पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू), लुधियाना ने नर्सरी तैयार करने के लिए 18 से 24 जून तक धान की बुआई करने की सलाह दी है. खास बात यह है कि इसके लिए विश्वविद्यालय ने योजना बनाने और उसे किसानों तक पहुंचाने के लिए राज्य के कृषि विभाग को सिफारिशें भेज दी हैं. लेकिन वह प्रदेश में गिरते भूजल स्तर को लेकर भी सतर्क है. पीएयू के अनुसार, 1998 से 2018 की अवधि के बीच, राज्य के जल स्तर में गिरावट की औसत वार्षिक दर 0.53 मीटर थी. लेकिन कुछ केंद्रीय जिलों में स्थिति और भी खराब है, जहां भूजल स्तर में गिरावट की दर प्रति वर्ष 1 मीटर से अधिक है.
द हिन्दुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, गिरते भूजल स्तर पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने भी कमर कस ली है. इसके लिए उसने साल 2009 में पंजाब उपमृदा जल संरक्षण अधिनियम तैयार किया गया था. अधिनियम के तहत धान की बुआई देरी से शुरू करने का प्रावधान है. यानी किसान 10 जून के बाद ही धान की नर्सरी तैयार करने के लिए बुवाई कर सकते हैं. खास बात यह है कि 10 जून से पहले धान की बुवाई करने वाले किसानों के लिए दंड का प्रावधान भी है.
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हालांकि, वर्ष 2014 में नर्सरी तैयार करने और 15 जून से पौधों की रोपाई शुरू करने के लिए अधिनियम को संशोधित कर 15 मई कर दिया है. इससे उपज पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. बल्कि 2016 और 2017 में रिकॉर्ड पैदावार देखी गई. पीएयू के चावल कृषि विज्ञानिक बूटा सिंह ढिल्लों का कहना है कि अब धान की ऐसी किस्में आ गई हैं कि जो कम समय में ही पक कर तैयार हो जाती हैं. यानी किसान मॉनसून के आगमन पर धान रोपाई की शुरुआत कर सकते हैं. वहीं, ब्रीडर रणवीर सिंह गिल ने कहा कि 2018 के दौरान रोपाई की तारीख को 20 जून तक बढ़ाया गया है.
राज्य कृषि विभाग के एक अधिकारी ने कहा, चरणबद्ध खेती की योजना की घोषणा एक सप्ताह के भीतर की जाएगी. पीएयू के कुलपति एसएस गोसल के अनुसार, विश्वविद्यालय की 95 दिनों की कम अवधि की किस्में, जैसे पीआर 126 और पीआर 131, किसानों के बीच लोकप्रिय हो रही हैं, क्योंकि पिछले सीजन में 33 फीसदी इलाके में इन्हीं किस्मों की बुवाई की गई थी. गोसल ने कहा कि आगामी सीजन में, इसके 50 फीसदी तक जाने की उम्मीद है.
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