फिर केमिकल फार्म‍िंग की ओर लौट रहे प्राकृतिक खेती करने वाले किसान? जानिए क्‍या बोले विशेषज्ञ

फिर केमिकल फार्म‍िंग की ओर लौट रहे प्राकृतिक खेती करने वाले किसान? जानिए क्‍या बोले विशेषज्ञ

सरकार प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहित कर रही है, पर कई किसान इसे छोड़ पारंपरिक खेती पर लौट आए हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, सब्सिडी सीमित है और उपभोक्ता जैविक उत्पादों के लिए अधिक कीमत नहीं देना चाहते, जिससे किसानों को आर्थिक लाभ नहीं मिल पा रहा.

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फिर केमिकल फार्म‍िंग की ओर लौट रहे प्राकृतिक खेती करने वाले किसान? जानिए क्‍या बोले विशेषज्ञप्राकृतिक खेती (सांकेत‍िक तस्‍वीर)

भले ही केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की बात कर रही है, ले‍किन इससे जुड़े कई किसान वापस रासायनिक खेती की ओर लौट रहे हैं. दरअसल, नीति आयोग देशभर में प्राकृतिक खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए कार्यशाला आयोजित करने की तैयारी कर रहा है, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि सबसे बड़ी चुनौती किसानों की इस पद्धति में लगातार रुचि बनाए रखना होगी. परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत सब्सिडी पाने वाले कई किसान कुछ साल बाद फिर से रासायनिक खेती की ओर लौट आए हैं, क्योंकि उन्हें प्राकृतिक खेती से उतना मुनाफा नहीं मिला जितनी उम्मीद थी.

'किसानों को खुद तैयार करने होंगे कृ‍षि इनपुट'

‘बिजनेसालाइन’ की रिपोर्ट के मुताबिक, एक सीनियर अफसर अधिकारी ने बताया, “प्राकृतिक खेती मिशन का मकसद किसानों को प्रोत्साहित करना है, यह किसी पर थोपने का प्रयास नहीं है. किसान तभी इस पद्धति को जारी रखेगा, जब उसे यह आर्थिक रूप से लाभदायक लगे. सरकार की ओर से दी जाने वाली सब्सिडी केवल शुरुआती दो साल के इनपुट लागत को कवर करने के लिए है.” उन्होंने कहा कि किसानों को जीवामृत, घन जीवामृत और बीजामृत जैसे इनपुट खुद तैयार करने होंगे.

उपभोक्‍ता ज्‍यादा दाम देने को तैयार नहीं

राष्ट्रीय प्राकृतिक खेती मिशन (NMNF) के तहत पंजीकृत और इच्छुक किसानों को दो साल के लिए प्रति एकड़ 4,000 रुपये की मदद दी जाती है. सरकार उन्हें पीजीएस-इंडिया (Participatory Guarantee System for India) प्रमाणन दिलाने में भी मदद करती है, ताकि वे अपने उत्पाद के लिए बेहतर दाम पा सकें. हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि उपभोक्ता न तो इस प्रमाणन से परिचित हैं और न ही इसके लिए अतिरिक्त दाम देने को तैयार, क्योंकि पहले से ही ऑर्गेनिक उत्पाद बाजार में महंगे हैं.

कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अगस्त में घोषणा की थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं इस कार्यशाला का शुभारंभ करेंगे. पहले यह कार्यक्रम 23 अगस्त को होना था, लेकिन बाद में स्थगित कर दिया गया. रिपोर्ट के मुताबिक, सूत्रों ने कहा कि नीति आयोग इस माह इसे आयोजित करने की योजना बना रहा है, ताकि रबी सीजन से पहले कुछ क्षेत्रों को इसमें शामिल किया जा सके.

प्रमाणन और योजनाओं का हाल

पीजीएस-इंडिया सरकार की सामुदायिक आधारित प्रमाणन प्रणाली है, जिसके तहत किसान अपने उत्पाद को स्वयं “जैविक” घोषित कर सकते हैं. यह प्रणाली घरेलू बाजार के लिए है, क्योंकि इसे विदेशों में मान्यता प्राप्त नहीं है. वहीं, नेशनल प्रोग्राम फॉर ऑर्गेनिक प्रोडक्शन (NPOP), जो एपीडा (APEDA) द्वारा संचालित है. अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप तीसरे पक्ष के प्रमाणन के जरिए विदेशी बाजारों के लिए प्रमाणन उपलब्ध कराता है.

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के अंतर्गत किसानों को तीन साल में प्रति हेक्टेयर 31,500 रुपये की सहायता दी जाती है. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, 2015 से 30 जनवरी 2025 तक इस योजना के तहत ₹2,265.86 करोड़ जारी किए गए, जिससे लगभग 15 लाख हेक्टेयर क्षेत्र आच्छादित हुआ.

अब मूल्‍यांंकन करना जरूरी

हालांकि, सूत्रों ने बताया कि अब तक कोई व्यापक अध्ययन नहीं हुआ है कि कितने किसानों ने सब्सिडी पाने के बाद फिर से रासायनिक खेती अपनाई है. विशेषज्ञों ने कहा कि अब यह मूल्यांकन करने का समय है, जो किसान पूरी तरह जैविक खेती को अपनाने का दावा करते हैं. वे वास्तव में कितने समय तक इस पद्धति पर टिके रहते हैं और इसे व्यवहारिक रूप से कितना सफल पाते हैं.

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