समझिए दूध के पीछे का पूरा विज्ञान भारत हर साल 26 नवंबर को नेशनल मिल्क डे मनाया जाता है. यह दिन हमारे देश की डेयरी विरासत और दूध के महत्व को सम्मान देने का दिन है. दरअसल इस दिन हम डॉक्टर वर्गीज कुरियन को उनके जन्मदिन के मौके पर याद करते हैं. कुरियन को भारत में 'श्वेत क्रांतिके जनक' के तौर पर जाना जाता है. उनका जन्म 26 नवंबर, 1921 को केरल के कोझिकोड में हुआ था. दूध न सिर्फ पोषण का सबसे भरोसेमंद स्रोत माना जाता है, बल्कि भारतीय परिवारों की रोजमर्रा की जिंदगी का अहम हिस्सा भी है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जिस दूध को हम बचपन से पीते आ रहे हैं, उसका रंग हमेशा सफेद ही क्यों होता है. आखिर वह कौन सा साइंटिफिक कारण है जो दूध को यह खास 'सफेदी' देता है. आइए आज आपको इसी इंट्रेस्टिंग फैक्ट और इसके पीछे का पूरा विज्ञान बताते हैं.
दूध असल में एक जटिल मिश्रण होता है, जिसमें पानी, फैट, प्रोटीन, लैक्टोज और कई तरह के मिनरल्स शामिल होते हैं. इन सभी तत्वों का आपस में मिलकर मौजूद रहना दूध को उसका खास रूप देता है. दूध के सफेद रंग का सबसे बड़ा कारण है केसिन प्रोटीन और फैट ग्लोब्यूल्स. ये दोनों ही तत्व दूध में इस तरह बिखरे होते हैं कि रोशनी (लाइट) जब दूध पर पड़ती है, तो वह सीधे पारदर्शी होकर नहीं गुजरता, बल्कि टूटकर बिखर जाता है. इसी प्रक्रिया को लाइट स्कैटरिंग कहा जाता है.
दरअसल दूध में केसिन माइसेल्स नाम की माइक्रो पार्टिकल्स होते हैं. ये रोशनी को ऑब्जर्व नहीं करते बल्कि उसे अलग-अलग दिशाओं में फैला देते हैं. इस वजह से दूध एक अपारदर्शी और सफेद पदार्थ जैसा दिखता है. यही कारण है कि दूध का रंग पारदर्शी पानी जैसा नहीं होता. फैट ग्लोब्यूल्स भी समान रूप से बिखरे होने के कारण प्रकाश को बिखेरते हैं और दूध को चमकीला सफेद रूप देते हैं.
हालांकि हर दूध एक जैसा सफेद नहीं दिखता. कभी-कभी दूध हल्का पीला दिखता है. इसका कारण होता है बीटा-कैरोटीन, जो गायों के चारे यानी घास में पाया जाता है. जब गाय इस चारे का सेवन करती है, तो बीटा-कैरोटीन उसके दूध में आ जाता है, जो दूध को हल्की पीली झलक देता है. इसलिए गाय का दूध भैंस के दूध से थोड़ा ज्यादा पीला दिख सकता है. वहीं भैंस के दूध में फैट की मात्रा अधिक होती है, जो उसे ज्यादा सफेद बनाने में मदद करती है.
दूध का एक और रोचक पहलू यह है कि जब इसे क्रीम हटाने या स्किमिंग की प्रक्रिया से गुजारा जाता है, यानी फैट कम कर दिया जाता है, तो दूध और भी हल्का सफेद या लगभग पानी जैसा दिखने लगता है. इसका कारण है फैट ग्लोब्यूल्स का कम होना, जिससे प्रकाश का बिखराव भी कम हो जाता है. इसलिए टोंड या डबल टोंड दूध का रंग अक्सर थोड़ा फीका दिखाई देता है.
बकरी या भेड़ के दूध का रंग भी अक्सर थोड़ा अलग दिखता है क्योंकि इन जानवरों के दूध में फैट और कैरोटीन की मात्रा अलग-अलग होती है. इन्हीं वजहों से दूध की सफेदी में हल्का अंतर देखा जा सकता है. कुल मिलाकर दूध का रंग सफेद दिखना एक प्राकृतिक और वैज्ञानिक प्रक्रिया है, जिसमें प्रकाश का बिखराव, फैट की मात्रा और केसिन प्रोटीन की संरचना प्रमुख भूमिका निभाते हैं. अगली बार जब आप दूध का ग्लास हाथ में लें, तो समझिए कि उसके पीछे कितनी रोचक विज्ञान छिपा हुई है. दूध सिर्फ सेहत ही नहीं, बल्कि कई वैज्ञानिक रहस्यों से भी भरा हुआ है.
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