Onion Crop loss: प्‍याज बर्बादी की कहानी जानते हैं...किसानों को कितना होता है नुकसान?

Onion Crop loss: प्‍याज बर्बादी की कहानी जानते हैं...किसानों को कितना होता है नुकसान?

प्‍याज किसानों को प्‍याज बर्बादी पर कैसे और कितने बार नुकसान होता है. ये जानकारी उन आम उपभोक्‍ताओं को सोचने के लिए मजबूर कर सकती है, जो प्‍याज के बढ़ते दामों पर हाय तौबा मचाने लगते हैं. तो वहीं सरकारी दाम नियंंत्रण के प्रयास से किसानों को नुकसान होता है.

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Onion Crop loss: प्‍याज बर्बादी की कहानी जानते हैं...किसानों को कितना होता है नुकसान?फसल कटाई के बाद कितना खराब होता है प्‍याज

प्‍याज के दामाें को लेकर भारत में महाभारत जारी है. प्‍याज के बढ़ते दामों पर नियंत्रण करने के उद्देश्‍य से 7 दिसंबर को भारत सरकार ने प्‍याज एक्‍सपोर्ट पर बैन लगा दिया था. इसके बाद प्‍याज के थोक भाव 40 रुपये प्रति किलो से गिरकर 10 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए हैं. किसानों का कहना है कि सरकार के इस फैसले से उनका नुकसान बढ़ गया है. किसानों का कहना है कि वे पिछले दो सालाें से बेहद कम दाम में प्‍याज बेचने को मजबूर हैं, अमूमन प्‍याज की औसत कीमत इन दो सालों में 15 रुपये किलो तक रही है, जबकि प्‍याज की लागत प्रति किलो 20 से 25 रुपये के बीच है.

वहीं प्‍याज किसानों का ये भी कहना है कि बेशक प्‍याज उत्‍पादन के मामले में भारत ने पिछले कुछ दशकों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है, लेकिन प्‍याज की बर्बादी किसानों के लिए बड़ी चुनौती है. किसान अक्‍सर कहते हैं कि कम लागत और प्‍याज की बर्बादी से उनका नुकसान बढ़ जाता है.

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आइए आज जानते हैं प्‍याज बर्बादी की कहानी... साथ ही जानेंगे कि प्‍याज किसानों को प्‍याज बर्बादी पर कैसे और कितने बार नुकसान होता है. ये जानकारी उन आम उपभोक्‍ताओं को सोचने के लिए मजबूर कर सकती है, जो प्‍याज के बढ़ते दामों पर हाय तौबा मचाने लगते हैं. तो वहीं सरकारी दाम नियंंत्रण के प्रयास से किसानों को नुकसान होता है.

जल्‍दी खराब होने वाला आयटम है प्‍याज

प्‍याज बर्बादी की इस कहानी को समझने से पहले प्‍याज की प्रकृति को समझना होगा. असल में दुनियाभर में फूड आइटम को उनकी सेल्‍फ लाइफ के हिसाब से तीन श्रेणियों में रखा जाता है, जिसमें पेरिशेबल, सेमी पेरिशेबल और नॉन पेरिशेबल श्रेणियां शामिल है. पेरिशेबल यानी जल्‍द खराब होने वाले फूड आयटम है, इस श्रेणी में मांस, दूध यानी डेयरी प्रोडक्‍ट और सब्‍जियों का रखा जाता है, जबकि नॉन पेरिशेबल आइटम में अनाज जैसे खाद्य पदार्थों का रखा जाता है, जबकि फलों के साथ प्‍याज को सेमी पेरिशेबल आइटम की सूची में रखा गया है. इसका मतलब है कि प्‍याज को बिना विशेष इंंतजाम के दो महीनों तक ही स्‍टोर किया जा सकता है. 

प्‍याज की बर्बादी पर क्‍या कहता है CIPHET लुधियाना

पोस्‍ट हार्वेस्‍टिंग यानी फसल कटाई के बाद प्‍याज की बर्बादी को लेकर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (CIPHET, लुधियाना) ने एक स्‍टडी कराई थी. जिसमें देश भर के छह कृषि-जलवायु क्षेत्रों से एकत्र किए गए आंकड़ों के आधार पर प्याज में नुकसान का अनुमान लगाया गया है. CIPHET का अनुमान है कि गुजरात में कुल फसल का 5.49 फीसदी प्‍याज पोस्‍ट हार्वेस्‍टिंग के बर्बाद होता है, जबकि महाराष्‍ट्र, मध्‍य प्रदेश और राजस्‍थान में कुल उत्‍पादित प्‍याज का 12.72 फीसदी प्‍याज पोस्‍ट हार्वेस्‍टिग के बाद खराब हो जाता है. 

किसानों की 25 फीसदी प्‍याज हो जाती है बर्बाद!

वहीं भारतीय रिजर्व बैंक के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्‍चर बैंकिंग की 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि भारत में कुल उत्‍पादित प्‍याज का लगभग 60-65 फीसदी प्‍याज घरेलू स्तर पर खप जाता है. तो वहीं 15-20 फीसदी एक्‍सपोर्ट होता है, जबकि बाकी बचा हुआ 20 से 25 फीसदी प्‍याज फसल कटाई के बाद नमी, अंकुरण की वजह से बर्बाद हो जाती है.

सूखने से 25 फीसदी वजन हो जाता है कम

रबी सीजन वाली प्‍याज को विशेष इंंतजाम के साथ 3 से 5 महीने तक स्‍टॉक किया जा सकता है,जबकि खरीफ सीजन वाली प्‍याज को स्‍टाॅक करना बेहद ही जरूरी है. स्‍टॉक में सूखने से प्‍याज बर्बादी पर भारतीय रिजर्व बैंक के कॉलेज ऑफ एग्रीकल्‍चर बैंकिंग की 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट कहती है कि भंडारण यानी स्‍टॉक की अवधि में प्याज का वजन 20 से 25 फीसदी तक कम हो सकता है। वहीं ये रिपोर्ट ये भी कहती है कि नासिक में ज्यादातर किसान प्‍याज की फसल काटने के बाद प्याज सीधे बाजार में लाते हैं, क्‍योंकि उनके पास प्‍याज स्‍टोर करने की सुविधा नहीं है.

 ऐसे में,जब प्‍याज एक्‍सपोर्ट बंद हो और घरेलू बाजार में प्‍याज के दाम लागत से नीचे चल रहे हो और पोस्‍ट हार्वेस्‍टिंग खराब प्‍याज होती हो तो प्‍याज की खेती करने वाले किसानों के नुकसान और पीड़ा को समझने की आवश्‍यकता दिखाई पड़ती है.

 

 

 

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