उसमें पानी भरा जाता है और फिर रोपाई की जाती है. वहीं मछली पालन की बात करें तो मछलियों को पालने के लिए भी नदी या तालाब की जरूरत होती है. ऐसे में किसान धान की खेतों में मछली पालन का रोजगार आसानी से कर एक साथ डबल मुनाफा कमा सकते हैं.

धान के साथ करें मछली की खेती

इससे मछली और चावल दोनों की अधिक पैदावार होती है. साथ ही रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता भी कम होती है, जिससे किसानों की बचत भी होती है. मछली चावल की खेती में स्थानीय जलवायु और बाजार की मांग के आधार पर कई प्रकार की मछलियों का पालन किया जा सकता है. चावल बोने के मौसम की शुरुआत में किसान आमतौर पर अपने खेतों में फिंगरलिंग्स (मछली का जीरा) रखते हैं.

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मछली-चावल की खेती का फायदा

  • यह दो फसलों की खेती के लिए एक ही खेत का उपयोग करके दोनों का उत्पादन बढ़ाता है, जिस वजह से भूमि की प्रति इकाई पैदावार भी अधिक होती है.
  • यह किसानों के लिए आय का एक अलग स्रोत प्रदान करता है. इससे किसान मछली और चावल दोनों को बेचकर अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.
  • इस विधि में रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों की आवश्यकता कम हो जाती है, जिसके परिणामस्वरूप कम लागत और उत्पादकता अधिक होती है और यह जैविक भी है.
  • मछली-चावल की खेती ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करके जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में मदद कर सकती है, जिससे पर्यावरण की भी रक्षा हो सकती है.

मछली चावल की खेती में होने वाली चुनौतियां

इसके कई फायदों के बावजूद मछली चावल की खेती में कुछ चुनौतियां भी हैं. मुख्य चुनौतियों में से एक पर्याप्त जल प्रबंधन की आवश्यकता है, क्योंकि मछली और चावल की पानी की आवश्यकताएं अलग-अलग होती हैं. जलभराव को रोकने के लिए उचित जल प्रबंधन महत्वपूर्ण है, जिससे मछली की पैदावार कम हो सकती है और बीमारी का प्रकोप हो सकता है. एक और चुनौती यह है कि मछलियां चावल के पौधों को उखाड़कर या बीज खाकर उन्हें नुकसान पहुंचा सकती हैं. मछली की उचित प्रजाति का चयन करके इसे कम किया जा सकता है, जिससे नुकसान होने की संभावना कम होती है.