द‍िल्ली में क्यों दम तोड़ रहे हैं 'तालाब'! उपयोग में नहीं 70 फीसदी से अध‍िक वाटर बॉडीज

द‍िल्ली में क्यों दम तोड़ रहे हैं 'तालाब'! उपयोग में नहीं 70 फीसदी से अध‍िक वाटर बॉडीज

जलशक्त‍ि मंत्रालय ने देश में पहली बार देश में वाटर बाॅडी यानी जल न‍िकायों की गणना की है. जि‍सके अनुसार द‍िल्ली में 70 फीसदी से अध‍िक वाटर बॉडीज उपयोग में नहीं है. र‍िपोर्ट की इस श्रेणी में द‍िल्ली और कर्नाटक अव्वल है. ऐसा क्याेंं है, जबक‍ि द‍िल्ली की पहचान कभी जल स्त्रोत से भरे क्षेत्र की रही है.

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द‍िल्ली में क्यों दम तोड़ रहे हैं 'तालाब'! उपयोग में नहीं 70 फीसदी से अध‍िक वाटर बॉडीज द‍िल्ली में 70 फीसदी से अध‍िक वाटर बॉडीज उपयोग में नहीं हैं- फोटो GFX Sandeep Bhardwaj

द‍िल्ली को द‍िल वाला का शहर कहा जाता है. दिल्ली को म‍िले इसे तमगे की कहानी के पीछे कई वजह हैं, ज‍िनमें एक वजह द‍िल्ली का राजधानी वाला स्वरूप भी है. हालांक‍ि ये बात अलग है क‍ि बतौर राजधानी द‍िल्ली कई बार बसी और कई बार उजड़ी है. हालांक‍ि नई राजधानी द‍िल्ली अपनी आध‍िकार‍िक राजधानी यात्रा के 100 साल पूरे करने की तरफ भी बढ़ रही है. अपने इस सफर में द‍िल्ली के खजाना कई उपलब्ध‍ियों से भरा है, लेक‍िन इन उपलब्ध‍ियों के साथ द‍िल्ली पर दाग भी लगे हैं. ताजा मामला केंद्रीय जल शक्त‍ि मंत्रालय की तरफ से कराए गए पहले वाटर बॉडीज सेंशस (जल न‍िकाय गणना) से जुड़ा हुआ है. ज‍िसकी र‍िपोर्ट में कहा गया है क‍ि द‍िल्ली में 70 फीसदी से अध‍िक वाटर बॉडीज उपयाेग में नहीं है. द‍िल्ली में ये दाग तब लगा है, जब द‍िल्ली की पहचान कभी अपने जल स्त्रोतों के कारण रही हो, लेक‍िन मौजूदा समय में द‍िल्ली में तालाबा यानी जल न‍िकाय दम तोड़ रहे हैं. इस पर‍ एक र‍िपोर्ट... 

पहले समझते है द‍िल्ली को राजधानी बनाने के पीछे का मनोव‍िज्ञान  

द‍िल्ली की राजधानी यात्रा कई सौ वर्ष पुरानी है. पांडव काल से लेकर भारत की आजादी के अमृत काल तक द‍िल्ली का राजधानी स्वरूप (हालांक‍ि बीच के सालों में कई बार राजधानी के तौर पर द‍िल्ली उजड़ी भी) भव्यता के साथ बरकार है. ऐसे में ये महत्वपूर्ण हो जाता है क‍ि आख‍िर द‍िल्ली में ऐसा क्या था क‍ि द‍िल्ली को ही राजाओं से लेकर मुगल बादशाओं, अंग्रेज वायसराय और नेताओं ने राजधानी के तौर पर चुना. बेशक इसके पीछे कई वजहें हो सकती हैं, लेक‍िन, जो सबसे महत्वपूर्ण वजह सामने आती है. वह है जल स्त्रोत से संपन्न दि‍ल्ली. असल में कोई भी सभ्यता नदी या पानी क‍िनारे ही आबाद होती है. जि‍सका द‍िल्ली एक उदाहरण है.

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इसको व‍िस्तार से समझाते हुए हुए यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रंबधक डॉ फैयाज ओ खुदसर कहते हैं क‍ि प्रकृत‍ि के ल‍िहाज से द‍िल्ली के गुण बेहद ही महत्वपूर्ण हैं. एक है अरावली की पहाड़‍ियां और दूसरा है यमुना का बाढ़ क्षेत्र. डॉ फैयाज ओ खुदसर कहते हैं क‍ि ये दोनों ही प्राकृत‍िक कारण द‍िल्ली को जीवनदायनी बनाते हैं.क‍िसान तक से बातचीत में डॉ फैयाज खुदसर कहते हैं क‍ि यमुना का बाढ़ क्षेत्र बहुत बड़ा है. जहां आबादी बसी. 

