जीरे की खेती लंबे समय से किसानों के लिए जोखिम भरा काम रही है. कभी बारिश और कभी ओलावृष्टि से पूरी फसल बर्बाद हो जाती थी. लेकिन अब किसानों के लिए खुशखबरी है. जोधपुर स्थित केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान (काजरी) ने जीरे की एक नई किस्म विकसित की है, जो महज 100 दिनों में पककर तैयार हो जाएगी. खास बात यह है कि यह किस्म उत्पादन के मामले में भी अन्य वैरायटी से बेहतर साबित हो रही है.
कहा जा रहा है कि यह खोज राजस्थान ही नहीं बल्कि देशभर के कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने वाली है. वैज्ञानिकों ने तीन साल तक परीक्षण के बाद सीजेडसी-94 (CZC-94) नाम की वैरायटी तैयार की है. फिलहाल राजस्थान के अधिकांश किसान गुजरात में विकसित जीसी-4 किस्म पर निर्भर हैं, जिसे पकने में 140 दिन लगते हैं.
सीजेडसी-94, आईसीएआर-सीएजेडआरआई की तरफ से विकसित एक अल्पकालिक, जलवायु-प्रतिरोधी जीरा किस्म है. यह शुष्क क्षेत्रों के लिए आदर्श है और जल्दी पक जाती है. साथ ही कम पानी की जरूरत होती है. इसकी अनुकूलन क्षमता और शीघ्र कटाई की क्षमता इसे शुष्क क्षेत्रों में जीरा किसानों के लिए एक फायदेमंद विकल्प बनाती है.
सीजेडसी-94 केवल 100 दिन में तैयार हो जाती है. इस नई किस्म की खासियत यह है कि इसमें फूल आने में सिर्फ 40 दिन लगते हैं, जबकि दूसरी किस्मों में लगभग 70 दिन का समय लगता है. इसका मतलब यह हुआ कि किसान 40 दिन पहले ही फसल बाजार में बेचकर अधिक मुनाफा कमा सकेंगे.
काजरी के वैज्ञानिकों का दावा है कि सीजेडसी-94 से किसान न सिर्फ जल्दी पैदावार पाएंगे, बल्कि बे-मौसम जीरे की खेती भी कर सकेंगे. इससे उनकी आय कई गुना तक बढ़ सकती है. मसालों के निर्यात में भारत की बड़ी हिस्सेदारी है. लाल मिर्च के बाद जीरा सबसे ज्यादा निर्यात होने वाला मसाला है. नई किस्म के आने से निर्यात में और बढ़ोतरी होने की संभावना है. जीरे की खेती में नई क्रांति की खबर के बीच किसानों के लिए एक और राहत आई है.
यह भी पढ़ें-
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today