केंद्र सरकार ने 1 जनवरी 2024 से महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना के तहत सभी मजदूरी का भुगतान आधार आधारित भुगतान प्रणाली (एबीपीएस) के माध्यम से करना अनिवार्य कर दिया है. इससे मनरेगा मजदूरों के आधार डिटेल्स को उनके जॉब कार्ड से जोड़ना आवश्यक था. लेकिन, 12 फीसदी एक्टिव मजदूर और कुल 34 फीसदी से अधिक मजदूर एबीपीएस के लिए अयोग्य हो गए हैं. जबकि, सरकार 7 करोड़ से अधिक जॉब कार्ड पहले ही हटा चुकी है. इससे इन मजदूरों को काम की गारंटी मिलना बंद हो जाएगा. वहीं, आगामी लोकसभा चुनाव को देखते यह मजदूर सरकार के लिए वोटर भी हैं. ऐसे में सरकार के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं.
केंद्र सरकार ने आधार बेस्ड पेमेंट सिस्टम यानी एबीपीएस को लागू करने का पहला आदेश 30 जनवरी 2023 को जारी किया था. इसके बाद 1 फरवरी, 31 मार्च, 30 जून, 31 अगस्त और अंत में 31 दिसंबर तक जोड़ने का मौका दिया था. आधार कार्ड को जॉब कार्ड से लिंक करने की प्रक्रिया पंचायत सचिव या वार्ड सदस्य पूरी करते हैं. एबीपीएस भुगतान के लिए मजदूर के आधार के 12 अंकों का इस्तेमाल करता है. एबीपीएस के तहत मजदूरी भुगतान के लिए जॉब कार्ड धारक का आधार डिटेल्स उसके जॉब कार्ड से जुड़ा होना चाहिए. इसके साथ ही वह आधार मजदूर के बैंक खाते से जुड़ा होना चाहिए. इसके बाद नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन एनपीसीआई उस आधार को मैप कर लेता है. सरकार का तर्क है कि एबीपीएस से तुरंत भुगतान होगा और पेमेंट फेल होने के मामलों में कमी, फर्जीवाड़ा रोकने और लाभार्थियों के डेटाबेस के डुप्लीकेशन से बचने में मदद मिलेगी.
केंद्र के 100 फीसदी मनरेगा जॉब कार्ड आधार से जोड़ने के दबाव ने मनरेगा जॉब कार्ड हटाने की दर को काफी बढ़ा दिया है. सरकार ने 2022-23 के दौरान गलत जानकारी या डिटेल्स वाले 7.43 लाख जॉब कार्ड को हटा दिए. जबकि कुल 7.6 करोड़ जॉब कार्ड को सिस्टम से हटाया जा चुका है. इन जॉब कार्ड को आधार सीडिंग नहीं होने और डिटेल्स में गड़बड़ी होने के कारण हटाया गया है. जबकि, कुछ को हटाने का कारण मजदूर के काम नहीं करने को भी बताया गया है. ऐसे में जो हटाए गए मनरेगा जॉब कार्ड हैं उन मजदूरों का क्या होगा. उन्हें अब योजना का लाभ पाना सबसे बड़ी चुनौती बन जाएगी.
महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत कुल 25.94 करोड़ मजदूर रजिस्टर हैं. इनमें से 14.35 करोड़ को सक्रिय मजदूर के रूप में दर्शाया गया है. इन मजदूरों ने बीते 3 साल में कम से कम एक दिन काम किया है. 12 फीसदी सक्रिय मजदूर एबीपीएस के लिए अयोग्य हैं, जो करीब 5 करोड़ हैं. केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 27 दिसंबर तक कुल 34.8 फीसदी से अधिक जॉब कार्ड धारक ऐसे हैं जो आधार लिंक नहीं होने के चलते भुगतान पाने के लिए अयोग्य हैं.
कुल रजिस्टर्ड मनरेगा मजदूरों में से एक तिहाई से अधिक मजदूर एबीपीएस लिए अपात्र हो गए हैं. ऐसे में यह मजदूर अनिवार्य रूप से काम करने के अधिकार से वंचित हो जाएंगे. यह संसद द्वारा पारित अधिनियम का सीधा उल्लंघन है. ऐसे में सामाजिक संगठनों और जानकारों ने कहा है कि सरकार को न केवल एबीपीएस की अनिवार्यता को रद्द करना चाहिए, बल्कि राज्यों को गलती से हटाए गए मजदूरों को बहाल करना चाहिए. जबकि, कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने मनरेगा मजदूरी भुगतान के लिए एबीपीएस लागू करने को विनाशकारी प्रयोग बताया है.
5 करोड़ से ज्यादा मनरेगा मजदूरों का सिस्टम से बाहर होना आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र सरकार के लिए यह बड़ी परेशानी का कारण बन सकता है. कहा जा रहा है कि केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राज्य सरकारों से एबीपीएस मामले में उदार रुख अपनाने को कहा है. ऐसे मामलों को अनुमति देने के लिए कहा है जहां किसी वास्तविक कारण से जॉब कार्ड को आधार से लिंक नहीं किया जा सका है.
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