किसान आंदोलन के बीच बीते दिनों ही केंद्र सरकार ने खरीफ फसलों की बढ़ी हुई MSP की घोषणा की थी. इसके साथ ही केंद्रीय कृषि एवं मूल्य आयोग यानी CACP ने विपणन वर्ष 2025-26 के लिए रबी सीजन से जुड़ी फसलों की MSP तय करने की कवायद शुरू कर दी है, जिसको लेकर बीते दिनों दिल्ली में CACP ने तमाम स्टेक होल्डर के साथ बैठक की है, लेकिन इस बैठक में MSP गारंटी कानून पर जमकर घमासान हुआ है, जिसमें किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने MSP गारंटी कानून समेत कई मुद्दों पर CACP की खाट खड़ी कर दी है. आइए इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं.
केंद्रीय कृषि एवं मूल्य आयोग यानी CACP केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय के अधीन काम करने वाली एजेंसी है, जिसका प्रमुख काम 22 अधिसूचित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP तय करना है. CACP प्रत्येक वर्ष रबी और खरीफ सीजन की फसलों की MSP तय करने के लिए किसान नेताओं, कृषि अधिकारियाें समेत तमाम स्टेक होल्डर के साथ बैठक करता है. इस बैठक में मिले सुझावों के बाद CACP फसलों की MSP निर्धारित करता है, जिसे लागू करवाने की सिफारिश एक रिपोर्ट के तौर पर CACP कृषि मंत्रालय को देता है, मंत्रालय, जिसे कैबिनेट के पास भेजता है. CACP की भूमिका सिर्फ फसलों की MSP तय करने तक की नहीं है. वह अपनी इस रिपोर्ट में कृषि लागत, कृषि नीतियां, उपज खरीद, कृषि उपज एक्सपोर्ट-इंपोर्ट संबंधी नीतियों पर भी अपने सुझाव देता है.
MSP गारंटी कानून की मांग को लेकर 13 फरवरी से किसान आंदोलन जारी है,जबकि देश में फसल खरीद के लिए MSP गारंटी कानून लागू करवाने की सिफारिश CACP भी कर चुका है, जिस पर बीते दिनों दिल्ली में संपन्न हुई बैठक में किसान नेता रामपाल जाट ने CACP को आड़े हाथों लिया है. किसान तक से विशेष बातचीत में किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट कहते हैं कि तीन साल यानी साल 2015, 2016 और 2017 की अपनी रिपोर्ट में CACP ने किसानों को फसल बेचने से हाेने वाले नुकसान से बचाने के लिए देश में MSP गारंटी कानून बनाने की सिफारिश की थी, लेकिन अब MSP गारंटी कानून की बात बहसों से दूर है, इस संबंध में उन्होंने CACP को उसका पूरा स्टैंड याद दिलाया है.
MSP गारंटी कानून के साथ ही कृषि से मनरेगा को जोड़ने, सरसों और सूरजमुखी के MSP को लेकर भी CACP की बैठक में घमासान हुआ है. किसान नेता रामपाल जाट बताते हैं कि CACP साल 2010-11 में कृषि को मनरेगा से जोड़ने की सिफारिश कर चुका है. इसके साथ ही अधिक तेल वाली सरसों और सूरजमुखी जैसी फसलों का MSP बढ़ाने की सिफारिश भी CACP साल 2016-17 में कर चुका है, जिसको लेकर बीती बैठक में दोबारा विचार की मांग उनकी तरफ से की गई है.
सरसों और साेयाबीन की अधिक MSP तय करने की सिफारिश को विस्तार से बताते हुए किसान नेता रामपाल जाट कहते हैं कि अभी 35 फीसदी तेल की बेसिक मात्रा के साथ सरसों समेत अन्य तिलहनी फसलों का MSP तय होता है, लेकिन कई ऐसी भी फसलें और किस्में हैं, जिसमें तेल की मात्रा अधिक होती है. इस बात को ध्यान में रखते हुए CACP तेल की 36 फीसदी मात्रा से .25 फीसदी भी बढ़ोतरी होने पर 12.82 फीसदी MSP की बढ़ोतरी करने की सिफारिश कर चुका है.
CACP अगर MSP गारंटी समेत, कृषि को मनरेगा से जोड़ने की सिफारिश कर चुका है, तो इन पर अभी तक फैसले क्यों नहीं हुए. ये सवाल बेहद ही जरूरी है. असल में CACP की भूमिका सिर्फ सिफारिश करने तक की है, इन सिफारिशों पर अमल करना या उसे निरस्त करने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है. इस बात को ध्यान में रखते हुए लंंबे समय से CACP को संवैधानिक दर्जा देने की मांग हो रही है.
CACP की इस लचारी पर किसान नेता रामपाल जाट कहते हैं कि 2015 में 2015 में प्रो रमेश चंद्र की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी थी, उसने अपनी रिपोर्ट में CACP की सिफारिशों पर सदन में बहस करने की सिफारिश दी थी, लेकिन हकीकत उससे उलट है. मौजूदा स्थिति ये है कि CACP की सिफारिश पर कैबिनेट तक में चर्चा नहीं होती है.
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