उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश इस वर्ष उत्तर भारत में नए पराली जलाने के हॉटस्पॉट बन गए हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अक्टूबर के पहले पखवाड़े के भीतर इन राज्यों में सबसे अधिक आग की घटनाएं दर्ज की गईं. इससे परंपरागत रूप से प्रमुख राज्य रहे पंजाब और हरियाणा पीछे छूट गए.
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) की तरफ से ऑपरेटेड सैटेलाइट डेटा कंसोर्टियम फॉर रिसर्च ऑन एग्रोइकोसिस्टम मॉनिटरिंग एंड मॉडलिंग फ्रॉम स्पेस (सीआरईएएमएस) के अनुसार, 1 से 14 अक्टूबर के बीच उत्तर प्रदेश में 158 आग की घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि मध्य प्रदेश में 70 घटनाएं हुईं. पराली जलाने के लिए वर्षों से निगरानी में रहे पंजाब और हरियाणा में सिर्फ केवल 39 और 9 आग की घटनाएं दर्ज की गईं, जबकि राजस्थान में 26 घटनाएं हुईं.
उत्तर भारत में बड़े पैमाने पर धान की पराली का जलना, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में हर साल प्रदूषण स्तर में चिंताजनक वृद्धि का एक कारण बन गया है. खास बात है कि हाल के कुछ वर्षों में यह मुख्य तौर पर पंजाब और हरियाणा में केंद्रित था. घने, काले धुएं के बादल दिल्ली को घेर लेते हैं, जिससे पहले से ही हाई प्रदूषण और ज्यादा स्तर पर पहुंच जाता है. सर्दियों की शुरुआत के साथ तापमान कम और हवाएं धीमी हो जाती हैं. इसकी वजह से प्रदूषक सतह के पास ज्यादा केंद्रित हो जाते हैं. ऐसे में आने वाले महीनों के लिए परिस्थितियां तैयार हो जाती हैं.
वेबसाइट प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि इस मौसम में पंजाब और हरियाणा में पराली की आग पिछले वर्षों की तुलना में कम रही है. भारी बारिश और बाढ़ के कारण इस साल पंजाब में अधिकांश धान की फसलों को नुकसान पहुंचा है. चंडीगढ़ के पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) में पर्यावरण स्वास्थ्य के प्रोफेसर रविंद्र खैवाल ने कहा, 'ऐसे कई हॉटस्पॉट (पराली जलाने वाले) जिले हैं, जहां इस मौसम की बाढ़ के कारण फसलों का बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया है. यह निश्चित तौर पर पराली आग की घटनाओं की संख्या पर असर डालेगा. लेकिन हमें देखना और इंतजार करना होगा.'
पंजाब और हरियाणा की सरकारों ने पहले भी यह जोर देकर कहा है कि प्रदूषण निगरानी एजेंसियां किसानों को उनके खेतों में आग लगाने के बजाय धान की पराली यांत्रिक रूप से हटाने के लिए लगातार प्रयास कर रही हैं. उनके अनुसार, इसने खेतों में आग की घटनाओं की संख्या को कम किया है. दिल्ली स्थित थिंकटैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) के प्रोग्राम लीड एलएस कुरिंजी ने कहा, 'केंद्र और राज्य सरकारें दोनों किसानों को 'हैप्पी सीडर्स' जैसी फसल अवशेष प्रबंधन मशीनों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहन दे रही हैं और अभियान चला रही हैं. हमने देखा है कि इन प्रयासों के कारण किसानों के मानसिक दृष्टिकोण में बदलाव आया है.'
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