द‍िल्ली के दम तोड़ती वाटर बॉडीज की कहानी   

द‍िल्ली के राजधानी स्वरूप के पीछे पानी की कहानी को आप समझ ही चुके होगे, लेक‍िन द‍िल्ली की पानी वाली कहानी पर मौजूदा समय में एक दाग लगा है. असल में केंद्रीय जल शक्त‍ि‍ मंत्रालय ने देश में पहला वाटर बाॅडीज सेंशस कराया है, ज‍िसकी र‍िपोर्ट कहती है क‍ि द‍िल्ली में 70 फीसदी से अध‍िक वाटर बॉडीज उपयोग नहीं है. र‍िपोर्ट के मुताबि‍क द‍िल्ली में कुल 893 वाटर बॉडीज हैं, ज‍िसमें से सि‍र्फ 237 वाटर बॉडीज ही प्रयोग में हैं, जबक‍ि 656 वाटर बॉडीज उपयोग में नहीं हैं. मसलन, द‍िल्ली की जो वाटर बॉडीज प्रयाेग में नहीं है, उसके पीछे के कारण र‍िपोर्ट में औद्याेगि‍क कचरे से लेकर मानव की तरफ से कराए गए न‍िर्माण की बात कही गई है.       

द‍िल्ली में वाटर बाॅडीज इस वजह से हो रही खत्म - GFX Sandeep Bhardwaj
द‍िल्ली में वाटर बाॅडीज इस वजह से हो रही खत्म - GFX Sandeep Bhardwaj

       

शहरीकरण की भेंट चढ़ीं वाटर बॉडीज     

द‍िल्ली में दम तोड़ती वाटर बॉडीज को लेकर जल संरक्षण को लेकर काम कर रहे और जल जन जोड़ो अभ‍ियान के संयोजक संजय स‍िंह कहत हैं क‍ि बढ़ता शहरीकरण और जमीन के बढ़ते दामों की वजह से द‍िल्ली में वाटर बॉडीज दम तोड़ रही हैंऋ वहीं यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रंबधक डॉ फैयाज ओ खुदसर कहते हैं क‍ि द‍िल्ली की वाटर बॉडीज व‍िकास की भेंट चढ़ रही हैं. इसे आगे जोड़ते हुए जोर देकर डाॅ फैयाज कहते हैं क‍ि वि‍कास होना जरूरी है, लेक‍िन व‍िकास की दर हमेशा से पानी और हवा के नीचे ही रहनी चाह‍िए. क्योंक‍ि हवा और पानी स‍िर्फ जैव व‍िवि‍धता ही बन सकते हैं. इसे ना कोई वैज्ञान‍िक बना सकता है और ना ही कोई व्यक्त‍ि. ऐसे में व‍िकास का प्रभाव जैव व‍िव‍िधता पर नहीं पड़ना चाह‍िए. वाटर बॉडीज जैव व‍िव‍िधता को बनाए और बचाए रखने में महत्वपूर्ण भूम‍िका न‍िभाते हैं. 

नेचुरल डैनेज पैटर्न को खोजना होगा      

द‍िल्ली में दम तोड़ती वाटर बॉडीज और गि‍रते भूजल स्तर पर च‍िंता जताते हुए यमुना बायोडायवर्सिटी पार्क के प्रंबधक डॉ फैयाज ओ खुदसर कहते हैं क‍ि अब जो भी वाटर बॉडीज बची हुई हैं, उन्हें जीवन कैसे म‍िले, इसको लेकर काम करने की जरूरत है. ऐसे में जरूरी है क‍ि वेस्टलैंड को बचाए रखा जाए. वह कहते हें कि‍ जरूरी है क‍ि द‍िल्ली में नेचुरल डैनेज पैटर्न पर काम क‍िया जाए. बार‍िश का पानी कैसे द‍िल्ली में जमीन के अंदर या तालाबों में जाएं, इसको लेकर काम करना हाेगा. 

गांवों में अध‍िक वाटर बॉडीज

जलशक्त‍ि मंत्रालय की तरफ से कराई गई पहली वाटर बाॅडी गणना के अनुसार देश में कुल वाटर बाॅडी में से 78 फीसदी वाटर बॉडीज मानव न‍िर्म‍ित हैं. यानी उन्हें क‍िसी व्यक्त‍ि या संस्था ने बनाया है, जबक‍ि 22 फीसदी वाटर बाॅडीज प्रकृति‍ द्वारा न‍िर्म‍ित है. गणना र‍िपोर्ट के अनुसार देश में कुल  24,24,540 वाटर बॉडीज हैं, ज‍िसमें से 18,90,463 यानी 78 फीसदी वाटर बॉडीज मानव न‍िर्म‍ित हैं. जबक‍ि 5,34,077 यानी 22 फीसदी प्राकृत‍िक हैं. 

इनमें ये बात बहुत महत्वपूर्ण है क‍ि प्राकृत‍िक तौर पर न‍िर्म‍ित कुल वाटर बॉडीज में से 96.5 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जबक‍ि स‍िर्फ 3.5 फीसदी शहरी क्षेत्रों में हैं. इसी तरह मानव न‍िर्म‍ित 97.3 फीसदी वाटर बॉडीज ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जबक‍ि स‍िर्फ 2.7 फीसदी ही शहरी क्षेत्रों में हैं. 

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