वनस्पति विज्ञान में लोगों के लिए चर्चा का कारण यह नारियल का पेड़ जो पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के पास हावड़ा में 232 साल पुराने आचार्य जगदीश चंद्र बोस भारतीय वनस्पति उद्यान में स्थित है. यह पेड़ ब्रिटिश भारत के समय 1894 में अंग्रेजों द्वारा यहां लगाया गया था. वैज्ञानिकों को डर है कि डबल नारियल प्रजाति का यह मादा पेड़ अब मरने की कगार पर खड़ा है. इसलिए इसकी देखभाल पर काफी ध्यान दिया जा रहा है. हाल के दशकों में वैज्ञानिकों द्वारा इस नारियल के पेड़ के फलन को बेहतर बनाने के लिए कई गंभीर प्रयास किए गए हैं. इसमें फल लगना शुरू हो गया है, लेकिन अभी तक इससे कोई भी पका हुआ फल नहीं मिल पाया है. आचार्य जगदीश चंद्र बोस भारतीय वनस्पति उद्यान के क्यूरेटर एस.एस. हामिद के अनुसार, यदि इस पेड़ का फल मरने से पहले परिपक्व हो जाता है, तो इसके स्थान पर दूसरा पेड़ उगाया जा सकता है.
उस स्थिति में देश को एक और दोहरे नारियल वाला पेड़ मिलेगा. अगर फल के परिपक्व होने से पहले ही यह पेड़ सुख जाता है, तो इसको बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने वर्षों से जो प्रयास किए हैं, वे विफल हो जाएंगे और भारत में ऐसा कोई पेड़ नहीं बचेगा. ऐसे नारियल के पेड़ केवल सेशेल्स के दो द्वीपों पर ही पाए जाते हैं. ये भारत, श्रीलंका और थाईलैंड जैसे देशों में अंग्रेजों द्वारा लगाए गए थे. ये पेड़ 1200 साल तक जीवित रह सकते हैं और वनस्पति जगत में सबसे बड़े फल (25 किलो तक वजन) और पत्तियों को सहन कर सकते हैं.
वैज्ञानिकों के अनुसार भारत का यह दोहरे नारियल वाला पेड़ अलग इलाके और जलवायु में बढ़ रहा है. इसलिए ऐसी स्थिति में यह पूरी तरह से अपना जीवन नहीं जी सकता है. पिछले एक वर्ष से इस पेड़ में कोई नया पत्ता नहीं निकला है और इसकी मौजूदा पत्तियां भी धीरे-धीरे पीली हो रही हैं. जो एक चिंता का विषय है.
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आचार्य जगदीश चंद्र बोस भारतीय वनस्पति उद्यान के पूर्व निदेशक एच.एस. देबनाथ के अनुसार, 'जब यह पेड़ 94 वर्ष का था, तब इसमें पहली बार फूल आया. जब हमें पता चला कि यह एक मादा वृक्ष है, तो हमने परागण के लिए एक नर वृक्ष की खोज शुरू की. ऐसे में सबसे निकटतम नर वृक्ष श्रीलंका के रॉयल वनस्पति उद्यान में पता चला. वर्ष 2006 में नर फूल के पराग को इस वृक्ष को कृत्रिम रूप से परागित करने के लिए लाया गया था, लेकिन प्रयास विफल रहा.'
उन्होंने बताया कि वर्ष 2013 में थाईलैंड के एक अन्य नर वृक्ष से परागण कराया गया. इस बार यह प्रयास सफल रहा और पेड़ ने फल देना शुरू किया. इसे परिपक्व होने में कम से कम अभी एक और साल लगेगा, जिसके बाद वैज्ञानिक इसका बीज निकाल पाएंगे.
उद्यान के वैज्ञानिक यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि दोहरे नारियल का यह पेड़ किसी रोग से ग्रसित न हो. रोगों से बचाने के लिए नीम आधारित फफूंदनाशक का प्रयोग किया जा रहा है. पेड़ को उसके भारी फलों के बोझ से बचाने के लिए रस्सियों का उपयोग कर सहारा दिया जा रहा है.
भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण विभाग के वैज्ञानिकों के अनुसार दुर्भाग्य से दो-तीन साल पहले इस दोहरे नारियल पेड़ के शीर्ष को एक फफूंद का सामना करना पड़ा. इससे उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ा. इसका विकास लगभग बंद हो गया है. ऐसे में यह भरसक प्रयास किया जा रहा है कि फल के परिपक्व होने तक यह पेड़ जिंदा रहे.
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